अजीब कशकमश भरा सवाल भी है और फैसला भी. एक बेटी जो बालिग है वो अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है. कर भी लेती है. मगर बेटी का बाप शादी के खिलाफ है. ऊपर से बाप विधायक भी है. अब बेटी और उसका पति डर के मारे छुपते फिरते हैं, पर कब तक. लिहाज़ा मदद मांगने वो सोशल मीडिया पर आ जाते हैं. बात फैल जाती है. सवाल बाप से पूछे जाते हैं. अब सारी सफाई के साथ-साथ खुद बाप भी एक सवाल पूछ बैठता है. सवाल ये कि क्या बाप होने के नाते उसे बेटी की शादी कराने या उसका अच्छा-बुरा सोचने का भी हक नहीं है?
सियाराम को साक्षी मानकर साक्षी ने अजितेश को अगले सातों जनम का साथी चुना. इसी कुंड के सामने सात फेरे लिए साथ जीने की कसमें खाईं. इसी मंदिर की घंटी को दोनों ने एक साथ बजाकर हर हाल में खुश रहना का एक दूसरे से वादा किया. सब कुछ हिंदू रीति रिवाज के हिसाब से. सिवाए मैरिज सर्टिफिकेट के. वो इन दोनों ने सिर्फ समाज को दिखाने के लिए बनवाया है.
क्योंकि घरवाले बेटी को मनचाहा खिलौना दिला सकते हैं. बेटी जहां चाहे उस रेस्टोरेंट में खाना खिला सकते हैं. वो मंहगे से मंहगे कॉलेज में पढ़ा सकते हैं. अलमुख्तसर में बेटी अपने बाप से कुछ भी मांग सकती है. बस उसे अपनी मर्ज़ी से अपना हमसफर चुनने का हक़ नहीं.
बस इतनी सी ख़ता कर ली साक्षी ने प्यार कर लिया. और प्यार का दुश्मन तो ये ज़माना युगों युगों से है. ना जाने कितने प्यार करने वाले इसकी सज़ा भुगत चुके हैं. दरअसल, ये हक़ भी नफरत करने वाले अपने पास रखना चाहते हैं. असम में नफरत ये चाहती है मोहब्बत भी तोल-मोल के हो. लेकिन एक मोहब्बत ही तो है जो की नहीं जाती. हो जाती है. और शायद इसीलिए नफरत को मोहब्बत से नफरत है. लिहाज़ा हमेशा से ये कोशिश की जाती रही है कि मोहब्बत को इस बेरहमी से कुचला जाए के फिर कोई मोहब्बत का नाम ना ले.
पता नहीं क्यों हमें मंगल पर जाना है. क्यों ये सेटेलाइट और रॉकेट बनाना है. वहां जाकर हम कौन सा बदल जाएंगें. वहां भी यहीं होगा. तो इससे बहतर है यहीं रहिए. युग बदल गए. हज़ारों लाखों गुज़र गए. मगर हम नहीं बदले. हमें भगवान राम खुद सबरी के झूठे बेर खाकर भी बदल नहीं पाए. गौतम बुद्ध से हमने कुछ नहीं सीखा.
गांधी. अंबेडकर ने बेवजह अपनी जानें गवाईं. हम ऐसे ही थे. ऐसे ही हैं और ऐसे ही रहेंगे. बड़े मज़हबी बने फिरते हैं जो दिन रात मज़हब की किताबों पढ़-पढ़कर भी ये समझ ना पाए कि बनाने वाले फर्क नहीं किया. मगर इस समाज में वही सच और वही सही है जो उसके खांचे में उतरे. वरना प्यार करने वाले अपनी बर्बादी के खुद ज़िम्मेदार हैं.
जी बरेली के बीजेपी विधायक राजेश मिश्रा की बेटी से शादी कर के अजितेश अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी है. इलाके में विधायक जी का रसूख ऐसा है कि इनकी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता. अजितेश ने तो उनके सिंहासन को हिला दिया है. जान का खतरा तो जान रहने तक बना रहेगा. ऊपर से सूबे में सरकार भी मिश्रा जी की है. पुलिस प्रशासन पर दबदबा तो मामूली से बात है. ऐसे में अब अगर अजीतेश को कोई बचा सकता था तो वो था सोशल मीडिया.
साक्षी से प्यार करके अजितेश के ऊपर तो मौत मंडरा ही रही है. परिवार वालों की जान भी खतरे में हैं. अजितेश और साक्षी के साथ साथ अजितेश का पूरा परिवार भी विधायक जी और उनके गुंडों के डर से भागता फिर रहा है. पिता हरीश अजितेश और साक्षी की शादी की खबर सुनते ही बरेली से सपरिवार नोएडा भाग आए हैं. और प्रशासन से सुरक्षा की गुहार लगा रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी से फरियाद लगाई है.
अजितेश के वीडियो के बाद उसके पिता का ये डर साफ बता रहा है कि इस पूरे के पूरे परिवार की जान खतरे में हैं. और उधर विधायक जी के लोग किसी भी हाल में अजितेश और साक्षी को ढूंढकर उन्हें सज़ा देने को बेताब हैं. जबकि वायरल वीडियो में साक्षी साफ कह रही है कि ये शादी उसने अपनी मर्जी से की है.