कुछ रोज पहले तक तरुण तेजपाल के पास सब कुछ था. कलम की ताकत थी. दौलत की चमक थी. पलक झपकते अपने स्टिंग ऑपरेशनों से अच्छे-अच्छों की साख मिट्टी में मिला देने का धारदार हुनर था. लेकिन 7 और 8 नवंबर को गोवा के एक फाइव स्टार होटल में इस शख्स ने अपनी ही मातहत एक लड़की के साथ जो कुछ किया, उसने कभी एशिया के सबसे ताकतवर पत्रकारों में गिने गए तरुण तेजपाल के किले में ऐसी सेंध लगाई कि अब तेजपाल के लिए ना तो अपना गढ़ बचाना मुमकिन हो रहा है और ना ही खुद को.
ये ताकत का नशा था. बड़े और हाई प्रोफाइल तबके में अपनी अहसास-ए-मौजूदगी का गुरूर. या फिर किसी की भी चूलें हिला देने की गलतफहमी... रात के अंधेरे में लिफ्ट के भीतर तेजपाल ने अपनी ही मैग्ज़ीन यानी तहलका में काम करनेवाली एक लेडी जनर्लिस्ट के साथ जो कुछ किया, उसने रातों-रात तेजपाल के तकदीर के सितारे गर्दिश में पहुंचा दिए. 20 नवंबर को तेजपाल ने छह महीने के लिए तहलका की सबसे ऊंची कुर्सी से हटने का फैसला किया था, लेकिन इसी दिन से सारे हालात उनके खिलाफ हो गए.
इसके बाद तो जैसे बात बढ़ी और बढ़ती चली गई. पहले सिर्फ अपनी मैनेजिंग एडिटर से शिकायत करनेवाली इस लड़की ने पुलिस और मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान दर्ज करवाए और देखते ही देखते तरुण तेजपाल को क़ानूनी मुसीबतों ने घेर लिया. तेजपाल के स्टिंग से खार खाए लोग भी मौका ताड़कर तेजपाल पर टूट पड़े और दूसरी ओर तेजपाल के सिर पर गिरफ्तारी का खतरा मंडराने लगा. पुलिस कभी तेजपाल के नाम समन जारी करती, तो कभी अदालत से गैर जमानती वारंट हासिल करती और इसी आपाधापी के बीच शुक्रवार यानी 29 नवंबर का दिन इस तेज-तर्रार पत्रकार की जिंदगी का सबसे उथल-पुथल भरा दिन साबित हुआ.
सुबह तक तो तेजपाल अपने घर से नदारद रह कर पुलिस से बचते रहे, लेकिन दिन चढ़ते-चढ़ते तेजपाल को अदालत से किश्तों में राहत मिलने लगी. पहले तीन घंटे और फिर अगले दिन सुबह दस बजे तक. इसी बीच अपने अंजाम से अंजान तेजपाल दिल्ली टू गोवा के एक ऐसे सफर पर रवाना हुए, जो वैसे तो फकत ढाई घंटे का था, लेकिन शायद तेजपाल के लिए ढाई सौ घंटे से भी ज्यादा... आख़िरकार तेजपाल एक बार फिर से उसी गोवा में थे, जहां से पहली बार उनके तकदीर के सितारा डूबने लगा था.
जिन तरुण तेजपाल पर लगे यौन शोषण के इल्जामों से पूरे देश में तहलका मचा हुआ है, शुक्रवार की दोपहर को वही तरुण तेजपाल ठीक 12.58 मिनट पर गोवा जाने के लिए दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर नजर आए. पिछले कुछ दिनों से गोवा पुलिस हाथ धो कर तेजपाल के पीछे पड़ी थी और वो हर बार पुलिस के हाथ से फिसल जाते. लेकिन हवाई रास्ते से गोवा जाने के लिए जब तेजपाल जब शुक्रवार की दोपहर दिल्ली के एयरपोर्ट पर हाजिर हुए तो फिर वे ना तो मीडिया के कैमरों से बच सके और ना ही वर्दीवालों से. पुलिस ने फौरन उन्हें घेर लिया.
