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भ्रष्टाचार का श्मशानः मुरादनगर में 25 लोगों की मौत का असली जिम्मेदार कौन?

कहते हैं मौत कब, कहां और कैसे आ जाए ये कोई नहीं जानता. मगर मौत यहां श्मशान में ऐसे भी आ सकती है, ये पहले कभी किसी ने सोचा नहीं था. इस दुनिया से उस दुनिया तक का आखरी पड़ाव श्मशान या कब्रिस्तान होता है. जहां जिंदा इंसानों के कांधों पर मुर्दे आते हैं. मगर इंसान के लालच ने इस आखरी आरामगाह को भी नहीं बख्शा. वरना मुरादनगर के श्मशान से 25 लाशें यूं बाहर ना आतीं.

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पुलिस ने श्मशान में काम कराने वाले ठेकेदार त्यागी को गिरफ्तार कर लिया है
पुलिस ने श्मशान में काम कराने वाले ठेकेदार त्यागी को गिरफ्तार कर लिया है

अब तक यही सुना, पढ़ा और देखा था कि श्मशान में लोग चार कांधों पर अर्थी पर सवार होकर आते हैं. पर ये पहली बार देखा कि जब 25 ज़िंदा लोग खुद अपने पैरों पर चल कर श्मशान आए और श्मशान में दम तोड़ा. ये पहली बार देखा जब श्मशान से मुर्दों को वापस बिना चिता के लौटना पड़ा. ये पहली बार देखा जब लौटने के बाद दोबारा उन्हें श्मशान का रुख करना पड़ा. ये पहली बार देखा जो दूसरे की चिता में शामिल होने आए और खुद उनकी अर्थियां सज गईं. लेकिन भ्रष्टाचार का ये रूप पहली बार कतई नहीं देखा. हम आप में से न जाने कितने ही ऐसे लोग हैं, जो भ्रष्टाचार की बीमारी को मामूली बीमारी समझ कर बिना इलाज के यूं ही छोड़ देते हैं. पर ये श्मशान इस बात का गवाह है कि भ्रष्टाचार कितना जानलेवा है. वैसे क्या कहिए और क्या कीजिए उन भ्रष्टाचारियों के बारे में, जिन्होंने श्मशान में ज़िंदा इंसानों की चिता तैयार करवा दी. अरे जो ज़िंदा इंसानों को नहीं छोड़ते, उनसे मुर्दों के आखिरी घर में ईमानदारी की उम्मीद कैसे की जा सकती है? 

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वो श्मशान बेशक मुरादनगर में हो, लेकिन यकीन मानिए हिंदुस्तान के किसी भी श्मशान की ऐसी तस्वीर कभी भी आ सकती है. क्योंकि हम भ्रष्टाचार को बीमारी नहीं अपनी ज़िंदगी का एक हिस्सा मान चुके हैं. दरअसल, हम भ्रष्टाचार को बीमारी नहीं, बल्कि अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का एक आवश्यक वस्तु मान चुके हैं. इसीलिए ना भ्रष्चाचार में हमें कोई बुराई दिखाई देती है और ना हम इसे रोकने की कोशिश करते हैं. ज़रा सोचिए उस परिवार के बारे में जिसकी एक अर्थी इस श्मशान में आई थी, लेकिन भ्रष्टाचार ने बदले में 25 चिताएं सजा दी. कहते हैं श्मशान मोक्ष का द्वार होता है. इस दुनिया से उस दुनिया के बीच की ये आखिरी कड़ी होती है. अब ऐसी जगह को भी भ्रष्टाचार का दीमक खा जाए तो फिर क्या ये दुनिया और क्या वो दुनिया. सोचिएगा ज़रूर.

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कहते हैं मौत कब, कहां और कैसे आ जाए ये कोई नहीं जानता. मगर मौत यहां श्मशान में ऐसे भी आ सकती है, ये पहले कभी किसी ने सोचा नहीं था. इस दुनिया से उस दुनिया तक का आखरी पड़ाव श्मशान या कब्रिस्तान होता है. जहां जिंदा इंसानों के कांधों पर मुर्दे आते हैं. मगर इंसान के लालच ने इस आखरी आरामगाह को भी नहीं बख्शा. वरना मुरादनगर के श्मशान से 25 लाशें यूं बाहर ना आतीं.

