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...तो 4 दिसंबर को दिल्‍ली में होता खौफनाक मंजर

'ऑपरेशन चार दिसंबर' एक ऐसा डरावना सच है जो अगर सही साबित हो जाता तो देश को खून के आंसू रुला जाता. चार दिसंबर को दिल्ली में विधानसभा चुनाव था और ठीक उसी दिन रची गई थी एक खौफनाक साजिश.

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वारदात
वारदात

'ऑपरेशन चार दिसंबर' एक ऐसा डरावना सच है जो अगर सही साबित हो जाता तो देश को खून के आंसू रुला जाता. चार दिसंबर को दिल्ली में विधानसभा चुनाव था और ठीक उसी दिन रची गई थी एक खौफनाक साजिश.

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फोन पर दो लोग बात करते हैं. बातचीत में शादी की तैयारी का जिक्र है. शादी की तारीख पर बात आती है तो जवाब मिलता है, वही जो पहले से तय है- 4 दिसंबर को. दूसरी तरफ से बधाई मिलती है और फोन काट दिया जाता है.

यह बातचीत बेहद आम है. इतना कि कोई भी समझ सकता था कि दो लोग फोन पर शादी की तैयारी की बात कर रहे हैं. लेकिन इस मामूली सी बातचीत ने हिंदुस्तान की खुफिया एजेंसियों को एक भयानक आतंकवादी हमले का वो प्लान दे दिया, जो अगर कामयाब हो जाता तो हर तरफ लाशें बिछ जातीं. यह प्लान एक आतंकवादी हमले का था जिसे राजधानी दिल्ली में अंजाम दिया जाना था.

पाकिस्‍तान में बैठे थे आका
दरअसल, यह फोन पाकिस्‍तान से आया था. उधर से आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा का कमांडर जावेद बलूची दिल्ली के नजदीक मेवात में मौजूद एक संदिग्ध आतंकवादी सुभान से बातचीत कर रहा था. शादी की तैयारी और तारीख की बातचीत के पीछे दिल्‍ली विधानसभा चुनाव के दिन बड़ा हमला करने का प्‍लान था, लेकिन कोड-लैंग्वेज में हो रही इस बातचीत को ना सिर्फ खुफिया एजेंसियों ने इनटरसेप्ट कर लिया, बल्कि 4 दिसंबर से पहले हिंदुस्तान में बैठे लश्कर के कठपुतलियों तक पहुंच कर इस साजिश को बेनकाब भी कर दिया.

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इंटेलिजैंस ब्यूरो यानी आईबी ने ये कॉल इंटरसेप्ट की और उधर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की टीम इस साजिश में शामिल चेहरों को दबोचने मेवात के लिए रवाना हो गई. वहां से पुलिस ने सुभान के दो साथियों रशीद और शाहिद को तो गिरफ्तार कर लिया, लेकिन सुभान फरार होने में कामयाब हो गया. सुभान की गिरफ्तारी के लिए दिल्‍ली और राजस्‍थान की एटीएस टीम लगातार छापेमारी कर रही है.

मुजफ्फरनगर में दंगे के शिकार नौजवानों पर थी नजर
मेवात में रशीद और शाहिद की गिरफ्तारी से पुलिस ने आतंक के इस मॉड्यूल को ध्वस्त कर दिया. पुलिस ने गिरफ्तार लोगों के संपर्क में जितने लोग थे, सभी को कॉन्‍टैक्‍ट किया. यहीं पुलिस को पता चला कि रशीद और शाहिद देवबंद भी गए थे. ये दोनों देवबंद के एक टीचर लिकायत और देवबंद के लिए दूसरे शख्स जमीर के संपर्क में भी आए थे. पुलिस सूत्रों के मुताबिक लश्कर-ए-तैयबा की नजर मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों पर थी. ये लोग अपने आकाओं के कहने पर दंगा पीड़ितों को लश्कर में शामिल करने के लिए संपर्क कर रहे थे. सूत्रों के अनुसार मेवात से गिरफ्तार शाहिद के पास एक डायरी भी मिली है जिसमें मुजफ्फरनगर के कई लड़कों के नाम हैं.

सच साबित हुआ राहुल गांधी का बयान
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के जिस बयान पर कुछ दिनों पहले सियासी भूचाल आ गया था, खुफिया एजेंसियों की तफ्तीश में आखिरकार वही बात सही साबित हुई. ये साफ हो गया कि पाकिस्तान में बैठे आतंक के आकाओं ने हिंदुस्तान को लहुलूहान करने का जो रास्ता चुना था, उसे दंगे की मार से तड़प रही मुजफ्फरनगर की गलियों से हो कर ही गुजरना था.

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राहुल गांधी ने तीन महीने पहले बयान दिया था कि उन्‍हें जानकारी मिली है कि आतंकी मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ितों से संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें बहकाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि लश्कर के मुजफ्फरनगर कनेक्शन का उत्तर प्रदेश सरकार सिरे से खंडन कर रही है. यूपी सरकार के प्रधान सचिव एके गुप्ता के अनुसार, 'कैंप में दंगा पीड़ितों से आतंकियों के संपर्क करने की कोई खबर नहीं है. हमने मुजफ्फरनगर और शामली के डीएम से बात की है, उन्हें भी ऐसी कोई जानकारी नहीं है. हमें ना तो केंद्र सरकार ने जानकारी दी, और ना ही दिल्ली पुलिस ने.'

नफरत की बुनियाद पर आतंक की साजिश
सियासत और राजनीति अपनी जगह है, लेकिन चिंता का विषय यह है कि क्‍या वाकई नफरत की बुनियाद पर अब आतंकी दहशतगर्दी की साजिश रचने लगे हैं. हमारे आपसी भाईचारे की जो एक खायी, गलतफहमियों की वजह से पैदा हुई, क्या वाकई पड़ोसी देश के आतंकी संगठन उसे चौड़ा करने में लगे हैं. फिर चाहे कांग्रेस अपनी पीठ थपथपाए और बाकी राजनीतिक पार्टियां इसे कुछ भी बताएं, लेकिन सतर्क आम आदमी को रहना होगा. आज सुरक्षा एजेंसियां चौकस थी, चौकन्नी थी, लेकिन आगे पूरे देश को चौकस रहना होगा.

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