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सेंट्रल बोर्ड अॉफ फिल्म सर्टिफिकेशन के सीईवो राकेश कुमार पर सर्टिफिकेट देने में रिश्वत लेने का आरोप है. राकेश कुमार की गिरफ्तारी के बाद इस बात को लेकर बहस तेज हो गई है कि क्या सभी फिल्मों को सर्टिफिकेट के लिए रिश्वत देनी पड़ती है.

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रिश्वत लेकर दिए जाते थे फिल्म सर्टिफिकेट
रिश्वत लेकर दिए जाते थे फिल्म सर्टिफिकेट

सेंट्रल बोर्ड अॉफ फिल्म सर्टिफिकेशन के सीईवो राकेश कुमार पर सर्टिफिकेट देने में रिश्वत लेने का आरोप है. राकेश कुमार की गिरफ्तारी के बाद इस बात को लेकर बहस तेज हो गई है कि क्या सभी फिल्मों को सर्टिफिकेट के लिए रिश्वत देनी पड़ती है.

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देश में जितनी भी फिल्मी बनती हैं उन्हें सर्टिफिकेट देने का काम सेंसर बोर्ड का है. बोर्ड के लोग बड़ी बरीकी से हर फिल्म को देखते हैं और फिर ये तय करते हैं कि फिल्म का कौन सा सीन या डायलॉग सही या गलत है. उसे लोगों को दिखाना चाहिए या नहीं, और बस यहीं से रिश्वत का खेल शुरू हो जाता है. राकेश कुमार पर आरोप है कि उन्होंने हर सीन, डायलॉग, गानों और ट्रेलर तक का रेट तय कर रखा था.

ऐसे में सवाल यह भी है कि राकेश कुमार अगर रिश्वत लेता था तो अपने डायरेक्टर-प्रोड्यूसर उसे रिश्वत देते भी थे. यह दोनों की अपराध की श्रेणी में आते हैं. राकेश पर आरोप है कि उन्होंने पूरी फिल्म जस की तस पास करने की कीमत 25 लाख, आइटम सॉन्ग की अश्लीलता को नजरअंदाज करने की कीमत दस लाख, दमदार मगर आपत्तिजनक डायलॉग पास करने की कीमत पांच लाख तय कर रखी थी. इसके अलावा तीन दिन में फिल्म स्क्रीनिंग की क़ीमत 1.5 लाख रुपए, हफ्ते भर में स्क्रीनिंग की क़ीमत 25 हजार रुपये शॉर्ट फिल्म के सर्टिफ़िकेट की कीमत 15 हजार रुपये रिश्वत में लेने का आरोप राकेश पर है.

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फिल्मों को सर्टिफिकेट देने का काम सेंसर बोर्ड का पैनल तय करता है. कायदे से इसमें सीईओ की भूमिका नहीं होनी चाहिए, क्योंकि सीईओ का काम बोर्ड के प्रशासनिक कामकाज देखना होता है, लेकिन दो साल पहले ये रवायत बदल गई. ये सिलसिला तत्कालीन सीईओ पंकजा ठाकुर ने शुरु किया. फिल्म के सर्टिफिकेशन में सीईओ के शामिल होने की परंपरा बन गई.

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