हिन्दुस्तान को आजाद हुए 70 साल हो चुके हैं. इस 15 अगस्त को हम आजादी की 70वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. देश को आजाद कराने में लाखों लोगों ने अपनी जान की आहूती दे दी. हजारों लोगों ने अपने घर-द्वार छोड़ दिए. सैकड़ों लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध हुई क्रांति का नेतृत्व किया. जुर्म आज तक ऐसे ही क्रांतिवीरों पर एक सीरीज पेश कर रहा है, जो अंग्रेजों की नजर में अपराधी थे, लेकिन उनके द्वारा किए गए उस अपराध की वजह से देश को आजादी मिली. इस कड़ी में पेश है विष्णु गणेश पिंगले की कहानी.
विष्णु गणेश पिंगले की दास्तान
- विष्णु गणेश पिंगले का जन्म 2 जनवरी 1888 को पूना के गांव तलेगांव में हुआ.
- साल 1911 में वह इंजीनियरिंग की शिक्षा के लिए अमेरिका पहुंचे. वहां उन्होंने सिटेल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग किया.
- यहीं पर लाला हरदयाल जैसे नेताओं का उन्हें मार्गदर्शन मिला. महान क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा से उनकी मित्रता थी.
- देश में गदर पैदा करके देश को स्वतंत्र करवाने का मौका देखकर विष्णु पिंगले बाकी साथियों के साथ भारत लौट आए.
- यहां उन्होंने कलकत्ता में श्री रास बिहारी बोस से मुलाकात की, जिसके बाद वह शचींद्रनाथ सांयाल को लेकर पंजाब चले आए.
- उस समय पंजाब, बंगाल और उतर प्रदेश में क्रांति का पूरा प्रबंध हो गया था, लेकिन एक गद्दार की गद्दारी के कारण सारी योजना विफल हो गई.
- विष्णु को नादिर खान नामक एक व्यक्ति ने गिरफ्तार करवा दिया. गिरफ्तारी के समय उनके पास बमों का जखीरा मौजूद था.
- एक ब्लॉगर विष्णु शर्मा लिखते हैं कि जिस दौर में क्रांतिकारी एक पिस्टल के लिए तरसे थे, उस वक्त पिंगले ने 300 बमों का इंतजाम किया था.
- गिरफ्तारी के बाद विष्णु पिंगले पर मुकदमा चलाया गया. 17 नवम्बर 1915 को सेंट्रल जेल लाहौर में उन्हें फांसी दे दी गई.
- विष्णु पिंगले को मेरठ के जेल में कैद किया गया था. वहां उनसे उनकी मां मुलाकात करने आई, तो उन्होंने पैर छूकर कहा, 'मां, फालतू में वकीलों को पैसे मत दे देना, ये लोग हमें फांसी देने वाले हैं.' मां रोने लगी, उन्होंने कहा, 'मेरे बेटे, तुझे मौत का डर नहीं लगता?' तब पिंगले ने कहा, 'मां, मातृभूमि को स्वतंत्र कराने की उत्कट इच्छा है, यही मेरी अंतिम इच्छा है. इस जन्म में मातृभूमि का कर्ज चुका लूं, अगले जन्म में फिर तेरे पेट से जन्म लूंगा और तेरा कर्ज चुकाऊंगा.'