आठ साल तक वो और उसका पूरा परिवार देशद्रोही, आतंकवादी, कातिल और ना जाने किन-किन तोहमतों के साथ घुट-घुट कर जीता रहा. जीता क्या रहा, यूं कहें जिंदा रहने की सजा पाकर जीते जी मरता रहा. कहने को आठ साल जेल की सलाखों के पीछे वो तनहा था लेकिन हकीकत में तो पूरा परिवार ही कैद काट रहा था. बेशक इलजाम सिर्फ उसके सर और सजा उस एक अकेले को मिली थी. पर उसकी सजा की सजा पूरा घर भुगत रहा था. आठ साल तक तोहमत, जिल्लत, तकलीफ, तंगी, नाइंसाफी, दर्द और आंसुओं के सैलाब में उसके घर ने हर वो रंज और रंग देखे जो किसी की भी जिंदगी बदरंग कर सकती है. अब वो बुरे दिन बीत गए हैं, तो क्या उन आठ सालों के अच्छे दिन अब इन्हें कोई लौटा सकता है?
अकसर ये कहा जाता है कि गलत या भटकी हुए राह पर ज्यादातर वो लोग चलते हैं जो पढ़े-लिखे नहीं होते. क्योंकि माना जाता है कि ऐसे लोगों को गुमराह करना आसान होता है. लेकिन फिजिक्स और मैथ्स के साथ फर्स्ट क्लास ग्रैजुएट मोहम्मद वासिफ हैदर को जब 2001 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया था तो हर कोई चौंक उठा. अखबारों में कहा गया कि देश में इतना पढ़ा-लिखा आतंकवादी पहली बार गिरफ्तार हुआ है. अमेरिकी कंपनी में काम करने वाले वासिफ हैदर पर बम ब्लास्ट, देशद्रोह और मर्डर का इलजाम था.
मोहम्मद वासिफ हैदर का बचपन एशिया का मैनचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर शहर के छोटे से मोहल्ले चमनगंज में गुजरा. बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई का शौक था, शौक को इनाम भी मिला. साइंस में अच्छी खासी डिग्री मिली तो आसिफ को एक मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई. घर में मां-बाप, बीवी और तीन छोटी-छोटी बेटियों के साथ हैदर एक खुशहाल जिंदगी गुजार रहा था. सब कुछ अच्छा-अच्छा था, लेकिन सिर्फ तब तक जब तक कि 30 जुलाई 2001 की वो मनहूस रात उसके घर पर नहीं उतरी थी.
एक रात ने ही हैदर और उसके पूरे घर की दुनिया बदल कर रख दी. उस रात के बाद सवेरा तो कई बार हुआ पर हैदर की जिंदगी का सवेरा उससे रूठ चुका था. रात बीती तो सुबह तक घरवालों को यही पता नहीं था कि उनके बेटे को कौन उठाकर ले गया. वो तो एक दिन बाद जब हैदर कानपुर के अखबारों की हेडलाइन बना तब दुनियावालों के साथ-साथ हैदर के घरवालों को पता चला कि हैदर को उठाने वाले कोई और नहीं पुलिस थी.
‘आईएसआई के तीन एजेंट चमनगंज से गिरफ्तार’
दरअसल पुलिस ने हैदर के साथ दो और लड़कों को गिरफ्तार किया था. लेकिन अभी तक खबर बस यही थी कि तीनों पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के एजेंट हैं. गिरफ्तारी के फौरन बाद हैदर और उसके साथियों को दिल्ली लाया गया. इसके बाद अगले तीन दिनों तक जो कुछ हुआ उसे सिर्फ याद करने भर से हैदर आज भी सिहर उठता है. थर्ड डिग्री के नाम पर उस पर ऐसे-ऐसे जुल्म ढाए गए कि हैदर टूटता चला गया.
