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सीरिया: सेना के रासायनिक हमले में 1300 लोगों की मौत

सारा शहर सो रहा था. तभी एक रॉकेट धीरे से शहर के आसामन में दाखिल हुआ. रॉकेट ने शहर के ऊपर हवा में एक गैस छोड़ा. गैस जमीन पर पहुंची और फिर देखते ही देखते लोगों की सांसों में ऐसी घुली कि सैकड़ों सांसें रुक गईं.

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सीरिया में रासायनिक हथियार का हमला
सीरिया में रासायनिक हथियार का हमला

सारा शहर सो रहा था. तभी एक रॉकेट धीरे से शहर के आसामन में दाखिल हुआ. रॉकेट ने शहर के ऊपर हवा में एक गैस छोड़ा. गैस जमीन पर पहुंची और फिर देखते ही देखते लोगों की सांसों में ऐसी घुली कि सैकड़ों सांसें रुक गईं.

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इंसानियत की तारीख ने आसमान से बरसी मौत का ऐसा खौफनाक मंजर देखा कि बस देखने वालों की रूह कांप उठी. इंसानों के बनाए सबसे खतरनाक और जानलेवा हथियार को इंसानों पर ही आजमाया जा रहा था और आजमाइश ऐसी कि मिनटों में लाशों के ढेर लग गए. आसमान से जो आफत बरसा, वो एक झटके में 13 सौ लोगों को कब निगल गया किसी को पता ही नहीं चला. दुनिया ने रासायनिक बम का खूंखार चेहरा फिर एक बार देखा.

इधर सीरिया के आसमान से रॉकेट ने गैस छोड़ा और उधर देखते ही देखते सैकड़ों लोग उसी पल मौत की आगोश में समा गए. आसमान से बरसी इस सबसे खौफनाक मौत को बरसाने का हुक्म किसी और ने नहीं बल्कि सीरिया के ही राष्ट्रपति ने खुद दी थी. इंसानों की बनाई इस दुनिया में इंसानों के ही हाथों बनाए गए इस खौफनाक हथियार यानी रासायनिक बम को अपने ही लोगों पर गिराने का हुक्म उनका अपना ही नेता दे रहा था.

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शक है कि दुनिया में सबसे ज्यादा रासायनिक हथियार इसी सीरिया के पास है और सीरिया की अवाम फिलहाल अपने ही नेता के खिलाफ सड़कों पर है और उसी सड़क पर अवाम की आवाज कुचलने के लिए उसी अवाम के लीडर आसमान से उनपर जहर बरसा रहे हैं.

21 अगस्त 2013, सुबह के करीब 5 बजे
पिछले दो सालों से गृहयुद्ध की आग में झुलस रहे इस मुल्क ने बुधवार की सुबह जब अपनी आंखें खोली, तो हवा में घुलती मौत उनका इंतजार कर रही थी.
इधर, एक के बाद एक रॉकेट से शहरियों पर कई हमले हुए और उधर बस्तियां-दर-बस्तियां श्मशान में तब्दील होने लगी. बेगुनाह और बेखबर लोग तिल-तिल कर मौत के मुंह में जाने लगे.

क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या जवान, इस हमले ने किसी को नहीं बख्शा. इससे पहले कि लोग समझ पाते कि ये माजरा क्या है, किसी की सांस रुक गई तो किसी की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. क्योंकि ये हमला कोई मामूली हमला नहीं, बल्कि 1980 के बाद दुनिया में हुआ अब तक का सबसे ख़ौफनाक रसायनिक हमला था. वो हमला, जिसने तकरीबन डेढ़ हजार से ज़्यादा लोगों की जान ले ली.

सीरिया की एक बड़ी आबादी वहां के राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ पिछले लंबे समय से सड़कों पर है लेकिन राष्ट्रपति के मुखालिफत की उन्हें ऐसी क़ीमत चुकानी पड़ेगी, ये किसी ने ख्वाबों में भी नहीं सोचा था. इल्जाम है कि सरकार के इशारे पर सेना ने बीच शहर में जहरीली गैसों से लैस रॉकेट दागे और पलक झपकते पूरे दमिश्क में कोहराम मच गया.

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सालों से सही-ग़लत की जंग में उलझे सीरिया के लोगों के लिए गोली-बारी और धमाके कोई नई बात नहीं हैं लेकिन बुधवार की सुबह जो कुछ हुआ, वैसा इससे पहले कभी नहीं हुआ था. लोगों ने अभी अपने बिस्तर छोड़े ही थे कि तभी रॉकेट से निकली जहरीली गैस ने उनका दम घोंटना शुरू कर दिया. इस हमले का सबसे पहला असर तो यही हुआ कि लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगी. तेज जलन के मारे आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा, पुतलियां छोटी होने लगी और ज़्यादातर लोग दस मिनट के अंदर मौत के मुंह में समा गए. सबसे बुरा हाल तो बच्चों का हुआ, जो कुछ समझने से पहले ही दुनिया से रुखसत हो गए.

जिन लोगों की हालत थोड़ी बेहतर थी, उन्होंने बीमार लोगों को अस्पताल पहंचाना शुरू किया और देखते ही देखते शहर के तमाम छोड़े-बड़े अस्पताल रासायनिक हमले के शिकार लोगों से पट गए. डॉक्टरों के हाथ-पांव फूल गए. हालत ये हो गई कि ये समझ आना मुश्किल हो गया कि वो किसका इलाज करें और किसे छोड़ें और इसी आनन-फ़ानन में कई और जिंदगियां ख़ामोश हो गईं.