तेजपाल शायद इतनी आसानी से काबू में नहीं आते, लेकिन पिछले 24 घंटों के दौरान गोवा पुलिस ने उन पर कानून का शिकंजा कुछ इतनी तेजी से कसा कि उनके सामने सीधे गोवा की फ्लाइट पकड़ने के सिवाय कोई रास्ता ही नहीं बचा. पुलिस के सामने हाजिर होने की डेडलाइन से चूकने के साथ ही उसने गुरुवार को ही पणजी के सेशन कोर्ट से तेजपाल के नाम गैरजमानती वारंट हासिल कर लिया था. और शुक्रवार की सुबह होते-होते वही गोवा पुलिस तेजपाल के घर में छापेमारी कर रही थी. लेकिन मुंह अंधेरे हुई इस दबिश देने के बावजूद पुलिस को उनका कोई सुराग हाथ नहीं लगा. अलबत्ता जब तेजपाल की पत्नी ने तकरीबन दो घंटे की पूछताछ के बाद भी पुलिस को अपने पति से पिछले 24 घंटों से ना मिलने की बात कही, तब जाकर पुलिस ने तेजपाल का घर छोड़ा.
जाहिर है अब तक गोवा पुलिस के साथ तेजपाल की लुकाछिपी का खेल जारी था और इसी सिलसिले में अब पुलिस ने दिल्ली से गोवा जानेवाली हर फ्लाइट की तलाशी लेने का फैसला किया. पुलिस ने दिल्ली क्राइम ब्रांच के साथ मिलकर दिल्ली में तेजपाल के कई ठिकानों के साथ-साथ हर फ्लाइट्स की बुकिंग की जांच की.
तेजपाल दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल अपनी अग्रिम जमानत अर्जी पहले ही वापस ले चुके थे. ऐसे में उनके पास गिरफ्तारी से बचने का और कोई रास्ता नहीं बचा था. लिहाजा, कोर्ट का वक्त शुरू होते ही तेजपाल के वकील उसी कोर्ट में जा पहुंचे, जहां से उनके पर पुलिस ने गैर जमानती वारंट हासिल किया था. तेजपाल की इस कोशिश का फायदा ये हुए कि उन्हें कोर्ट से ढाई बजे तक के लिए गिरफ्तारी से राहत मिल गई. जाहिर है, अब तेजपाल एक बार फिर खुली हवा में सांस ले सकते थे. और अदालत से मिले इसी अभयदान के बाद वो अपने वकील और घरवालों के साथ गोवा जाने के लिए दिल्ली से रवाना हुए.
घर वालों ने सोचा था कि उनका तरुण बड़ा होकर कोई बड़ा अधिकारी बनेगा. लेकिन तरुण की आंखों में एक के बाद एक तीन सपने तैरते रहे. पहला सपना था किताब लिखना. दूसरा सपना टीवी पर आना और तीसरा सपना अपना डॉट कॉम शुरु करना. इन सपनों पर सवार होकर चंडीगढ़ से दिल्ली तक तरुण तेजपाल एक से बढकर एक किला फतेह करते रहे. लेकिन खुद के आचरण और ईमान का किला भरभराकर सीधे कानून की चौखट पर गिरा है.
तेजपाल के खुलासे
तहलका ने तेजपाल की सोच के दायरे को विस्तार दिया. और तहलका के नाम पर ही उनके डॉट-कॉम ने खोजी
पत्रकारिता की दुनिया में उनकी धाक और साख को. 2007 में तहलका ने ये स्टिंग किया था कि कैसे गुजरात के नरोडा पटिया में बीजेपी, वीएचपी और बजरंग दल के लोगों ने दंगे कराए थे. तेजपाल ने इस बात का भी खुलासा किया था कि कैसे 700 करोड़ के टेलीकॉम घोटाले में दयानिधि मारन का हाथ था. और कैसे दिल्ली में बढ़ती बलात्कार की घटनाएं दिल्ली पुलिस की गैर-जिम्मेदार रवैये का नतीजा हैं. लेकिन इत्तफाक देखिए कि वही तेजपाल आज बलात्कार की कानूनी धाराओं का सामना कर रहे हैं. दिल्ली से गोवा तक.
लेकिन तहलका नामकी अपनी ड्रीम मैगजिन को निकालने से पहले तरुण तेजपाल ने अपनी कलम का जादू भी दिखा दिया था. साल 2005 में तरुण तेजपाल का उपन्यास द अलकेमी ऑफ डिजायर छपकर सामने आया.
