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कलयुगी 'पूतनाओं' ने क्यों ली 42 मासूमों की जान?

क्या कोई फूल जैसे मासूम बच्चों का भी कत्ल कर सकता है? वो भी सिर्फ अपना मकसद पूरा करने के लिए? ये सवाल तब बेमानी हो जाते हैं, जब बात चलती है कोल्हापुर की उन तीन सीरियल किलर मां-बेटियों की, जिन्होंने एक-दो या तीन नहीं, बल्कि कुल 42 छोटे-छोटे और नन्हे बच्चों को तड़पा-तड़पाकर मार डाला.

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क्या कोई फूल जैसे मासूम बच्चों का भी कत्ल कर सकता है? वो भी सिर्फ अपना मकसद पूरा करने के लिए? ये सवाल तब बेमानी हो जाते हैं, जब बात चलती है कोल्हापुर की उन तीन सीरियल किलर मां-बेटियों की, जिन्होंने एक-दो या तीन नहीं, बल्कि कुल 42 छोटे-छोटे और नन्हे बच्चों को तड़पा-तड़पाकर मार डाला.

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यकीन मानिए, ये आजाद हिंदुस्तान में किसी औरत का पहला चेहरा है, जो इतना भयानक है. तभी ये आजाद हिंदुस्तान में फांसी पर चढ़ने वाली पहली औरतें बनने जा रही हैं.

देश के सबसे चर्चित सरकारी वकील उज्ज्वल निकम जिनका जिक्र करते हुए भावुक हो जाएं, जिनकी तुलना वो राक्षसी पूतना से करें और जिन्हें वो अजमल आमिर कसाब से भी हटकर बताएं, उनके बारे में सोचना भी मुश्किल लगता है. शायद यही हिंदुस्तान की इन सबसे खौफनाक कातिल बहनों और उनकी मां की पहचान है.

यह किस्सा है कोल्हापुर उन तीन हत्यारी मां-बेटियों का, जिनकी कहानी सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, रीढ़ की हड्डी में झुरझुरी दौड़ जाती है. यह यकीन करना भी मुश्किल हो जाता है कि इन तीन मां-बेटियों ने मिलकर 1990 से 96 के दरम्यान यानी छह सालों में एक, दो, दस, बीस या तीस नहीं, बल्कि पांच साल से कम उम्र के 42 मासूम बच्चों को अगवा करके मौत के घाट उतार दिया होगा. मगर, क्या करें? यही सच है. अब इसी सच की बदौलत देश के राष्ट्रपति तक ने इन्हें फांसी पर लटकाए जाने के देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है.

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लेकिन सवाल यह है कि आखि‍र ये तीन मां-बेटियां ऐसा करती क्यों थीं? क्यों वो चुन-चुनकर छोटे-छोटे बच्चों को अपना निशाना बनाती थीं? फूल से मासूम और अबोध बच्चों को मौत के घाट उतारने की उनकी ये कैसी सनक थी? आखि‍र कैसे ये तीनों मां-बेटियां गुनाह के रास्ते से गुजरकर फांसी के फंदे तक पहुंचीं? इनकी पहचान इस तरह है- अंजना गावित, 42 मासूमों के कत्ल का गुनहगार, 1997 में मौत. रेणुका गावित, अंजना की बड़ी बेटी और 42 मासूमों की कातिल, यरवदा जेल, पुणे. सीमा गावित, अंजना की छोटी बेटी और 42 मासूमों की कातिल, यरवदा जेल, पुणे.

एक वक्त था, जब ये तीनों मां-बेटियां महाराष्ट्र के मुंबई, कोल्हापुर, नासिक, पुणे और आस-पास के इलाकों में खौफ का दूसरा नाम बन चुकी थीं. इन्होंने नामालूम कितनी ही मांओं की गोद सूनी कर दीं. लेकिन एक रोज आखि‍रकार इनका भी भांडा फूटा और ये सभी की सभी पुलिस के हत्थे चढ़ गईं. लेकिन गुनाह को अंजाम देने का इनका तरीका जितना खतरनाक था, इनके पकड़े जाने की कहानी भी उतनी ही चौंकानेवाली.

