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दो थाने, कॉल्विन अस्पताल और हमला... अतीक-अशरफ की हत्या से ठीक पहले के आखिरी 3 घंटों की कहानी

अतीक और अशरफ लगातार असद की लाश प्रयागराज पहुंचने और उसे दफनाए जाने की खबर पुलिसवालों से ले रहे थे. जिस धूमनगंज थाने में अशरफ और अतीक को रखा गया था, वहां से कसारी-मसारी कब्रिस्तान की दूरी 5 किलोमीटर है. और रास्ता सिर्फ 15 मिनट का है.

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ये तस्वीर उसी वक्त की है, जब अतीक और अशरफ पर हमला किया गया था
ये तस्वीर उसी वक्त की है, जब अतीक और अशरफ पर हमला किया गया था

यूं तो ये पूरी कहानी 10 घंटे की है, मगर अतीक और अशरफ के आखिरी 3 घंटों की कहानी अगर आप समझ लें, तो इस मामले की पूरी कहानी आपको खुद-ब-खुद समझ में आ जाएगी. शनिवार को अतीक और अशरफ को ठीक शाम के साढे सात बजे धूमनगंज थाने से पहली बार निकाला गया. लेकिन रात दस बजे तक भी जब ये दोनों कॉल्विन अस्पताल नहीं पहुंचे, तो अस्पताल के बाहर खड़े ज्यादातर मीडियाकर्मी वहां से चले गए थे. उनके जाने के ठीक आधे घंटे बाद अचानक पुलिस की गाड़ियों का काफिला अतीक और अशरफ को लेकर अस्पताल के गेट पर पहुंचता है. फिर जो होता है, उसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था.

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14 अप्रैल 2023, शुक्रवार
देर रात रानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज, झांसी के मुर्दाघर से प्रयागराज के लिए दो अलग-अलग एंबुलेंस में असद और गुलाम की लाश रवाना होती हैं. झांसी से प्रयागराज पहुंचते-पहुंचते सुबह के नौ बज जाते हैं. दोनों लाशों को पुलिस की निगरानी में सीधे प्रयागराज के कसारी-मसारी कब्रिस्तान ले जाया जाता है. और फिर वहीं दोनों को दफना दिया जाता है. 

15 अप्रैल 2023, शनिवार
प्रयागराज के धूमनगंज थाने में अतीक और उसके भाई अशरफ को पुलिस हिरासत में रखा गया था. इसी थाने में दोनों से पूछताछ चल रही थी. शुक्रवार की पूरी रात अतीक और अशरफ सोये नहीं थे. दोनों लगातार असद की लाश प्रयागराज पहुंचने और उसे दफनाए जाने की खबर पुलिसवालों से ले रहे थे. जिस धूमनगंज थाने में अशरफ और अतीक को रखा गया था, वहां से कसारी-मसारी कब्रिस्तान की दूरी 5 किलोमीटर है. सिर्फ 15 मिनट का रास्ता है. बेटे के दफनाए जाने की खबर के बाद शनिवार को पूरा दिन अतीक और अशरफ इसी थाने में रहे और इस दौरान दोनों से थोड़ी बहुत पूछताछ भी हुई.

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15 अप्रैल 2023, शाम 7.30 बजे 
असद को सुपुर्द-ए-खाक किए जाने के बाद लगभग आठ घंटे बाद धूमनगंज पुलिस अतीक और अशरफ को लेकर पहली बार थाने से बाहर निकलती है. मीडिया का काफिला भी पीछे-पीछे था. करीब 17 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद अतीक और अशरफ को उमेश पाल मर्डर केस के सिलसिले में कुछ रिकवरी के लिए प्रयागराज का आखिरी थाना कहे जानेवाले पूरामुफ्ती थाने लाया जाता है. अतीक और अशरफ पूरामुफ्ती थाने में करीब आधा घंटा रुकते हैं. इसके बाद पुलिस की गाडियों का काफिला वापस धूमनगंज थाने पहुंचता है. दोनों को गाड़ी से उतारा जाता है और थाने के अंदर ले जाया जाता है. 

अदालत ने दिया था मेडिकल जांच का आदेश
और बस यहीं से कहानी शुरू होती है. दरअसल, लखनऊ और दिल्ली से पहुंचे ज्यादातर पत्रकार कॉल्विन अस्पताल के बाहर खड़े थे. इस उम्मीद में कि अतीक अहमद को यहां मेडिकल टेस्ट के लिए लाया जाएगा. असल में अदालत ने अतीक और अशरफ को पुलिस हिरासत में भेजने के साथ-साथ ये आदेश दिया था कि हर 24 घंटे में इन दोनों की मेडिकल जांच कराई जाए. 14 अप्रैल यानी शुक्रवार की रात को भी दोनों का इसी कॉल्विन अस्पताल में मेडिकल टेस्ट हुआ था. 

