14 फरवरी को पुलवामा में CRPF के काफिले पर जिस आतंकवादी आदिल अहमद डार ने फिदाइन हमला किया था वो तो उसी धमाके में मारा गया. मगर जिस टाटा सूमो कार में आरडीएक्स भर कर उसे कार बम बनाया गया था. उस कार बम को बनाने वाला जैश का कमांडर अब्दुल रशीद ग़ाज़ी अंडरग्राउंड था, और वो जब तक गायब था तब तक खतरा टला नहीं था. लिहाज़ा उसकी तलाश में 14 फरवरी के बाद से ही पूरी घाटी में सर्च ऑपरेशन जारी था. मगर हमले के बाद गाजी कहीं भागा नहीं था बल्कि पुलवामा में हमले वाली जगह से सिर्फ 14 किलोमीटर दूर एक घर में छुपा बैठा था. सेना को रविवार रात उसके ठिकाने की खबर मिलती है और इसके बाद शुरू होता है ऑपरेशन गाजी.
17 फ़रवरी, रात 12.30 बजे, पिंगलोना गांव, पुलवामा
पुलवामा के जिस माइलस्टोन नंबर 272 के करीब 14 फरवरी की दोपहर सीआऱपीऐफ के काफिले पर हमला हुआ था वहां से ठीक 14 किलोमीटर दूर है पुलवामा का पिंगलोना गांव. रात करीब साढ़े बारह बजे पुख्ता खबर मिलती है कि पुलवामा हमले का मास्टर माइंड और जैश का कमांडर अब्दुल रशीद ग़ाज़ी हिफ़ज़ुल्लाह अपने दो साथियों के साथ पिंगलोना गांव के एक घर में छुपा है. खबर मिलते ही बेहद खामोशी से सुरक्षा बल पूरे इलाके और खस कर उस घर को घेरना शुरू कर देते हैं.
ऑपरेशन बेहद खतरनाक था. आईईडी और धमाकों के एक्सपर्ट गाजी के बारे में सुरक्षा बलों को पता था कि जहां वो होगा वहां कोई भी बड़ा धमाका हो सकता है. क्योंकि गाजी की असली पहचान ही जैश के सबसे ट्रेंड आईडी एक्सपर्ट के तौर पर है. लिहाजा खबर मिलते ही आरआर यानी राष्ट्रीय राइफल्स, एसओजी यानी राज्य पुलिस के विशेष अभियान समूह और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ के जवान पिंगोला गांव में दबे पांव धीरे-धीरे उस मकान की तरफ बढ़ना शुरू कर देते हैं.
पुलवामा हमले के बाद अब्दुल रशीद गाज़ी का उसी इलाके में और वो भी मौका-ए-वारदात से सिर्फ 14 किलोमीटर दूर छुपे रहने की बात पहले सुरक्षा बलों को भी हज़म नहीं हो रही थी. क्योंकि उनका मानना था कि सीआरपीएफ के कारवां पर इतना बड़ा हमला होने के बाद गाज़ी घाटी से भागने की कोशिश करता ना कि उसी इलाके में छुपा रहता. मगर सूत्रों के मुताबिक 14 फरवरी के हमले के बाद पूरी घाटी और खास तौर पर एलओसी पर जबरदस्त निगरानी और छापेमारी चल रही थी. इसीलिए गाजी को निकल भागने का मौका नहीं मिला और पुलवामा में ही छुपा रहा.
मगर रविवार देर रात जैसे ही सुरक्षा बलों ने गाज़ी के उस घर को घेरे में लिया, जिसमें वो छुपा हुआ था. गाजी को भनक लग गई. और इसी के साथ जवानों सुरक्षा बलों पर फायरिंग शुरू कर दी. जवाब में भी सुरक्षा बलों ने भी गोलियां चलानी शुरू कर दी. चूंकि जिस घर में गाजी छुपा था, वहां आस-पास और भी घर थे. लिहाजा सुरक्षा बलों के लिए ऑपरेशन मुश्किल हो रहा था.
लगातार फायरिंग से ये जाहिर हो गया था कि आतंकवादियों के पास काफी मात्रा में हथियार हैं. और नजदीक जाने का जोखिम इसलिए नहीं लिया जा सकता था कि गाजी और उसके साथी उस घर को ही उड़ा सकते थे. लिहाज़ा ऑपरेशन लंबा खिंचता गया. हालांकि सुरक्षा बलों ने तब पूरे इलाके को इस तरह घेर लिया था कि आतंकवादियों का वहां से निकल भागना नामुमकिन था.
इधर, सुबह होते ही स्थानीय लोगों के जमा हो जाने का भी खतरा था. लिहाज़ा सुरक्षा बलों को जब यकीन हो गया कि गाजी जिस घर में छुपा है, उसमें उसके अलावा एक और आतंकवादी के सिवा और कोई नहीं है, तो आखिर में उस घर को ही उड़ा देने का पैसला किया गया. इसके बाद उस घर को ही उड़ा दिया गया और इस तरह इस हमले में अब्दुल रशीद गाजी और उसका एक साथी मारा गया. वैसे ऑपरेशन में शामिल सेना या पुलिस ने गाजी के मारे जाने की औपचारिक तौर पर पुष्टि नहीं की है.
हालांकि अफसोस की बात ये रही कि इस ऑपरेश के दौरान 55 राष्ट्रीय राइफल्स के एक मेजर समेत चार जवान भी शहीद हो गए. शहीदों में मेजर डीएस ढोंढियाल, हवलदार शियो राम, अजय कुमार और सिपाही हरि सिंह शामिल थे.