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गर्लफ्रेंड के लिए 'शाहजहां', तो मां-बाप के लिए 'औरंगजेब' बना उदयन

वो शाहजहां था अपनी मुमताज़ के लिए, लेकिन औरंगज़ेब था अपने मां-बाप के लिए. फिर एक वक्त ऐसा आया कि एक ही वक्त में वो शाहजहां और औरंगज़ेब़ दोनों बन बैठा. एक जमाने से टीवी को इडियट बॉक्स कहा जाता रहा है. मगर हकीकत तो ये है कि अब यही टीवी मुजरिमों को आइडिया देने लगा है. आइडिया भी ऐसे ऐसे कि कोई कब्र पर डांस करता है, तो कोई मय्यत पर लेटकर सास बहू के सीरियल देखता है.

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आकांक्षा मर्डर केस की सनसनीखेज दास्तान
आकांक्षा मर्डर केस की सनसनीखेज दास्तान

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वो शाहजहां था अपनी मुमताज़ के लिए, लेकिन औरंगज़ेब था अपने मां-बाप के लिए. फिर एक वक्त ऐसा आया कि एक ही वक्त में वो शाहजहां और औरंगज़ेब़ दोनों बन बैठा. एक जमाने से टीवी को इडियट बॉक्स कहा जाता रहा है. मगर हकीकत तो ये है कि अब यही टीवी मुजरिमों को आइडिया देने लगा है. आइडिया भी ऐसे ऐसे कि कोई कब्र पर डांस करता है, तो कोई मय्यत पर लेटकर सास बहू के सीरियल देखता है.

ज़मीन के नीचे कोई न चाहते हुए भी जनाज़ा बन गया था. ज़मीन के ऊपर उसी की मौत का जश्न मनाया गया. बस यूं समझिए को वो इसे मोहब्बत का नाम देते थे. मारने के बाद भी उसके जनाज़े से लिपटे रहे. हां, ये बात अलग है कि इन जनाज़ों को उन्होंने अपनी नज़रों के सामने रखा. घर में ही कब्र बनाई. उस पर चिकने पत्थर लगाए और कब्र में बंद मोहब्बत से अरसे तक दिल की बात करते रहे. कब्र पर लेटकर पायलों की छन छन.

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शहनाइयों की गूंज को बड़े इत्मिनान से सुना गया. इस बात से बेफिकर की जिसकी मौत का जश्न मनाया जा रहा है. उसका हिसाब अभी बाकी है. मगर जब इस संगीत के साज़ों ने दरो दीवार को चीरकर बाहर निकलना शुरू किया. तब तमाम हिसाब गड़बड़ाने लगे. यूं ही नहीं कहा जाता कि कानून के हाथों को मुजरिमों की गर्दन तक पहुंचने में वक़्त भले लगे. मगर वो पहुंचते ज़रूर हैं. हां ये बात अलग है कि गुनहगार कुछ पल के लिए कानून को गुमराह कर सकता है.

बिलकुल वैसे ही जैसे भोपाल के उदयन और बेंगलुरू के मुरली मनोहर मिश्र उर्फ स्वामी श्रद्धानंद ने किया. हिंदुस्तान की तारीख में ये वो दो ऐसे गुनहगार हैं जिन्हें शायद कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. स्वामी श्रद्धानंद ने तो सिर्फ अपनी मोहब्बत को मारकर उसकी कब्र पर जश्न मनाया था. मगर वो तो अपनी मोहब्बत को हासिल करने के लिए ही अपने मां-बाप का गला दबाकर उन्हें 6 फीट ज़मीन के नीचे गाड़ आया था. मोहब्बत भी आकांक्षा से उदयन ने टूट कर की.

मगर जब अदावत की, तो बस अदावत ही की. जब मार डाला तो ख्याल आया कि जो मर गई वही तो मोहब्बत थी. फिर उसी की कब्र बनाई. संगमरमर के पत्थर लगाए. उसी पर लेटकर ज़ारोकतार रोया. थक गया तो वहीं बैठकर टीवी पर सास बहू के सीरियल भी देखे. अगर इतनी ही मोहब्बत थी तो मारा क्यों. मोहब्बत में शक़ आ जाए तो उसका इलाज तो हकीम लुकमान भी नहीं कर पाए. रही सही कसर अंग्रेज़ी फिलम और सीरियल ने पूरी कर दी.

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यहीं पर देखकर उदयन को ये आइडिया आया कि आकांक्षा से बदला कैसे ले और कानून को धोखा कैसे दे. जब उदयन महज़ 4 साल का था. तब ऐसे ही स्वामी श्रद्धानंद ने उस शाकरे खलीली को मारकर उसकी कब्र बनाई थी. जिसे वो दिलो जान से चाहता था. जो उसके लिए अपनी चार बेटियों और शौहर को छोड़कर आई थी. उदयन को शक़ ने मगर स्वामी को लालच ने घेरा था. उसे शाकरे खलीली से कम उसकी दौलत से ज़्यादा मोहब्बत थी.

यदि पुलिस की तफ्तीश पर भरोसा करें और खुद उद्दयन के शुरूआती बयान को सही मानें तो छह साल पहले ही उसने अपने मां-बाप को मार कर उन्हें घर के बागीचे में दफना दिया था. मगर दुनिया के लिए वो दोनों को अब तक जिंदा रखे हुए था. वो भी सोशल मीडिया की मदद से. उद्दयन के फेसबुक पर ऐसे कई पोस्ट मिले हैं, जिनमें वो आज भी अपने मां-बाप से बातें कर रहा था. बकायदा पिता के पोस्ट पर कमेंट भी कर रहा था.

वो शाहजहां है जिसने अपनी मुमताज़ को मारकर कमरे में ही दफना दिया. ये वो औरंगज़ेब है जिसने अपने मां-बाप को मारकर घर के बागीचे में गाड़ दिया. इस कातिल के कई चेहरे हैं. कभी आंखों में काला चश्मा डालकर गर्लफ्रेंड के साथ तस्वीर, तो कभी किस करते हुए फोटो. कभी बार में मस्ती, तो कभी करोड़ों की कार में बैठकर टशन. ये जितना मासूम है उतना ही खतरनाक भी. वो तस्वीरें हैं जो उदयन ने अपने फेसबुक प्रोफाइल में डाल रखी थी.

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