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अस्पताल से निकल गए थे ज्यादातर पत्रकार 
मगर 15 अप्रैल को हुआ यूं कि जब अतीक और अशरफ की गाडियों का काफिला पूरामुफ्ती थाने से सीधे धूमनगंज पहुंच गया, तब कॉल्विन अस्पताल के बाहर खड़े पत्रकारों को लगा कि आज उन दोनों का मेडिकल टेस्ट नहीं होगा और बस यही सोच कर कुछ लोकल पत्रकारों को छोड़ दें, तो दिल्ली और लखनऊ से आए सभी पत्रकार अस्पताल से निकल गए. 

उधर, आजतक के रिपोर्टर समर्थ श्रीवास्तव और कैमरामैन नीरज धूमनगंज थाने में मौजूद थे. जब अतीक और अशरफ को पुलिस पूरामुफ्ती थाने से धूमनगंज लाई, तब भी समर्थ अपने कैमरामैन नीरज के साथ धूमनगंज थाने में ही थे. समर्थ को भी यही लगा कि आज शायद मेडिकल टेस्ट नहीं होगा. लेकिन करीब आधे घंटे बाद अचानक समर्थ ने देखा कि पुलिस की गाड़ियों में कुछ हलचल हो रही है. किसी पुलिस वाले ने समर्थ को जानकारी दी कि अतीक को कॉल्विन अस्पताल ले जाने की तैयारी है. ये सुनते ही समर्थ अपने कैमरामैन नीरज के साथ अतीक के काफिल से पहले ही कॉल्विन अस्पताल पहुंच गए. 

15 अप्रैल 2023, रात लगभग 10.30 बजे 
कॉल्विन अस्पताल की दूरी धूमनगंज थाने से करीब 5 किलोमीटर है. रास्ता महज 15 मिनट का है. समर्थ अस्पताल के गेट पर मौजूद थे. जैसा कि हमने शुरू में बताया बाकी ज्यादातर बाहर से आए पत्रकार अस्पताल से लौट चुके थे. मगर कुछ अब भी अस्पताल के बाहर डटे हुए थे. रात करीब साढे दस बजे के आस-पास अतीक और अशरफ को लेकर पुलिस की गाडियों का काफिला कॉल्विन अस्पताल के मेन गेट के बाहर ही रुक जाता है. कायदे से गाडी को अंदर तक जाना था. लेकिन पुलिसवाले गाड़ी अस्पताल के गेट के बाहर रोक कर अतीक और अशरफ को अब पैदल ही अस्पताल के अंदर ले जा रहे थे. अतीक और अशरफ को देखते ही समर्थ अपना माइक आगे कर देते हैं. वो दोनों से सवाल पूछ रहे थे. कैमरामैन नीरज दोनों को कैमरे में कैद कर रहे थे. समर्थ ने एक सवाल पूछा था कि जिसके जवाब में अशरफ ने बोलना शुरू किया. उसने कहा, "मेन बात ये है कि गुड्डू मुस्लिम..." अशरफ बस इतना ही बोल पाया था कि तभी एक और आवाज आई "अरे बाप.."

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अतीक और अशरफ पर चली गोलियां
अब तक अतीक और अशरफ अस्पताल के गेट से मुश्किल से दस कदम ही चले थे. अशरफ अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था और तभी पहले अतीक पर और फिर अशरफ पर गोलियां चल गईं. ये सबकुछ आप सबने कैमरे की नजर से देखा लेकिन समर्थ और नीरज ने अपनी नंगी आंखों से देखा. वो भी बेहद करीब से. जिस जगह पर अतीक और अशरफ पर हमला हुआ, वहां से उस जगह की दूरी अभी 15-20 कदम दूर थी, जहां उन दोनों का मेडिकल टेस्ट होना था. 

पुलिस पर सवाल
अब यहां सवाल ये है कि जब अस्पताल का गेट इतना बड़ा है, अस्पताल के अंदर तक पुलिस की गाड़ी आसानी से जा सकती है, जाती रही है, तो फिर पुलिस ने अतीक और अशरफ को अस्पताल के गेट के बाहर ही गाड़ी से क्यों उतार दिया? वो भी तब जब खुद पुलिस का मानना है कि अतीक पर कभी भी हमला हो सकता था.