तेजपाल का उपन्यास
8 बरस पहले यौन शौषण को लेकर तेजपाल ने ऐसा उपन्यास लिखा कि दुनिया में उसने धूम मचा दी.
तरुण तेजपाल के इस पहले उपन्यास 'द अलकेमी ऑफ़ डिज़ायर' को बैड सेक्स अवार्ड के लिए चुना गया था .
इत्तेफाक देखिए कि 8 साल बाद खुद तरुण तेजपाल इसी बैड सेक्स के कठघरे में खडे है . ब्रिटेन का यह पुरस्कार उसी किताब को दिया जाता है जिसमें यौन क्रिया का सबसे ज्यादा शर्मनाक वर्णन हो. ये भी संयोग देखिये कि
पीड़िता के जिस ई-मेल को आधार बनाकर गोवा पुलिस ने केस दर्ज किया उसे वो गोवा में सबसे शर्मनाक
मानती है.
खास बात यह है कि तरुण तेजपाल के इस उपन्यास को फ्रांसीसी साहित्य पुरस्कार प्रिक्स फ़ेमीना की अंतिम सूची में भी चुना गया जिसकी ज्यूरी में सिर्फ महिलाएं होती हैं और संयोग देखिये कि तरुण तेजपाल को लेकर उनकी अपनी पत्रिका तहलका की महिलाओं ने ही सबसे पहले इस्तीफा देना शुरू किया क्योंकि वह तरुण तेजपाल के यौन उत्पीड़न पर दी गई उनकी दलीलों से बेहद आहत थीं.
खोजी पत्रकारिता को ग्लैमर के रंग में रंगने वाले तरुण तेजपाल ने बहुत कुछ कमाया. नाम के साथ बड़ा दाम भी. एक पत्रकार से कारोबारी भी बन गए. लेकिन सब कुछ कमाने के नशे में शायद तेजपाल सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइंस को भूल गए और भूल गए संपादक की गरिमा को. अंजाम धरती से आसमान तक उड़ रहा है.
पीड़िता का दर्द
'मुझे पता नहीं कि मैं खुद या फिर मेरे दोस्त और समर्थक मुझे अब भी एक बलात्कार की शिकार लड़की के तौर पर देखने को तैयार हैं या नहीं... लेकिन सच यही है कि ये सबकुछ पीड़ित तय नहीं करती, बल्कि ये क़ानून तय करता है... और इस मामले में कानून बिल्कुल साफ है, तेजपाल ने मेरे साथ जो कुछ किया, वो रेप यानी
बलात्कार के दायरे में ही आता है.' ये अल्फाज हैं उस बहादुर लड़की के, जिसने तहलका के चीफ और जाने-माने पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न का इल्जाम लगाकर पूरे देश में तहलका मचा दिया है.
शुक्रवार को इस लड़की ने मीडिया को दिए गए अपने बयान में ना सिर्फ अपना दिल खोल कर रख दिया, बल्कि ये भी बताया कि तमाम मुश्किलों के बावजूद वो कैसे इस लड़ाई में डटी हुई है. लड़की ने कहा है, 'तेजपाल की तरह ये लड़ाई मेरे लिए दौलत और रसूख की लड़ाई नहीं, बल्कि इज्जत की लड़ाई है. ये बताने की लड़ाई है कि मेरा जिस्म मेरे नियोक्ता की जागीर नहीं है. लेकिन हकीकत यही है कि ये शिकायत दर्ज करवाते ही मैंने ना सिर्फ अपनी पसंदीदा नौकरी बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता भी खो दी है, बल्कि अपने आप को निजी हमलों के लिए भी तैयार कर लिया है. ये लड़ाई आसान नहीं है.'
पीड़ित लड़की ने अगर इस लड़ाई में उसका साथ देने के लिए लोगों का शुक्रिया अदा किया, तो खुद पर उंगली उठानेवालों को भी आड़े हाथों भी लिया. उसने कहा, 'अगर इस लड़ाई में मैं चारों ओर से मिल रहे समर्थन के लिए लोगों का शुक्रगुजार हूं तो मेरी लड़ाई को चुनाव से पहले की सियासी साजिश बताने जैसे कुछ बयानों की वजह से आहत भी हूं.'