हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में बनी इस कब्र से लंबी कब्र कहीं नहीं होगी, वैसे भी इंसान जब कब्र खोदता है तभी गहराई नापता है, पर यहां ये कब्र तो खुद ही बन गई. और वो भी पहाड़ में बन रही एक सुरंग के 30 मीटर अंदर. फिलहाल इस कब्र में पिछले 8 दिनों से 3 ज़िंदा इंसान दफन हैं.
जी हां, पिछले 8 दिनों से इस कब्र से इन तीन लोगों को सही-सलामत बाहर निकालने की जद्दोजहद चल रही है. इन तीनों का बाहर की दुनिया से संपर्क का कोई जरिया है तो बस मलबे की दीवार में एक छेद के रास्ते पार किया गया कैमरा. जो इन लोगों का हाल बाहर की दुनिया और इनके अपनों तक पहुंचा सकता है. सुरंग के 30 मीटर अंदर कब्र में जिंदा दफन ये मजबूर इंसान इस कैमरे के जरिये अपना हाल अपने घरवालों को बता सकते हैं. फिलहाल ये तीनों शख्स चारों तरफ से एक ऐसी गुफा में फंसे हैं, जिसके चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ हैं.
आलम ये है कि ये ना तो इस गुफा से बाहर निकल सकते हैं और ना ही कोई इनका हाल जानने के लिए इस गुफा के अंदर जा सकता है. टनल में फंसे इन मज़दूरों के लिए एक-एक पल बिताना कितना मुश्किल हो रहा है इस बात का अंदाजा हम शायद ही लगा सकें. बाहर इनके परिवार वाले इनके बाहर जिंदा आने की दुआ कर रहे हैं तो अंदर इनके भी जेहन में अपने परिवार से मिलने की चाहत है. फिलहाल इस सुरंग में फंसे मजदूरों का हौसला बढ़ाने का एक ही जरिया है वो माइक्रोफोन और वो सीसीटीवी कैमरा जिसकी मदद से वो अपने दिल का हाल बाहर बैठे अधिकारियों को बता सकते हैं.
इस अंधेरी सुरंग में कैद इन लोगों पर एक-एक पल बिताना और सही-सलामत बाहर निकलने का इंतजार कितना भारी गुजर रहा होगा हम और आप तो सिर्फ इसका अहसास ही कर सकते हैं. एक अंधेरी सुरंग, ना हवा और ना पानी, और उसमें फंसे 3 मजदूर. ये मंजर सोच कर ही रौंगटे खड़े हो जाएं, लेकिन सच यही है कि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में कीरतपुर-नेरचौक हाईवे पर बन रही एक सुरंग में तीन मजदूर पिछले 8 दिन से फंसे हैं. हालांकि एनडीआरएफ की टीम उन्हें रेस्क्यू करने की पूरी कोशिश कर रहा है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ये लोग इस कब्र से जिंदा बाहर आ पाएंगे?
गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में कीरतपुर-नेरचौक फोरलेन हाईवे पर पनोह के पास करीब डेढ़ किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने का काम चल रहा था. 12 सितंबर 2015 की रात करीब साढ़े आठ बजे इसी निर्माणाधीन टनल में काम कर रहे मज़दूरों की शिफ्ट बदल रही थी, उस वक्त टनल के अंदर 16 मजदूर काम कर रहे थे. अभी इन 16 में से 13 लोग ही बाहर आ पाए थे कि तभी अचानक टनल के अंदर एक हादसा हुआ और सुरंग की 25 फीट ऊंची छत से अचानक मलबा गिरा और वो तीनों मजदूर, सतीश कुमार, मनी राम और ह्दय राम सुरंग के अंदर ही फंस गए.
आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर की टीहरा सुरंग में फंसे मजदूरों को 8 दिन और 190 घंटे बीत जाने के बाद भी बाहर नहीं निकाला जा सका है. सुरंग में फंसे सतीश और मनीराम ने 4 दिन इस घुप्प अंधेरे में बिना खाए पिए काट दिए. पांचवें दिन उनसे संपर्क किया जा सका. अधिकारियों के मुताबिक अंधेरी सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने में सख्त चट्टानें रुकावट बन रही हैं. इतना ही नहीं जब भी वो सुरंग में मलबे को हटाने की कोशिश करते हैं तो ऊपर से और मलबा गिर जाता है.
हालांकि मजदूरों को निकालने के लिए बठिंडा और ऊना से एनडीआरएफ टीमें मौके पर मौजूद हैं. सूत्रों के मुताबिक मजदूरों को सुरंग से बाहर निकालने के लिए राजस्थान से आधुनिक ड्रिलिंग मशीन मंगाई गई है. जिसकी मदद से मलबे के आर-पार 30 मीटर होल किया जा चुका है. अधिकारियों के मुताबिक शुक्रवार को टनल में फंसे मजदूरों को एक पाइप की मदद से दिन में तीन बार खाना भेजा गया. इसके अलावा टनल में फंसे मजदूरों का हौंसला बढ़ाने के लिए सीसीटीवी और माइक्रोफोन के जरिए मजदूरों से संपर्क बनाया हुआ है. सूत्रों के मुताबिक मज़दूरों ने इस टनल खी छत में एक बड़े क्रैक यानि छेद होने के बारे में अधिकारियों से शिकायत की थी और उनका आरोप है कि अधिकारियों ने उनकी इस शिकायत को संजीदगी से नहीं लिया. और उसके कुछ वक्त बाद ही ये हादसा हो गया. लेकिन अभी सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर अंधेरी कब्र में रहकर मौत के खिलाफ ये जंग ये तीनों आखिर कैसे लड़ेगी? क्या 7 दिनों तक कब्र में फंसे रहने के बावजूद ये इंसान जिंदा निकल पाएंगे? या फिर ये कब्र इन तीनों लोगों के लिये सचमुच कब्र ही साबित होगी?