गेट के बाहर ही क्यों रोकी गई पुलिस की गाड़ी?
अगर पुलिस के सुरक्षा घेरे और अस्पताल के गेट के अंदर और बाहर की तस्वीरों को ध्यान से देखा जाए, तो इतना तो साफ है कि अगर पुलिस अतीक और अशरफ को अस्पताल के गेट के बाहर उतारने की बजाय गाड़ी अंदर तक ले कर आती, तो मीडियावाले भी दोनों के इतने करीब नहीं पहुंच सकते थे और तीनों हमलावर मीडियाकर्मी के ही भेष में आये थे. अब सवाल ये है कि जब रास्ता और सुविधा दोनों मौजूद थी तो फिर गाड़ी गेट के बाहर ही क्यों रोकी गई? 

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हमलावरों ने आराम से की होगी रेकी
इसी कॉल्विन अस्पताल में 14 अप्रैल की रात भी अतीक और अशरफ को मेडिकल जांच के लिए लाया गया था. हालांकि अप्रैल की रात भी गाड़ी गेट के बाहर ही रुकी थी. मीडियाकर्मी के भेष में आए तीनों हमलावर अगर 14 अप्रैल की रात भी यहां मौजूद थे, तो उन्हें बहुत ही आसानी से ये अंदाजा हो चुका होगा कि हमला कब, कहां और किस वक्त करना है? यानी उन्होंने अस्पताल की अच्छी खासी रेकी कर रखी होगी. 

सीएमओ ने किया सनसनीखेज खुलासा
उधर, जिस कॉल्विन अस्पताल अतीक और अशरफ की मेडिकल जांच होनी थी. उस अस्पताल की सीएमओ यानी चीफ मेडिकल अफसर डॉ. नाहिदा सिद्दीकी ने ये सनसनीखेज खुलासा किया है कि 15 अप्रैल की रात को अतीक और अशरफ की मेडिकल जांच होनी है, इस बारे में पुलिस की तरफ से अस्पताल को कोई सूचना नहीं दी गई थी. जबकि हमेशा ऐसे मामलों में पहले से अस्पताल को खबर दे दी जाती है. ताकि उसी हिसाब से अस्पताल तैयारी कर सके. 

थाने में भी हो सकती थी मेडिकल जांच
चीफ मेडिकल अफसर ने ये भी कहा कि 14 अप्रैल को भी जब अतीक और अशरफ को अस्पताल लाया गया था, तब भी सिर्फ 10 मिनट पहले अस्पताल को इसकी खबर दी गई थी. कॉल्विन अस्पताल की सीएमओ का कहना है कि अगर पुलिस चाहती तो अतीक और अशरफ की मेडिकल जांच धूमनगंज थाने में ही हो सकती थी. उन्होंने कहा कि ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है और खुद पुलिस ने ही ऐसे आरोपियों की मेडिकल जांच थाने के अंदर करवाई है. खास कर ऐसे मुल्जिमों की, जिनकी जान को खतरा होता है.

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सवाल पर सवाल..
कॉल्विन अस्पताल की सीएमओ का ये खुलासा भी कई सवाल खड़े करता है. जिस अतीक और अशरफ पर हमले की आशंका खुद यूपी के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार जता चुके हैं, उन दोनों की मेडिकल जांच थाने में क्यों नहीं कराई गई? ये किसका फैसला था? बिना अस्पताल को जानकारी दिए दोनों को अचानक मेडिकल जांच के लिए अस्पताल क्यों ले जाया गया? जबकि ऐसे हर मामले में हमेशा ही अस्पताल को कुछ देर पहले जरूर खबर दी जाती है. ताकि अस्पताल भी मेडिकल जांच के अलावा बाकी चीजों की तैयारी कर सके. जाहिर है सवाल बहुत हैं. सवाल तो असद और गुलाम के एनकाउंटर को लेकर भी हैं. लेकिन अतीक और अशरफ की मौत ने असद और गुलाम के एनकाउंटर को फिलहाल के लिए ढंक दिया है. 