गिरफ्तारी के बाद हैदर को पूरे तीन दिनों तक गैरकानूनी ढंग से पुलिस हिरासत में रखा गया. इस दौरान उससे ना सिर्फ सादे कागजात पर दस्तखत कराए गए. बल्कि थर्ड डिग्री के जरिए बाकायदा कैमरे पर जबरन उससे बयान लिया गया.
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पुलिस हिरासत में हैदर का इकबालिया बयान कैमरे पर रिकॉर्ड किया था. हालांकि हैदर को 30 जुलाई की रात ही उठा लिया गया था. लेकिन दिल्ली पुलिस ने उसे तीन अगस्त 2001 को पहली बार अदालत में पेश किया. बाद में चार्जशीट में पुलिस ने सबसे अहम सबूत के तौर पर हैदर का वही बयान जज साहब को दिखाया जो पुलिस हिरासत में जबरन उससे कैमरे पर कहलवाया गया था.
चार्जशीट में पुलिस ने जो कहानी तैयार की थी वो ये थी कि हैदर ने कश्मीर में ट्रेनिंग ली थी और वो हिजबुल मुजाहिद्दीन के लिए काम करता है. हैदर को पुलिस ने अकेले गिरफ्तार नहीं किया था. टेरर मॉड्यूल के नाम पर तब देशभर से कुल 23 लोगों को उठाया गया था. इनमें तीन-चार हैदर के दोस्त थे. गिरफ्तारी के बाद हैदर दिल्ली की तिहाड़ जेल, इलाहाबाद के नैनी जेल और कानपुर सेंट्रल जेल में रहा.
शुरू के चार-पांच साल तक हैदर को जेल के हाई सिक्योरिटी वार्ड में बिल्कुल अलग-थलग रखा गया. यहां तक कि शुरुआत में उसे घरवालों से मिलने तक नहीं दिया गया. उधर हैदर जेल में था और इधर घर की माली हालत लगातार खस्ता होती जा रही थी. माथे पर आतंकवादी होने की तोहमत थी तो पराए छोड़िए रिश्तेदारों तक ने साथ छोड़ दिया.
ऐसे वक्त में भी कुछ दोस्त ऐसे थे, जिन्होंने हैदर का साथ नहीं छोड़ा. घर के राशन से लेकर हैदर की बेटियों की पढ़ाई के खर्च की जिम्मेदारी उन दोस्तों ने ही उठाई. दोस्तों ने दोस्ती का हक अदा किया. मगर बाप के माथे पर लगा आतंकवादी का ठप्पा पीछा नहीं छोड़ रहा था. स्कूल में हैदर की बेटियों को दाखिला तो मिल गया, लेकिन उन बच्चियों को भी ताने मारे गए. स्कूल में उनका कोई दोस्त नहीं बन पाया. सब उनसे दूर रहते थे.
क्या ईद-बकरीद, क्या शादी-ब्याह. सारी खुशियां हैदर के घर से दूर हो चुकी थीं. स्कूल के वार्षिकोत्सव में हैदर की बेटियां सिर्फ इसलिए हिस्सा नहीं ले पाईं क्योंकि आठ सौ रुपये का ड्रेस खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे और वो अपने अब्बू के दोस्तों पर और बोझ नहीं डालना चाहती थीं. जब हैदर जेल गए थे तब उनकी तीन बेटियां थीं. सबसे बड़ी पांच साल की दूसरी चार साल की और तीसरी डेढ़ साल की.
वक्त बीतता जा रहा था. उधर जेल में हैदर की जिंदगी घट रही थी और इधर घर में बेटियों की उम्र बढ़ रही थी. वक्त के साथ हैदर पर लगाए गए जुर्मों का बही-खात भी बढ़ता गया. अब हैदर पर देशद्रोह के तीन, 11 धमाके, एडीएम का मर्डर और 65 किलो आरडीएक्स की बरामदी के सिलसिले में मुकदमे की कार्रवाई शुरू होती है.
