करीब 6 महीने पहले कानपुर वाले विकास दुबे की कहानी सामने आई थी. जिसने अपने साथियों के साथ मिलकर 8 पुलिसवालों को मौत के घाट के उतार दिया था. इसके बाद पुलिस ने विकास दुबे को एनकाउंटर में मार गिराया था. अब फिर से यही कहानी यूपी में दोहराई गई है. कासगंज में शराब माफियाओं ने एक पुलिसवाले को पीट-पीटकर मार डाला और दूसरे को मरने हाल हालत में छोड़ दिया. इसके बाद पुलिस ने एनकाउंटर में शराब माफिया के भाई को मार गिराया. अब उस शराब माफिया की तलाश जोर शोर से की जा रही है.
उत्तर प्रदेश के कासगंज की तस्वीरें देखकर कानपुर के बिकरू कांड की यादें ताजा हो गई. शराब माफ़िया के हमले में एक पुलिस कांस्टेबल की जान जा चुकी है, लहूलुहान दरोगा अपने पैरों पर चलने-फिरने से लाचार हो चुका है. सीने पर सजी खाकी टुकड़े टुकड़े हो कर गायब हो चुकी है. और इन सबके बीच इस वारदात का मास्टरमाइंड और इलाक़े में नाजायज शराब का सबसे बड़ा धंधेबाज़ मोती धीमर पुलिस की रडार से गायब हो चुका है.
तस्वीरें कानपुर के बिकरू से करीब ढाई सौ किमी दूर कासगंज के नगला धीमर गांव की हैं. जहां मंगलवार देर शाम कुछ ऐसा हो गया, जैसा पुलिसवालों ने भी नहीं सोचा था. कई मामलों में फरार चल रहे शराब माफिया मोती धीमर के ठिकाने पर मंगलवार शाम दरोगा अशोक पाल और सिपाही देवेंद्र कुमार सिंह कुर्की के लिए नोटिस चिपकाने गए थे. लेकिन शराब माफिया के हौसले कुछ इतने बुलंद थे कि धीमर और उसके लोगों ने दरोगा और सिपाही को दौड़ा-दौड़ा कर लाठी-डंडों पीटना शुरू कर दिया.
हालत यूं हुई कि देर तक जब दोनों थाने पर वापस नहीं लौटे और उनसे कोई संपर्क भी नहीं पाया, तो सिढ़पुरा के थाना प्रभारी अपने साथियों की तलाश में दलबल के पास गांव नगला धीमर की ओर रवाना हुए. लेकिन यहां जो तस्वीर दिखी, वो भयानक थी. कई घंटों की तलाशी के बाद दरोगा और सिपाही जंगल में लहूलुहान हाल में अलग-अलग जगहों पर पड़े मिले.
पता चला कि अपने अड्डे पर पुलिसवालों को देखते ही मोती धीमर और उसके साथी भड़क गए थे और उन्होंने ना सिर्फ़ दोनों पुलिसवालों को बुरी तरह पीटा, बल्कि उन्हें घंटों बंधक बनाए रखे. फिर अपने ठिकानों से करीब एक किलोमीटर बुरी तरह मारते-पीटते हुए ले गए. जहां पुलिसवालों के साथ ना सिर्फ़ बर्बरता की गई, बल्कि बाद में उन्हें मरा हुआ समझकर गुनहगार मौके से भाग निकले.
अपने साथियों को इस हालत में बरामद करने के बाद पुलिस ने फौरन दोनों को इलाज के लिए अस्पताल भिजवाया गया, लेकिन सिपाही देवेंद्र पहले ही दम तोड़ चुका था, जबकि खुद दारोगा की हालत भी बेहद नाज़ुक थी. धीमर और उसके गैंग के लोगों ने पुलिसवालों से उलझने में बर्बरता की सारी हदें लांघ दीं. क्या आप यकीन करेंगे कि गुनहगारों ने कांस्टेबल देवेंद्र को सरिया या भाले जैसी कोई नुकीली चीज़ से घोंप-घोंप कर मार डाला.
पुलिस ने जब कांस्टेबल देवेंद्र की लाश का पोस्टमार्टम करवाया, तो फॉरेंसिक मेडिसिन के एक्सपर्ट डॉक्टर भी उसकी हालत देख कर सकते में आ गए. अपने साथियों की इस हालत के बाद पुलिस ने एक बार फिर पूरे लवज़मे के साथ मोती धीमर और उसके साथियों की तलाश में छापेमारी शुरू की. बुधवार सुबह होते-होते पुलिस को धीमर और उसके गैंग के लोगों से पुलिस का आमना-सामना भी हुआ और दोनों ओर से क्रास फायरिंग शुरू हो गई. लेकिन इस बार बाज़ी पुलिस के हाथ लगी.
इस एनकाउंटर में शराब माफिया मोती धीमर के भाई एलकार सिंह को ढेर कर दिया गया. पुलिस की मानें तो मोती धीमर के साथ-साथ एलकार सिंह भी पुलिस का पुराना वांटेड है और दोनों के नाम पर अलग-अलग थानों में हिस्ट्रीशीट भी खुली हुई है. फिलहाल इस वारदात के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने गुनहगारों पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम यानी एनएसए के तहत कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं, लेकिन इस वारदात ने पुलिस के काम करने के तौर-तरीक़ों पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
सवाल ये कि क्या पुलिस ने विकास दुबे वाले बिकरू कांड से भी कोई सबक नहीं सीखा? इतने शातिर अपराधियों के अड्डे में सिर्फ दो पुलिसवाले क्यों भेजे गए? जबकि पुलिस के खातों में मोती धीमर और उसके भाई हिस्ट्रीशीटर हैं. दोनों गांव में ही काली नदी के किनारे पर अवैध शराब की भट्टी चलाते हैं. क्या पुलिस को धीमर गैंग की तरफ़ से पलटवार का कोई अंदेशा नहीं था? आख़िर पुलिस के सूत्र इस तरह की किसी अनहोनी को भांपने में क्यों नाकाम रहे?
हालांकि अब इस लचर कार्यशैली के बाद ज़िले के एसपी मनोज सोनकर एक थकी हुई दलील लेकर सामने आ गए. कासगंज के जिस ठिकाने पर ये अवैध शराब बनती है, वो काली नदी के किनारे है. नदी के इस तरफ एटा तो दूसरी तरफ़ मैनपुरी ज़िला है. फिलहाल पुलिस पर हुए हमले का कनेक्शन मैनपुरी से भी जोड़ा जा रहा है. जहां बदमाशों की एक बाइक लावारिस हालत में पड़ी मिली है.
आपको याद दिलाएं कि 2016 में एटा के अलीगंज और मैनपुरी के कुछ इलाक़ों में जहरीली शराब से 48 लोगों की जान चली गई थी. तब भी शराब मैनपुरी से ही अलीगंज और एटा के दूसरे हिस्सों में भिजवाई गई थी. तब से लेकर अब तक एटा और मैनपुरी में नाजायज शराब के धंधेबाज़ों और पुलिस के बीच आंख मिचौली का खेल चलता रहा है. लेकिन सच्चाई ये है कि इस कारोबार पर कभी पूरी तरह रोक नहीं लग पाई.