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हिमाचल के बिलासपुर में सुरंग में फंसे तीन में से दो मजदूर सुरक्षित निकाले गए

पूरे नौ दिन और दो सौ घंटे बाद वो दोनों मौत को मात देकर कब्र से जिंदा बाहर निकल आए. जी हां हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर की उसी सुरंग की जिसमें पिछले नौ दिनों से तीन जिंदगियां फंसी थीं. पर ऑपरेशन ज़िंदगी अभी पूरा नहीं हुआ है क्योंकि अभी एक और जिंदगी को बचाना बाकी है.

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हिमाचल के बिलासपुर में सुरंग में फंसे तीन में से दो मजदूर सुरक्षित निकाले गए
हिमाचल के बिलासपुर में सुरंग में फंसे तीन में से दो मजदूर सुरक्षित निकाले गए

पूरे नौ दिन और दो सौ घंटे बाद वो दोनों मौत को मात देकर कब्र से जिंदा बाहर निकल आए. जी हां हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर की उसी सुरंग की जिसमें पिछले नौ दिनों से तीन जिंदगियां फंसी थीं. पर ऑपरेशन ज़िंदगी अभी पूरा नहीं हुआ है क्योंकि अभी एक और जिंदगी को बचाना बाकी है. उसे भी उसी कब्र से बाहर निकाला जाना बाकी है जिसमें से बाकी दो को सोमवार को जिंदा बाहर निकाल लिया गया.

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तरक्की की दौड़ में वक्त से आगे निकलने में लगे इंसान को बीते 12 सितंबर को हिमाचल के बिलासपुर में मौजूद पहाड़ियों में तब जोरदार झटका लगा, जब टिहरा में बन रही एक सुरंग में चट्टान और मिट्टी के धंसने से अचानक ही तीन मजदूर अंदर फंस गए. बिलासपुर में कीरतपुर-नेरचौक फोरलेन हाईवे पर पनोह के पास करीब डेढ़ किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने का काम चल रहा था. 12 सितंबर को रात करीब साढ़े आठ बजे निर्माणाधीन टनल में काम कर रहे मजदूरों की शिफ्ट बदल रही थी. उस वक्त टनल के अंदर 16 मज़दूर काम कर रहे थे. इन 16 में से 13 लोग तो शिफ्ट बदलने पर बाहर आ गए लेकिन, इससे पहले कि बाकी बचे तीन मजदूर बाहर आ पाते कि तभी अचानक टनल के अंदर एक हादसा हुआ और सुरंग की 25 फीट ऊंची छत से ढ़ेर सारा मलबा गिरा और तीनों मज़दूर, सतीश कुमार, मनी राम और ह्दय राम सुरंग के अंदर ही फंस गए.

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मौत की स्याह सुरंग में पूरे चार दिन गुजारने के बाद आखिरकार बीते सोमवार को वो लम्हा आया, जब ज़िंदगी ने खुद के जिंदा होने का सुबूत दिया. हालांकि इस खुशी के बीच बेचैन करनेवाली एक बात ये है कि तीन में से एक मजदूर हृदयराम का अब भी कोई पता नहीं चला है. बिलासपुर में पिछले 9 दिनों से दिन रात चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन ने बेशक दो मजदूरों को जिंदा निकालने में कामयाबी हासिल कर ली हो, लेकिन तीसरे मजदूर हृदयराम को लेकर अब तक कोई खबर सामने नहीं आ सकी है.

ये और बात है कि हृदयराम को बाहर निकाल लेने से पहले जिला प्रशासन और एनडीआरएफ ने अपना ऑपरेशन बंद ना करने का फ़ैसला किया है. एनडीआरएफ, सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड, बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन और हिमाचल प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड के इस ज्वाइंट ऑपरेशन में एक्सपर्ट्स ने जीत हासिल करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी और आखिरकार इसमें जीत भी हासिल हुई. लेकिन एक मजदूर हृदयराम के मिलने तक ये कोशिश फिलहाल अधूरी ही है. मौत को मात देने की इस करिश्माई खबर के साथ एक अजीब इत्तेफाक भी जुड़ा है.

एक ऐसा इत्तेफाक जिसने ना सिर्फ अंधेरे टनल में फंसे इन दो मजदूरों को पूरे नौ दिनों तक बेहद मुश्किल हालात में जिंदा रहने का जज्बा दिया, बल्कि ये भी बताया कि चट्टानी इरादों के आगे मुश्किलें कैसे छोटी बन जाती हैं. दरअसल टनल में फंसा मजदूर सतीश इससे पहले भी ऐसे ही एक टनल में ना सिर्फ फंस चुका था, बल्कि तकरीबन छह से सात दिनों का वक्त ऐसे ही मुश्किल हालात में पहले भी निकाल चुका था. तब सतीश कुल्लू के बारस्नेही इलाके में सुरंग बनाने वाली एक टीम का मेंबर था और तब भी बदकिस्मती से वो टनल के रास्ते में मलबा गिरने से फंस चुका था. लेकिन उसने तब भी अपने चट्टानी हौसले का सुबूत दिया था और इस बार भी दिया.

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इस रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे लोगों की मानें तो ये सतीश ही था, जिसने ना सिर्फ़ हौसला नहीं छोड़ा, बल्कि अपने साथ फंसे मनीराम को भी लगातार हौसला देता रहा... और कहीं ना कहीं सतीश के इन बुलंद इरादों के पीछे उसका पिछला तजुर्बा भी एक अहम वजह साबित हुआ... यही वजह है कि जब एनडीआरएफ के जवान सोमवार को पहली बार अंदर पहुंचे, तो सतीश ने पहले अपने साथी मनीराम को बाहर निकलने दिया और तब खुद बाहर आया.

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