जेल मे रहने के दौरान वासिफ हैदर ने कानून के किताबों की पढ़ाई शुरू कर दी. हैदर को लगा कि उसके केस की पैरवी उससे बेहतर कोई और नहीं कर सकता. लिहाजा कानूनी किताब पढ़-पढ़कर वो अपने वकील की केस में मदद करने लगा. हैदर और उसके वकील की मेहनत ने रंग दिखाना शुरू कर दिया. हैदर के सिर जितने भी धमाके करने के इलजाम थे वो सारे झूठे निकले. पुलिस के अपने गवाहों ने पुलिस के खिलाफ गवाही दे दी. आतंकवादी संगठन के साथ भी हैदर का रिश्ता साबित नहीं हो पाया.
हैदर के खिलाफ पुलिस ने जो सबसे बड़ा इलज़ाम लगाया था वो था उसके पास से 65 किलो आरडीएक्स की बरामदगी. लेकिन कमाल देखिए कि पुलिस कभी वो 65 किलो आरडीएक्स अदालत को दिखा ही नहीं सकी. आतंकवाद के सारे मामले से अब वासिफ बरी हो चुका था. बस एक कानपुर के एडीएम के कत्ल का मामला बाकी बचा था.
दरअसल कानपुर में 17 मार्च 2000 को दंगा हुआ था. उस दंगे के दौरान एडीएम सिटी की गोली लगने से मौत हो गई थी. गोलीबारी में एडीएम का एक सहायक भी घायल हो गया था. इस मामले में दंगाई के तौर पर वासिफ हैदर को पुलिस ने गिरफ्तार किया था. लेकिन बाद में अदालत में उसी एडीएम के सहायक ने बयान दिया कि गोली चलाने वाला वासिफ हैदर नहीं था. लिहाज़ा इस मामले में भी वासिफ बरी हो गया. अब वो एक आजाद हिंदुस्तानी था.
आठ लंबे साल जेल में काटने के बाद स्वतंत्रता दिवस से तीन दिन पहले 12 अगस्त 2009 की रात वासिफ अपने घर पहुंचा. घरवालों को उसने अपने आने की खबर नहीं दी थी. हैदर की घर वापसी के बाद अब उनकी बेटियां फख्र से कहती हैं कि मेरे पास भी अब्बा हैं. आठ साल से जो खुशियां इस घर से दूर थीं वो अब वापस लौट आई हैं.
हैदर की एक शिकायत मीडिया से भी है. हैदर की मानें तो वो मीडिया ही है जिसकी वजह से रिहाई के बाद भी वो बेरोजगार है. लेकिन अदालत से बरी होने के बावजूद अब भी माली तौर पर हैदर के घर की हालत नहीं बदली. उसे शायद समाज ने अब भी नहीं आपनाया. उसके पास नौकरी नहीं है.
देश की पुलिस ने वासिफ हैदर को आतंकवादी बनाया था और देश के कानून ने उसे बेगुनाह बताया. केस खत्म हो जाना चाहिए था पर ऐसा नहीं हुआ. कानूनी कागजों में बेशक उसके नाम के आगे से आतंकवादी शब्द हट गया हो. पर हमारे समाज और समाज के लोगों के जेहन से हटना अभी बाकी है. लिहाज़ा अदालत से रिहाई के बाद भी हैदर लड़ रहा है.
मैं आज लड़ लिया उससे
बड़ा मजा आया
कई दिनों से खिलौना बना हुआ था मैं
जहां भी बैठना
हंस देना, मुस्कुरा देना
जो कोई बात करे
हां में हां मिला देना
सड़क पे चलते हुए बार-बार रुक जाना
मिजाज पूछना
दो चार लफ़्ज़ दोहराना
वही दुकानें, वही बिल्डिंगें, वही राहें
न आंख, आंखों के अंदर
न टांग, टांगों में
न दिल ही दिल की जगह पर
न होंठ, होंठों में
न जाने कब से हूं इस शहर में मुकीम मगर
न कोई चीखा, न कोई रोया, न शर्माया
मैं आज लड़ लिया उससे
बड़ा मजा आया