वो पूरे छह साल तक महाराष्ट्र और गुजरात में घूम-घूमकर बच्चों को मारती रहीं. पूरे छह साल तक अनगिनत मासूमों के मां-बाप अपने कलेजे के टुकड़ों पर रोते रहे. खास बात यह कि उनके निशाने पर हमेशा पांच साल के कम उम्र के बच्चे ही होते. लेकिन एक रोज इनकी करतूतों का भांडा भी फूट ही गया और 42 बच्चों को मारनेवाली तीनों मां-बेटियां पुलिस की गिरफ्त में आ गईं. लेकिन आखि‍र क्यों करती थीं, वो मासूम बच्चों का क़त्ल?

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1996 में कोल्हापुर बस स्टैंड पर एक लाश मिली थी. दो साल के एक मासूम बच्चे की लाश. लेकिन ये लाश जिस हालत में बरामद हुई थी, वो बेहद चौंकानेवाली थी. इस बच्चे को किसी ने बिजली के खंभे पर पटककर उसे मौत के घाट उतारा था. दूसरे लफ्जों में कहें, तो बच्चे को कातिल ने एक खंभे पर ऐसे दे मारा था कि उसके जिस्म के टुकड़े-टुकड़े हो चुके थे.

अब सवाल ये था कि एक-दो साल के मासूम के साथ भला किसी इंसान की ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती थी कि वो बच्चे को इतनी भयानक मौत दे? बस इसी सवाल का पीछा करती हुई, जब कोल्हापुर पुलिस इस बच्चे के कातिलों तक पहुंची, तो जो कहानी सामने आई, उसने ना सिर्फ पुलिसवालों को बल्कि कोल्हापुर समेत पूरे महाराष्ट्र को चौंका दिया. पुलिस को पता चला कि कातिलों का शिकार हुआ बच्चा दरअसल कुछ रोज पहले ही चोरी चला गया था. लेकिन इससे पहले कि पुलिस इस बच्चे को बरामद कर पाती, उसकी हत्या कर दी गई.

वैसे ये अकेला बच्चा नहीं था, जिसे चुराए जाने के बाद किसी ने मौत के घाट उतार दिया था, बल्कि कोल्हापुर, सतारा, नासिक, पुणे और आस-पास के इलाकों से कई बच्चे रहस्यमयी तरीके से गायब हुए और फिर मार डाले गए थे. लिहाजा, सरकार ने इन मामलों की जांच सीआईडी के हवाले कर दी और तब जल्द ही सीआईडी ने इस सिलसिले में अंजना गावित नाम की एक महिला और उसकी दो बेटियों रेणुका और सीमा को गिरफ्तार किया. पहले तो ये तीनों ही बच्चे चुराने और मारने के इल्जामों से इनकार करती रहीं, लेकिन जब पुलिस ने इनके साथ पकड़े गए रेणुका के पति किरण शिंदे को गिरफ्तार किया, तो उसने सरकारी गवाह बनने की शर्त पर जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर लोग सकते में आ गए.

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दरअसल, ये तीनों मां-बेटियां चोरी और झपटमारी किया करती थीं. लेकिन चोरी के दौरान पकड़े जाने से बचने के लिए इन बहनों ने जो तरीका अपना रखा था, वैसा ना तो इनसे पहले किसी ने और अपनाया और ना ही इनके बाद किसी ने. दूसरे लफ्जों में कहें तो गुनाह को अंजाम देने की इन मॉडस ऑपरेंडी सबसे जुदा थी. ये बहनें सबसे पहले तो भीड़-भाड़वाली जगहों से पांच साल से कम उम्र के बच्चों को चुरा लिया करतीं और फिर इन्हीं बच्चों को गोद में लेकर चोरी और झपटमारी के काम में निकल जातीं. लेकिन जैसे ही कोई इन्हें ऐसा करते रंगे हाथों पकड़ता, ये फौरन अपने पास मौजूद बच्चे को जमीन पर पूरी ताकत से पटक देतीं. अब लोगों का ध्यान चोरी से हटकर बच्चे पर चला जाता और बस कुछ इसी तरह मौके का फायदा उठाकर ये लोगों के चंगुल से बच निकलतीं.

ये सिलसिला लंबे वक्त तक चलता रहा. ये तीनों इसी तरह बच्चों के सहारे गुनाहों को अंजाम देतीं और मौका मिलते ही उन्हें मौत के घाट उतार देती. लेकिन ये तीनों बच्चों को मारने और उन पर जुल्म ढाने के सिलसिले में इतनी आगें निकल गईं कि शैतान भी शरमा जाएं.