महज चार महीने पहले जिस छत को श्मशान में आनेवाने दुखियारों का सिर छुपाने के इरादे से बना गया था, वही छत रविवार को अचानक भरभराकर ज़मींदोज़ हो गई. और इसी के साथ ये छत यूं एक ही झटके में 25 ज़िंदगियां लील गई. लेकिन भ्रष्टाचार में जीने और भ्रष्टाचार ओढ़ने-बिछाने के आदी हो चुके हम हिंदुस्तानियों के लिए इससे ज़्यादा बदकिस्मती की बात और क्या होगी, जिस श्मशान में आकर बड़े से बड़े दुनियादार को भी वैराग्य का भाव पैदा हो जाता है, भ्रष्टाचार ने उसी श्मशान में बने शेल्टर के खंभों पर भी अपनी जगह बना ली. और ये जगह इतनी गहरी थी कि शायद अपने बनने के बाद हुई पहली ही बारिश में शेल्टर अचानक से नीचे गिर कर मटियामेट हो गई.

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अब शेल्टर का मलबा तो हट चुका है. शासन-प्रशासन ने जांच और कार्रवाई की रस्म अदायगी भी शुरू कर दी है, लेकिन सवाल यही है कि आख़िर इस हादसे का जिम्मेदार कौन है? लोगों का ये गुस्सा उनके सीने में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ धधक रही आग की गवाही दे रहा है. बीच सड़क पर लगा ये जाम हमारे सिस्टम के निकम्मेपन को मुंह चिढ़ा रहा है. और साथ ही आंखों से बेहिसाब बहते ये आंसू अपनों के खोने की तकलीफ़ से पैदा हुए दर्द की शिद्दत को बयान कर रहे हैं. किसी का परिवार उजड़ गया. किसी के सपने चकनाचूर हो गए. किसी के परिवार का कमाने वाला चला गया, तो किसी को वो सहारा ही छिन गया, जिसके भरोसे ज़िंदगी आगे खिसक रही थी. 

लेकिन ना तो ऐसा पहली बार हुआ है और ना ही लोग इसकी असली वजह से नावाकिफ हैं. लोग बेशक गम में हों, लेकिन उन्हें दिलासे की नहीं. बल्कि इंसाफ़ की उम्मीद है. लोग मुरादनगर के श्मशान में रविवार को हुए हादसे में हुई मौतों का हिसाब चाहते हैं. क़ानून के रास्ते से ही सही गुनहगारों का अंजाम चाहते हैं. श्मशान में शेल्टर के गिरने से पैदा हुए गुस्से का ही नतीजा था कि सोमवार की सुबह दर्द में तड़पते लोगों ने इंसाफ की मांग के साथ गाजियाबाद-मेरठ हाईवे पर धरना दे दिया. चूंकि ये धरना ही दिवंगत लोगों को इंसाफ़ दिलाने के लिए था, जिन शवों को तब श्मशान में होना चाहिए था, उनके अपनों ने उन्हीं शवों को अपने-अपने धरने में भी शामिल कर लिया. लोग इंसाफ के लिए चिल्ला रहे थे और महिलाएं थी कि लगातार रोए जा रही थीं.

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हर तरफ़ तकलीफ़ थी. हर कोई गुस्से में था. सबकी बस यही मांग थी कि श्मशान में हुए 25 मौतों के गुनहगार को सज़ा दो और ऐसी सज़ा दो जो नज़ीर बन जाए. बीच सड़क पर जारी इस प्रदर्शन का नतीजा ये हुआ कि देखते ही देखते गाज़ियाबाद मेरठ हाईवे पर क़रीब 15 से 20 किलोमीटर लंबा जाम लग गया. वाहनों की लंबी क़तार लग गई. गाजियाबाद के मेरठ तिराहे से लेकर राजनगर एक्सटेंशन और राजनगर एक्सटेंशन से लेकर मुरादनगर तक मेन रोड तो छोड़िए. आस-पास के छोटे-मोटे रास्तों पर भी ऐसी भीड़ लगी कि तिल रखने की जगह नहीं बची. हर तरफ़ सिर्फ़ गाड़ियां ही गाड़ियां हर तरफ सिर्फ़ जाम ही जाम. ये लोगों के गुस्से का ही नतीजा था कि शुरू में तो शासन-प्रशासन को भी गुस्साए लोगों तक पहुंचने की हिम्मत नहीं हुई. 

