दो साल पहले बगदादी की वजह से मोसुल के लोगों में डर था. और खुदा की कुदरत देखिए कि आज मोसुल के लोगों की वजह से बगदादी और उसके आतंकियों में वही डर दिख रहा है. मोसुल ने तो आतंक से आजादी की आस ही छोड़ दी थी, मगर बगदादी पर इराकी सेनाओं के यलगार की वजह से आज उसे अपने ऊपर हुए जुल्मों का हिसाब लेने का मौका मिला है.
और यकीन मानिए मोसुल के लोग आतंकियों से जी भर कर उनके जुर्म और अपने दर्द का हिसाब ले रहे हैं. घसीट-घसीटकर आतंकियों को मोसूल के गली-कूंचों में फिराया जा रहा है. कोई लात से मार रहा है. कोई घूंसे से. और जिसे कुछ नहीं मिल रहा है. वो उनके चेहरे पर थूक कर अपना गुस्सा निकाल रहा है.
उसी कुरान और रसूल की हदीस है कि इंसान के कुकर्मों का हिसाब उससे इसी दुनिया में लिया जाता है. जिस कुरान और रसूल का हवाला देकर दुनिया के इस सबसे खूंखार आतंकी अबू बकर अल बगदादी ने खुद को खलीफा घोषित किया. और फिर उसी कुरान और रसूल की हिदायतों को दरकिनार कर इस्लाम के नाम पर हैवानियत फैलाई. अब उस हैवानियत का हिसाब किताब शुरू हो चुका है. और जिस दर्दनाक मौत की मिसालें दुनिया में दी जाती हैं. उसी अंदाज में बगदादी के गुर्गों को मौत दी जा रही है. मगर इन दरिंदों को जितनी भी भयानक मौत दी जाए उतनी कम है.
लात-घूंसें मारकर निकाल रहे हैं गुस्सा
बिला शक़ ये मौत दर्दनाक है. मगर ये मौत आपको बहुत आसान लगेगी. तब. जब आप वो मौतें देखेंगे जो बगदादी के आतंकियों ने बेगुनाहों और मासूमों में बिना रहम के बांटीं हैं. इनमें कोई यज़ीदी था. कोई ईसाई था. कोई शिया. कोई सुन्नी था. तो कई ऐसे थे जो बगदादी को खलीफा मानने से इनकार कर रहे थे. बगदादी ने इन लोगों को ऐसी ऐसी मौत दी जिसका तारीख में भी कोई ज़िक्र नहीं मिलता. मगर हर जुर्म का हिसाब वही ऊपरवाला गुनहरगारों से लेता है. जिसका नाम लेकर ये अधर्मी मज़हब के नाम पर बेगुनाहों को मारते हैं.
इराक के मोसुल में आतंक से ये बदला लोग सिर्फ बदले की नीयत से नहीं ले रहे हैं. बल्कि एक एक लात और एक एक घूंसा ये लोग अपने साथ गुजरी हैवानियत का ज़िक्र करते हुए मार रहे हैं. कोई कह रहा है कि तुमने मेरे बाप को मारा. कोई कह रहा है तुमने मेरी बहन की अस्मत लूटी. कोई कह रहा है कि तुमने मेरा घर उजाड़ा. कोई कह रहा है कि तुमने मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी. तुमने मेरे अच्छे भले देश को बारूद से तबाह कर दिया. और बदले का ये मौका इन्हें बड़ी मिन्नतों और इंतज़ार के बाद मिला है. इसलिए ये सभी अपनी हुज्जत तमाम कर लेना चाहते हैं.
इन बेबसों और बेसहारा लोगों को ये मौका इराकी सेनाओं ने महज़ 2 साल में दे दिया है. वरना तो इन्होंने आतंक से आज़ादी की आस ही छोड़ दी थी. और अब जब मौका मिला तो मोसुल के इन लोगों ने जी भर के बदला लिया. गाड़ियों से बांध-बांधकर बगदादी के इन वहशी दरिंदों को पूरे शहर में घुमाया गया. जिसका जो मिल रहा है उससे वो इन आतंकियों को मारकर अपना बदला ले रहा है. कोई लात से मार रहा है. कोई चप्पल से मार रहा है. तो कोई घूंसे से मार रहा है. और जो ये भी नहीं कर पा रहे हैं वो इन आतंकियों पर थूक रहे हैं.
मारते हुए गलियों में घुमा रहे
आतंकियों को बांधकर घसीटने वाली गाड़ियां. मोसुल के हर मोहल्ले में जा जाकर रूक रही है. और लोग इन्हें मारकर अपनी अपनी भड़ास निकाल रहे हैं. जो बहुत ज्यादा गुस्से में हैं वो आतंकियों को गाड़ी से घसीट ले रहे हैं. और मारते हुए गलियों गलियों में घुमा रहे हैं.
गुर्गों को अलग-अलग तरीकों से उकसा रहा
इराक़ और सीरिया में बेशक आईएसआईएस आख़िरी सांसें गिन रहा हो, लेकिन इसके सरपरस्त अब भी अपने गुर्गों को अलग-अलग तरीकों से बेगुनाहों की जान लेने के लिए उकसा रहे हैं. आईएसआईएस ने अपनी एक मैगजीन में ना सिर्फ अपने ऐसे ही एक इरादे का खुलासा किया है, बल्कि आतंकवादियों को नीस पर किए गए हमले की तर्ज पर बेगुनाहों को ट्रकों से कुचल मारने के लिए उकसाया है. कहने की जरूरत नहीं है कि अगर वो अपने इस इरादे में कामयाब हो गया तो इंसानियत फिर रो पड़ेगी.