42 बच्चों का कत्ल कोई मामूली बात नहीं होती. वो भी इतने छोटे बच्चे, जिन्हें अपनी साज-संभाल की भी समझ नहीं. लेकिन इन तीनों मां-बेटियों ने ना सिर्फ ऐसा किया, बल्कि जिस तरीके से किया, उसे सुनकर एक बारगी इंसाफ की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे जज भी चकरा गए. तभी इन्हें मिली, 70 साल की कैद और 7 बार फांसी की सजा. जी हां, यही वो सजा है, जो कोल्हापुर की एक अदालत ने इन दो बहनों के लिए तय किया है. दरअसल, गिरफ्तार होने के एक साल के भीतर इन दोनों बहनों की मां अंजना गावित की तो जेल में ही मौत हो गई. लेकिन अदालत से दोनों बहनों को आखि‍रकार यही सजा मिली.

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मामला कोल्हापुर की कोर्ट से हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट से होता हुआ राष्ट्रपति तक पहुंचा, लेकिन राष्ट्रपति ने भी इन बहनों की करतूत को देखते हुए इनकी दया याचिका खारिज कर दी. यानी कल को जब भी इन बहनों की फांसी होगी, आजाद हिंदुस्तान में किसी महिला को फांसी पर चढ़ाए जाने का यह पहला मामला होगा.

लेकिन इन तीनों को कानून की नजर में गुनहगार ठहराया जाना पुलिस के लिए कोई आसान काम नहीं था. इसके लिए सीआईडी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी. उसने ना सिर्फ कई अहम परिस्थितिजन्य सबूत इकट्ठा किए, बल्कि एक के बाद एक 156 गवाह अदालत के सामने पेश किए. पूछताछ में तीनों ने 42 बच्चों को अगवाकर मारने की बात पहले ही कबूल कर चुकी थीं. लेकिन पुलिस ने पहले सिर्फ 12 मामलों में ही एफआईआर दर्ज की थी. लिहाजा, इतने ही मामलों में उसने चार्जशीट दाखिल की गई. लेकिन इन गवाहों में सबसे अहम एक मासूम भी था, जो इनके चंगुल से भागने में कामयाब रहा.

लेकिन जिस बात ने अदालत को इनके खिलाफ सबसे बड़ी सजा सुनाने को मजबूर किया, वो था इनका बच्चों को अगवा करने और उन्हें मारने का तरीका. पुलिस के मुताबिक, एक वाकया मुंबई की गिरगांव चौपाटी का था. यहां एक रोज रेणुका जेब काटती हुई रंगे हाथों पकड़ ली गई. लेकिन इसके बाद रेणुका ने जो कुछ किया, उसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. खुद को बचाने के लिए इसने अपने आप को बेगुनाह बताते हुए गुस्से का नाटक करते हुए गोद में रखे एक साल के गुड्डू को जमीन पर पटक दिया. गुड्डू के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वो दर्द के मारे बुरी तरह रोने लगा. इससे आसपास के लोग घबरा गए और रेणुका भाग निकली.

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जिस बच्चे की बदौलत वो लोगों के चंगुल से छूटने में कामयाब हुई, अगले चंद मिनटों में ही उसने उसी बच्चे को इतनी भयानक मौत दी कि जिसने भी सुना उसके रोंगटे खड़े हो गए. तीनों मां-बेटियां ने गुड्डू को जमीन पर पटककर पहले तो उसके गले पर खड़ी हो गईं और फिर बच्चे के ऊपर कूद गई और इसी तरह साल के नन्हें गुड्डू की जान चली गई.

बच्चों को जमीन पर पटकना और खंभों से टकराकर मारना तो खैर उनका पुराना हथियार बन चुका था. एक बार तो तीनों कोल्हापुर के थिएटर में फिल्म देखने पहुंची और उनके साथ पॉलिथीन में पैक एक बच्चे की लाश भी थी. लेकिन तीनों फिल्म देखने में इतनी मशगूल हो गईं कि उन्हें लाश फेंकने की भी याद नहीं रही और जब फिल्म टूटी, तो थिएटर के पास एक बाथरूम में बच्चे की लाश फेंककर भाग निकलीं.

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