जाम बढ़ता गया तो पुलिस ने गाजियाबाद-मेरठ हाई वे को ही पूरी तरह से बंद कर दिया. हालांकि देर सवेर प्रशासन ने हिम्मत जुटाई. पुलिस ने जाम खुलवाने की कोशिशें शुरू की, लेकिन हजारों लोगों की भीड़ और उनके गुस्से आगे शासन-प्रशासन की तमाम कोशिशें नाकाम साबित हुईं. इस हादसे में जिन परिवारों ने अपनों को खोया था, उनकी तकलीफ़ समझी जा सकती थी. महिलाओं को गुस्सा सिस्टम और सरकार पर निकल रहा था. और हर गुज़रते लम्हे के साथ हर किसी का गुस्सा भी बढ़ता ही जा रहा था. 

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लोगों का गुस्सा और उनकी हैरानगी इस बात को लेकर ज़्यादा थी कि जो शेल्टर महज़ 4 महीने पहले ही बन कर तैयार हुआ था, आख़िर वो इतनी जल्दी नीचे कैसे गिर गया. क्या भ्रष्टाचार और सरकारी अफ़सरों के कट के चक्कर में ठेकेदार ने सारी हदें पार कर दीं. क्या कंक्रीट और सीमेंट की जगह सरकार की आंखों में खुद उसी के नुमाइंदों ने धूल झोंक दिया. प्रदर्शन कर रहे लोगों का सीधा इल्ज़ाम प्रसासन पर था. लोग कह रहे थे कि अगर प्रशासन ने समय रहते निर्माण कार्य की सुध ली होती, भ्रष्ट सरकारी अफ़सरों, बाबुओं और ठेकेदार पर नकेल कसी होती, तो शायद इस तरह इतने लोगों को बेमौत नहीं मरना पड़ता.

25 लोगों की ज़िंदगी छीनने और कई परिवारों को बर्बाद करने वाले इस हादसे से गुस्साए लोगों के पास बेशुमार सवाल थे. सवाल सरकार से. सवाल अफ़सरों से और सवाल अंदर तक सड़ चुके सिस्टम से. लोग पूछ रहे थे कि आखिर क्या अकेला ठेकेदार ही इस हादसे का जिम्मेदार है? उन सरकारी अफ़सरों का क्या होगा जिनके ज़िम्मे ये काम था? क्या ठेकेदार के साथ अफ़सरों की भूमिका भी जांची जाएगी? मृतकों के घरवालों को 15 लाख का मुआवजा और सरकारी नौकरी का एलान कब होगा? और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कब परिजनों की फरियाद सुनने आएंगे?

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हालांकि सच्चाई यही थी कि खुद शासन प्रशासन के नुमाइंदों के पास दर्द से तड़पते इन लोगों के सुलगते सवालों का कोई जवाब नहीं था. ऐसे में अफ़सरों ने भी सिर्फ़ आश्वासनों से सहारे लोगों का गुस्सा कम करने की कोशिश की. बताया कि किसी भी गुनहगार को नहीं बख्शा जाएगा. कहने की ज़रूरत नहीं है कि आज नहीं तो कल मुरादनगर हादसे के कुछ गुनहगार सलाखों के पीछे भी होंगे. लेकिन सिस्टम में अंदर तक घर कर चुके भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जब तक हर कोई एकजुट नहीं होगा, ऐसे हादसे अलग-अलग वक्त और नाम से अलग-अलग जगहों पर दोहराए जाते रहेंगे.

 

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