अंतर्ध्यान या फिर विज्ञान? सच क्या है? ये सवाल इसलिए, क्योंकि इन्हीं दोनों के बीच जालंधर के आशुतोष महाराज की जिंदगी और मौत की पहेली पिछले दस महीने से उलझी हुई है. डाक्टर कह रहे हैं कि मेडिकल साइंस के हिसाब से महाराज की मौत हो चुकी है. उनके शरीर के तमाम अंगों ने काम करना बंद कर दिया. लेकिन महाराज के आश्रम के संचालकों का कहना है कि महाराज अंतर्ध्यान हैं. उन्होंने समाधि ले ली है. लेकिन अब पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए 15 दिन के अंदर महाराज का अंतिम संस्कार कर देने का हुक्म दिया है.
जालंधर के संत आशुतोष महाराज को अपनी आंखें खोले और अपनी ज़ुबान से एक भी लफ्ज़ कहे हुए दस महीने से भी ज़्यादा गुज़र गए. लेकिन महाराज को लेकर चर्चाओं का बाज़ार है कि उनके खामोश होने के बाद भी लगातार गर्म बना हुआ है. चर्चा ये कि महाराज जिंदा हैं, उनकी मौत हो चुकी है. या फिर वो खुद अपनी मर्जी से समाधि में चले गए हैं.
दरअसल 29 जनवरी 2014 के बाद से महाराज के जिस्म में कोई भी हरकत नहीं हुई. ठीक वैसे जैसे आम तौर पर इंसान की मौत के बाद होता है और तो और डॉक्टरों ने भी महाराज को क्लिनिकली डेड यानी मुर्दा करार दे दिया है. लेकिन भक्त हैं कि इस बात को मानने को तैयार ही नहीं. बल्कि उनका तो कहना है कि महाराज समाधि में हैं और इसलिए उनका अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता.
क्या आप यकीन करेंगे कि सिर्फ इसी एक तर्क की बिनाह पर मेडिकल साइंस की निगाहों में मुर्दा आशुतोष महाराज की लाश पिछले दस महीने से भी ज्यादा वक्त से जालंधर के नज़दीक उनके आश्रम यानी दिव्य ज्योति जागृति संस्थान में एक फ्रीजर में जस की तस रखी है. ये और बात है कि 29 जनवरी के बाद उनके जिस्म का रंग भी बदल चुका है.
हालांकि अब पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने महाराज का अंतिम संस्कार करने के निर्देश दिए हैं और सरकार से कहा है कि वो इसके लिए एक हाई-लेवल की कमेटी बना कर अगले 15 दिनों में उनका अंतिम संस्कार कर दे. खास बात ये कि महाराज के अंतिम संस्कार के लिए किसी गैर ने नहीं, बल्कि खुद उनके बेटे दिलीप कुमार झा ने हाई कोर्ट में अर्जी दी थी और कहा था कि उन्हें अपने पिता के अंतिम संस्कार का हक दिलाया जाए.
लेकिन लाख टके का सवाल ये है कि आखिर मौत और समाधि के चक्कर में उलझे आशुतोष जी महाराज का सच क्या है? उन्हें लेकर कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ, ये समझना मुश्किल हो रहा है. क्योंकि विज्ञान तो कहता है कि क्लिनिकली डेड मतलब मौत, लेकिन यहां आध्यात्म विज्ञान की बात मानने को तैयार नहीं है.
महाराज के शागिर्द हैं कि कह रहे हैं कि वो समाधि में लीन हो गए हैं और समाधि में लीन होने वाले योगी अपनी शक्तियों की बदौलत अपने दिल की धड़कन और नब्ज पर काबू कर सकते हैं. तर्क ये भी है कि जब हिमालय में योगी और संत ज़ीरो डिग्री से नीचे ठंड में तपस्या कर सकते हैं, तो महाराज फ्रीजर के अंदर ऐसा क्यों नहीं कर सकते?
हालांकि इस कहानी में एक और बड़ा पेंच है. खुद महाराज के ड्राइवर की माने, तो ये सब दरअसल महाराज के पीछे उनकी गद्दी और जायदाद को लेकर जारी रस्साकशी का नतीजा है. लेकिन मौत और समाधि के इसी कश्मकश के बीच कुछ सवाल हैं जो पिछले दस महीने से जस के तस हैं. सवाल ये कि क्या इन सबके पीछे उनके उत्तराधिकार और संपत्ति की लड़ाई ही इकलौती वजह है?
देखा जाए, तो आशुतोष महाराज पर आए हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद इन सवालों का जवाब अपने-आप साफ हो चुका है. क्योंकि कोर्ट की निगाह में भी अब महाराज की मौत हो चुकी है. लेकिन जिस तरह से भक्तों के विरोध के बीच उनके अंतिम संस्कार के लिए कोर्ट ने एक कमेटी बना कर 15 दिनों का वक्त मुकर्रर किया है. उससे इतना तो साफ है कि उनके अंतिम संस्कार का ये मामला इतना आसान भी नहीं है.