सीरिया की ये हकीकत शायद इतनी जल्दी दुनिया के सामने नहीं आती, अगर खुद वहां के लोगों ने इस तबाही के वीडियो सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपलोड ना किए होते. हालांकि आज तक के लिए इन वीडियो की तस्दीक करना मुमकिन नहीं है, लेकिन सच्चाई यही है कि इन्हीं वीडियो ने दुनिया का ध्यान एक बार फिर सीरिया की तरफ़ खींचा है.

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हवाई हमले और धमाके सीरिया की जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं लेकिन इस बार इस मुल्क के हुक्मरानों ने अपनी ही आवाम के खिलाफ़ जिस हथियार का इस्तेमाल किया, उसने लाशों की ऐसी और इतनी ढेर लगाई, जैसी हाल के दिनों में कभी नहीं लगी थी. मौत का मंजर शायद इतना भयानक नहीं होता, अगर रासायनिक हथियार के तौर पर हमलावरों ने दुनिया के सबसे खतरनाक गैसों में से एक का इस्तेमाल ना किया होता और ये गैस थी सेरिन.

केवल 30 से लेकर 10 मिनट के अंदर इंसान के पूरे नर्वस सिस्टम को बेकार करनेवाली इस गैस को दुनिया में मौत के दूसरे नाम से जाना जाता है. बिना किसी रंग और बू वाली इस गैस की ख़ासियत ये है कि हवा के मुकाबले भारी होती है और इसी वजह से एक बार फिजा में इस गैस के घुल जाने पर इंसान के पास बचने का कोई रास्ता ही नहीं होता.

इस बार जब दमिश्क और उसके आस-पास रॉकेटों के जरिए इसी सेरिन गैस का हमला किया गया, तो मासूम लोगों ने बचने के लिए वो तरीका चुन लिया, जो इससे पहले वो अक्सर चुना करते थे और ये तरीका था, अंडरग्राउंड होना. यानी जमीन के अंदर किसी बेसमेंट में जाकर छिप जाना लेकिन लोगों की यही नादानी अबकी उनके लिए मौत की वजह साबित हुई. वजनी होने की वजह से सेरिन गैस बड़ी आसानी से बेसमेंट में छिपे लोगों तक जा पहुंची और लोगों के लिए खुद उन्हीं के ठिकाने गैस चेंबर साबित हुए.

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पहले तो लोगों को समझ में ही नहीं आया कि आख़िर ये हुआ क्या, लेकिन जब तक गैस ने असर दिखाना शुरू किया, तो लोगों को संभलने का मौका ही नहीं मिला. हालत ये हो गई कि कीड़े-मकोड़ों की तरह इंसान मौत के मुंह में समाने लगे. सबसे बुरी हालत महिलाओं और बच्चों की हुई और इस हमले में लोगों का इलाज करनेवाले कई डॉक्टर तक बेमौत मारे गए. हालत इतनी ख़राब हो गई कि जिन डॉक्टरों पर लोगों की जिंदगी देने की जिम्मेदारी थी, उनमें से कई तो मौत का मंजर देख कर खुद ही रोने लगे. एक डॉक्टर ने बताया कि उन्होंने खुद अपने हाथों से करीब 50 बच्चों की लाशें उठाईं.

सेरिन नाम के इस ख़ौफनाक गैस की एक ख़ास बात ये थी कि इससे ऊपरी तौर पर जिस्म में कोई निशान नहीं दिख रहा था, लेकिन अंदर से यही गैस सैकड़ों लोगों के लिए मौत की वजह बन गई. दमिश्क से शुरू हुए इस कोहराम ने अब पूरे सीरिया को अपनी जद में ले लिया था.

किसी को सांस लेने में दिक्कत थी, किसी की आंखों की पुतलिया छोटी हो रही थीं और किसी का पूरा बदन अकड़ रहा था. ये हाल के सालों में सीरिया में हुए सबसे खौफनाक रासायनिक हमले का असर था. वो हमला जिसे खुद सरकार ने अपने ही लोगों के खिलाफ़ किया.

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सीरिया की असद सरकार के खिलाफ विपक्षी पार्टियों ने जब रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल का इल्ज़ाम पहली बार लगाया, तो दुनिया ने इस पर आसानी से यकीन नहीं किया लेकिन जैसे ही ये वीडियो सोशल साइट्स पर अपलोड हुए, पूरी दुनिया सकते में आ गई. लंदन के क्रैनफील्ड फॉरेंसिक इंस्टीट्यूट के विजिटिंग फेलो स्टीफ़न जॉनसन ने जब दमिश्क के इन वीडियो को बारीकी से देखा, तो उन्हें लगा कि इंसान के ऐसे हालात सिर्फ नर्वस सिस्टम के खराब होने पर ही हो सकता है और रासायनिक हमले के मामले में मुमकिन है.

वैसे एक्सपर्ट्स जिस सेरिन गैस की बात कह रहे हैं, वो कितना खतरनाक है, इसका अंदाज़ा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी एक औंस भी जिस्म में पड़ जाने पर इंसान की मौत मुमकिन है. इलाज नहीं होने पर महज 10 मिनट पर इसके शिकार शख्स की मौत हो सकती है. दम घुट सकता है और यहां तक कि इंसान को लकवा तक मार जाता है.

अब जाहिर है, जब हमला इतना ख़ौफ़नाक है, तो उसे लेकर दुनिया का बेचैन होना लाजमी है और इस हमले के बाद खुद संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया है और अब पूरे मामले पर नजर रख रही है.

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