क्या दफ्न हो जाएगा अतीक-अशरफ की मौत का सच?
कुल मिलाकर शनिवार 15 अप्रैल को सुबह साढे दस बजे कसारी-मसारी कब्रिस्तान में दो लाशों यानी असद और गुलाम को दफनाने के साथ ही कहानी शुरू हुई और ठीक 12 घंटे बाद 15 अप्रैल की रात साढे दस बजे दो और लाशों को इसी कब्रिस्तान में दफनाने की तैयारी शुरू हुई. 16 अप्रैल यानी रविवार को ठीक उसी कब्रिस्तान में जहां असद और गुलाम को दफनाया गया, वहीं अतीक और अशरफ भी दफना दिए गए. मगर सवाल ये है कि पुलिस हिरासत में हुई इस मौत का सच कभी सामने आ पाएगा या वो भी दफना दिया जाएगा?

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अशरफ ने किया था कत्ल और बंद लिफाफे का जिक्र
क्या अतीक और अशरफ की हत्या की साजिश काफी पहले से रची जा रही थी? ये सवाल इसलिए क्योंकि अशरफ को जब पिछली बार बरेली जेल से निकाल कर अदालत में पेश करने के लिए प्रयागराज लाया गया था, तभी उसने ना सिर्फ दो हफ्तों के अंदर अपने कत्ल की आशंका जता दी थी, बल्कि ये भी कहा था कि अगर उसका कत्ल हुआ तो इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और यूपी के सीएम को उसके कातिल का नाम मिल जाएगा, क्योंकि तब वो बंद लिफाफे में अपने कातिलों की जानकारी इन्हें भिजवा चुका होगा.

अशरफ के वकील विजय मिश्र ने भी बातचीत के दौरान इस बात पर मुहर लगाई, लेकिन उन्होंने कहा ना तो अपने पास उस बंद लिफाफे के होने की बात कही ना ही उस शख्स की खबर होने की, जिसने अशरफ के कत्ल की साजिश रची. जाहिर है अतीक और अशरफ के कत्ल का राज गहरा है और इस दोहरे कत्ल को लेकर फिलहाल कई थ्योरीज सामने है. अब आइए एक-एक कर इन थ्योरीज पर बात करते हैं.

क्या गुड्डू मुस्लिम ने करा दिया अतीक-अशरफ का कत्ल?
आपने गौर किया होगा कि अशरफ ने आखिरी बार एक सवाल के जवाब में गुड्डू मुस्लिम को लेकर कुछ बोलना चाहा, लेकिन इससे पहले कि वो अपनी बात पूरी कर पाता, गोली चल गई और दोनों भाइयों की हत्या हो गई. तो क्या अशरफ भी गुड्डू मुस्लिम को लेकर कोई खुलासा करना चाहता था? ये सवाल बड़ा है क्योंकि असद और गुलाम के एनकाउंटर के पीछे भी गुड्डू मुस्लिम का हाथ होने का शक होने लगा है.

शक है कि जब यूपी एसटीएफ को गुड्डू मुस्लिम के मेरठ में अतीक के बहनोई डॉक्टर अखलाक के घर जाने का पता चला, तो पुलिस ने अखलाक को उठा लिया और फिर उसे गुड्डू मुस्लिम के हवाले से असद और गुलाम के लोकेशन की जानकारी मिली. जिसके बाद दोनों का एनकाउंटर हो गया. ऐसे में शक ये जताया जाने लगा है कि कहीं गुड्डू मुस्लिम ने पहले गुलाम और असद के खिलाफ और फिर अतीक और अशरफ के खिलाफ मुखबिरी तो नहीं की?

क्या अतीक-अशरफ के कत्ल में है सुंदर भाटी गैंग का हाथ?
अतीक और अशरफ के कत्ल के पीछे एक थ्योरी के मुताबिक पश्चिमी उतर प्रदेश के गैंगस्टर सुंदर भाटी का हाथ होने का शक भी जताया जा रहा है. वजह है सुंदर भाटी से एक कातिल सन्नी सिंह की नजदीकी. ऐसे में शक है कि कहीं भाटी गैंग ने ही तो सन्नी सिंह से अतीक और अशरफ का कत्ल नहीं करवा दिया. लेकिन फिर सवाल उठता है कि आखिर सुंदर भाटी ऐसा करेगा क्यों? क्या दोनों के बीच कोई पुरानी दुश्मनी थी या फिर ये काम सुपारी के बदले हुआ?

क्या कातिलों के कबूलनामे तक ही सिमटी है कत्ल की सच्चाई?
एक थ्योरी खुद कातिलों के उस कबूलनामे की भी है, जिसमें तीनों ने बड़ा माफिया बनने के लिए दोनों भाइयों का कत्ल करने की बात कबूल की है. लेकिन सूत्रों की मानें तो इस थ्योरी में ज्यादा दम नजर नहीं आता.
 

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