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EXCLUSIVE: कोयले की कालिख के बीच सफेदपोशों का माफियाराज

बिहार में काले कोयले के इर्द-गिर्द पनपा काला कारोबार जिसने पिछले कुछ सालों में सूबे के खज़ाने को कितने करोड़ का चूना लगाया है, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है, लेकिन सूबे की सरहद पर सरगर्म ये माफिया बिहार से गुजरने वाले कोयले के हर ट्रक से हज़ारों रुपये की नाजायज वसूली करता है.

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सफेदपोशों का माफियाराज
सफेदपोशों का माफियाराज

बिहार में काले कोयले के इर्द-गिर्द पनपा काला कारोबार जिसने पिछले कुछ सालों में सूबे के खज़ाने को कितने करोड़ का चूना लगाया है, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है, लेकिन सूबे की सरहद पर सरगर्म ये माफिया बिहार से गुजरने वाले कोयले के हर ट्रक से हज़ारों रुपये की नाजायज वसूली करता है.

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वसूली का ये पूरा धंधा चलता कोड वर्ड की खुफिया बोली से चलता है. कोड वर्ड भी ऐसा होता है कि जानकर एक आंखे खुली रह जाएं. ऊपरी तौर पर चेकपोस्ट की तस्वीर बिल्कुल नॉर्मल लगती है, लेकिन ट्रकों के घूमते पहियों और सड़क से उड़ती धूल के बीच बॉर्डर का एक ऐसा सच छिपा है, जिसे देखने और सुनने के बाद किसी का भी दिमाग घूम सकता है.

सड़क पर चेकिंग के दौरान घिरने के बाद एक ड्राइवर ढाबे में आता है. ड्राइवर के साथ वो शख्स भी मौजूद है, जिसने ड्राइवर को चेकिंग के नाम पर रोका था. ड्राइवर उस शख्स से छोड़ने की मिन्नतें करता है तो उसके साथ मौजूद शख्स कागजात देखने के बाद हजारों रुपए वसूल लेता है. लेकिन रसीद मांगने पर वह ड्राइवर को डांटने लगता है और रसीद की जगह पानी की एक खाली बोतल थमा देता है.

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पानी की बोतल और कोड वर्ड
वैसे तो पानी की खाली बोतल की कीमत चंद पैसों से ज़्यादा कुछ भी नहीं, लेकिन ड्राइवर के लिए ये बोतल ही वो कोड वर्ड है, जो उसे बिहार की सरहद से बगैर किसी झंझट या छानबीन के बाहर निकाल सकता है. दूसरे लफ्ज़ों में कहें, तो छह हजार रुपये चुका कर हासिल की गई वो परमिट जिसके साथ होने का सीधा सा मतलब है, बिहार से आराम से निकल जाने की गारंटी और ऐसा तब है, जब इस ट्रक पर दसियों टन कोयले की ओवरलोडिंग है.

ये सबकुछ पुलिस और तमाम महकमों की नाक के नीचे या फिर यूं कहें कि इन महकमों के अफसरों और मुलाजिमों की मिलीभगत से चलता है. जैसे ही कोई ट्रक कोयला लाद कर बॉर्डर पर पहुंचता है, तो ओवरलोडिंग, परमिट, लाइसेंस, फिटनेस, ड्राइविंग जैसे तमाम वजहों में नुक्स निकाल कर एंट्री माफिया के लोग उसे रोक लेते हैं और फिर बिहार से निकलने के लिए पांच से छह हज़ार रुपये वसूले जाते हैं, बदले में हर ड्राइवर को एक कोड वर्ड दिया जाता है, जो उसे आगे किसी भी महकमे के मुलाजिमों से ओके-रिपोर्ट मिलने की गारंटी है.

हालांकि जिस बिहार में एंट्री माफिया ट्रक चालकों के बहाने सालों से पूरे सिस्टम घुन की तरह चाट रहा था, अब उसी बिहार में डीआईजी मगध, शालीन की कोशिशों और सख्ती की बदौलत एंट्री माफ़िया के पांव उखड़ने लगे हैं. कहने का मतलब ये कि डीआईजी शालीन ने जब अपने इलाके में एंट्री माफिया के खिलाफ मोर्चा खोला है, पश्चिम बंगाल और झारखंड से कोयला लेकर चलनेवाले ट्रक चालकों ने जहां राहत की सांस ली है, वहीं इस धंधे से जुड़े तमाम धंधेबाज भागते फिर रहे हैं.

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माफियाराज का सबसे खतरनाक चेहरा एक नेता का
बिहार के बार्डर पर सालों से जिस एंट्री माफिया ने सरकारी महकमों के साथ मिलकर सूबे खज़ाने को करोड़ों का चूना लगा दिया, पुलिस की मानें तो ये उस माफ़ियाराज का सबसे बड़ा और सबसे खतरनाक चेहरा एक नेता का है. सत्ताधारी दल के नेता होने का नकाब ओढ़े औरंगजेब खान उर्फ रजुवी का असल काम बिहार में आते-जाते कोयले से लदे ट्रकों से अवैध वसूली करना है. खान अपने इलाके में अब तक बेरोक-टोक ट्रक मालिकों का शिकार किया करता था लेकिन उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद अब पुलिस की ऐसी दबिश शुरू हुई है कि वह लापता हो गया.

पुलिस की मानें तो पॉलिटिक्स और पहुंच की बदौलत रजुवा ने तमाम सरकारी महकमों में तगड़ी सांठ-गांठ कर रखी थी और सिर्फ रंगदारी टैक्स वसूल कर ही करोड़ों के एंपायर का मालिक बन बैठा, लेकिन अब शायद उसके दिन लदने लगे हैं और वह भागा-भागा फिर रहा है. हालांकि रजुवा अकेला नहीं है. इस माफियाराज के ऐसे कई चेहरे हैं, फिलहाल पुलिस को जिनकी तलाश है.

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