कुछ साल पहले चिली में भी सोने की एक खदान में ठीक ऐसा ही हादसा हुआ था. वहां 33 मज़दूर 69 दिन तक सोने की खदान में फंसे रहे. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आखिरकार 69 दिन की जद्दोजहद के बाद उन्हें खदान से सही-सलामत बाहर निकाल लिया गया. ये वाकई किसी करिश्मे से कम नहीं था. (कैप्सूल से बाहर आने पर खुश होते खदान मजदूर, उनके साथी और घरवालों के शॉट लगाएं) मौत के मुंह से वापस आने की खुशी क्या होती है कब्र में 69 दिन बिता कर जिंदा निकले इन इंसानों से पूछिये. और पूछिए इनके उन अपनों से जो इन्हें जिंदा देखने की उम्मीद पूरी तरह से खो चुके थे. सचमुच ये किसी करिश्मे से कम नहीं था. क्योंकि दुनिया में आज तक ऐसा नहीं हुआ कि जमीन की सतह से ढाई हजार फीट नीचे.
बिना हवा, पानी और खाने के दो महीने से ज्यादा कैद रहने के बाद 33 इंसान जिंदा निकल आए हों. मगर 33 इंसानों की इस टोली ने अपने जिंदा रहने के जज्बे और जुनून से ये साबित कर दिया है कि इंसान अगर चाहे तो जिंदगी की जंग मौत के खिलाफ भी जीत सकता है. दरअसल 5 अगस्त 2010 को चिली की इस सोना खदान में पत्थर गिरने के बाद तैंतीस मजदूर जमीन के नीचे फंस गये थे. चूंकि खदान का ये हिस्सा सख्त पत्थरों से पटा था इसलिये राहत और बचाव कार्य में लगे लोगों को इनसे संपर्क बनाने में तीन हफ्तों का वक्त लग गया. इस दौरान ये खदान मजदूर हजारों फीट नीचे बने एक तहखाने में बंद रहे. और तैंतीस मजदूरों के लिये महज दो दिनों का खाना. इन्होंने तीन हफ्तों तक चलाया. आखिरकार तीन हफ्तों के बाद जब ड्रिलिंग मशीन का एक सिरा इन मजदूरों के नजदीक पहुंचा तो उन्होंने अपने जिंदा होने का संदेश एक कागज पर लिख उसी ड्रिलिंग मशीन के जरिये वापस जमीन तक पहुंचाया. तब पहली बार इस खदान के अंदर एक छेद के सहारे मजदूरों तक सीसीटीवी कैमरा और खाने का कुछ सामान पहुंचाया जा सका.
इस तरह एक एक कर 69 दिन गुजर गये और 5 अगस्त को कब्र में दफन हुए 33 इंसान 12 अक्तूबर की रात ड्रिलिंग मशीन के जरिये खोदी गई सुरंग के रास्ते जिंदा बाहर आना शुरू हो गए. चिली के लोगों के लिये. खासतौर पर खदान मजदूरों के घरवालों के लिये ये मौका किसी जश्न से कम नहीं था. सोने के खान में सोना निकालने पहुंचे थे 33 मजदूर, पर अचानक सोने की खान धंस गई और जिस रास्ते से वो अंदर उतरे थे वो रास्ता पूरी तरह से बंद हो गया. बाहर निकलना तो छोड़िए बाहर की रोशनी तक अंदर नहीं आ रही थी. दुनिया समझी कि सारे मजदूर मारे गए. मगर 17 दिन बाद अचानक एक चमत्कार होता है. खदान के अंदर एक बड़े बेडरूम जैसी जगह पर 33 लोग 69 दिनों तक मौत से जंग लड़ते रहे. एक छोटी-सी जगह इतने लोग और ऐसे हालात में जहां ये ठीक-ठीक बताना भी मुश्किल हो कि अगले पल क्या होगा, और ऐसी जगह से इनका बाहर निकलना किसी चमत्कार से कम नहीं. वैसे इस चमत्कार का श्रेय अगर खदानकर्मियों के जज्बे को दिया गया.
वैसे इसमें बचाव दल की कोशिशों और घरवालों की दुआओं का भी उतना ही हाथ रहा. खदान के बाहर मौजूद लोग चिट्ठी भेज कर और फोन के जरिये इन लोगों का हौंसला बढ़ाने की लगातार कोशिश करते रहे. लोग खदान में प्रार्थना कर सकें सकें इसके लिए सुराख के जरिये बाईबिल भेजी गई. खुद चिली सरकार के मंत्री इस मुहिम में शामिल रहे. सरकार ने खदान में फंसे लोगों को साफ कहा था कि उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जाएगा. यही वजह है कि जब कंगाली की वजह से खदान कंपनी ने रेस्क्यू ऑपरेशन से हाथ खड़े कर दिए थे तो सरकार ने खुद इसका जिम्मा संभाल लिया था. जी हां, ऐसे मुश्किल हालात से लड़ने के लिए जरूरी है मजबूत इरादे का. मजबूत हौंसले का होना. क्योंकि इस हालत में उम्मीद खोने का मतलब था मौत. लेकिन, ये मिशन आसान भी नहीं था. लेकिन फिर भी बचाव दल ने दिनरात अपनी कोशिश जारी रखी और आखिरकार 69 दिन के बाद सभी 33 लोगों को इस खदान से सही सलामत बाहर निकाल लिया गया था.