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सत्ता को उंगलियों पर नचाने वाले यादव सिंह की अनकही दास्तान

करोड़ों की संपत्ति के मामले में फंसे नोएडा अथॉरिटी के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह से पूछताछ के बाद सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया है. सीबीआई उनसे पूछताछ कर रही है. इससे पहले उनसे जुड़े असिस्टेंट प्रोजेक्ट इंजीनियर रमेंद्र को भी सीबीआई ने गिरफ्तार किया था.

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नोएडा अथॉरिटी के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह
नोएडा अथॉरिटी के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह

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भ्रष्टाचार, आपराधिक साजिश, धेखाधड़ी, फर्जीवाड़ा और कानून के उल्लंघन में फंसे नोएडा अथॉरिटी के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह आखिरकार जेल सीबीआई की गिरफ्त में आ ही गए. बुधवार को सीबीआई ने लंबी पूछताछ के बाद उनको गिरफ्तार कर लिया है. उनकी अकूत दौलत और ऊंची राजनैतिक पैठ के बारे में किसी को कभी गलतफहमी नहीं रही. उनके काले कारनामों के ढेरों कागजात वर्षों से मुख्यमंत्री कार्यालय, सीबीसीआईडी, आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय में पड़े रहे थे. इसके बावजूद उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा था. लेकिन अब सीबीआई उनसे कई राज उगलवाने के लिए तैयार है.

यूपी में मायावती की सरकार थी, तब वे नोएडा अथॉरिटी का चीफ इंजीनियर थे. उन्होंने जमकर पैसा कमाया. 2012 में अखिलेश यादव की नई सरकार आई और उस पर शिकंजा कसने का नाटक हुआ. सीबीसीआईडी जांच भी हुई, लेकिन उन्हें फटाफट क्लीनचिट मिल गई. साथ ही तोहफे में नोएडा के अलावा ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी और यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी की चीफ इंजीनियरी भी मिल गई. 1000 करोड़ रुपये की दौलत के मालिक यादव सिंह पैसा कमाने की वह सरकारी मशीन बन गए, जिसे सजा देना तो दूर, हाशिए पर डालने की कोशिश भी कोई सरकार नहीं कर सकी.

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आयकर विभाग के हाथ ऐसी लगी भ्रष्ट मछली
आखिर इतना पैसा कोई अकेले थोड़े ही खाता है, कोई न कोई सियासी आका तो होगा जिसके पास रिश्वत की रकम का बड़ा हिस्सा पहुंचता था. उनकी बड़ी-बड़ी कोठियों के फोटो देखने को मिले थे. पसंदीदा महंगी कार की डिक्की से 10 करोड़ नकद निकलते भी लोगों ने देखे. ऐसे में लगा था कि एक बहुत बड़ी भ्रष्ट मछली आयकर विभाग के हत्थे चढ़ी है. लेकिन एक लंबी प्रक्रिया के दौरान वह न तो गिरफ्तार हो पा रहे थे, न गिरफ्तारी की संभावना लग रही थी. ऐसे में सीबीआई के हाथ में केस जाने के बाद एक बार लगा कि कुछ कार्रवाई होगी, लेकिन उसमें भी काफी समय लगा.

आगरा के गरीब दलित परिवार में हुआ जन्म
सत्ता को अपनी उंगलियों पर नचाने का गुमान रखने वाले यादव सिंह का जन्म आगरा के गरीब दलित परिवार में हुआ था. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमाधारी यादव सिंह ने 1980 में जूनियर इंजीनियर के तौर पर नोएडा अथॉरिटी में नौकरी शुरू की. 1995 में प्रदेश में पहली बार जब मायावती सरकार आई तो 1995 में 19 इंजीनियरों के प्रमोशन को दरकिनार कर सहायक प्रोजेक्ट इंजीनियर के पद पर तैनात यादव सिंह को प्रोजेक्ट इंजीनियर के पद पर प्रमोशन दे दिया गया. साथ ही उन्हें डिग्री हासिल करने के लिए तीन साल का समय भी दिया गया.

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यादव सिंह ने जो चाहा वो हर सरकार ने दिया
इसके बाद 2002 में यादव सिंह को नोएडा में चीफ मेंटिनेंस इंजीनियर (सीएमई) के पद पर तैनाती मिल गई. अगले नौ साल तक वे सीएमई के पद पर ही तैनात रहे, जो प्राधिकरण में इंजीनियरिंग विभाग का सबसे बड़ा पद था. इस वक्त तक अथॉरिटी में सीएमई के तीन पद थे. यादव सिंह इससे संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने कई पद खत्म कराकर अपने लिए इंजीनियरिंग इन चीफ का पद बनवाया. यानी वे जो चाह रहे था, सरकारें उसे पेश करने को हाजिर थीं. नौकरी के साथ ही वह बेनामी कंपनियों का जाल बुनते गए. कुछ सौ रुपए से शुरू होने वाली ये कंपनियां कुछ ही साल में करोड़ों का कारोबार करने लगीं.

परिवार के नाम कंपनियों का मालिकाना हक
यादव सिंह की ज्यादातर कंपनियों का मालिकाना हक उनकी पत्नी कुसुमलता, बेटे सनी और बेटियों करुणा और गरिमा के पास है. कोई कंपनी ऐसी नहीं है जिसका मालिक वह खुद हों. इनमें से एक कंपनी है चाहत टेक्नोलॉजी प्रा. लि. इस कंपनी का दफ्तर 612, गोबिंद अपार्टमेंट्स, बी-2, वसुंधरा एन्कलेव, दिल्ली 96 दिखाया गया. इसके मालिकान में यादव सिंह की पत्नी कुसुमलता भी शामिल थीं. 2007-08 में इस कंपनी की कुल परिसंपत्ति और कारोबार 1856 रुपये और पेड अप कैपिटल 100 रुपये थी. लेकिन एक साल में पेड अप कैपिटल एक लाख रुपये और नेट फिक्स्ड परिसंपत्ति 5.47 करोड़ रुपये हो गई.

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इनपुट- इंडिया टुडे

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