भरी दिल्ली शहर के एक आबाद कोने में दोनों बहनें (हिमांशी और दीपाली) अपने ही घर में कैद रहीं. कई दिनों तक वो घर से बाहर नहीं निकलीं. कई दिनों तक उनके घर की खिड़की नहीं खुली. दरवाजा नहीं खुला. इस दौरान न जाने कितनी ही बार कितने ही पड़ोसी उसके दरवाजे और खिड़कियों के पास से गुजरे. पर कमाल देखिए कि फिर भी आस-पड़ोस में रहने वाले एक भी शख्स ने उनका हाल जानने की कोशिश तक नहीं की.
बदन पर रेंग रहे थे कीड़े
दीपाली अभी तीन साल की होने वाली है और उसकी बड़ी बहन हिमांशी आठ साल की है. 19 अगस्त की दोपहर जब पुलिस इनके घर पहुंची तो दीपाली अपनी बड़ी बहन हिमांशी का हाथ थामे चारपाई पर लगभग बेसुध
पड़ी थी. हिमांशी के सिर पर जख्म थे और जख्म सड़ रहे थे. बिस्तर और दोनों के बदन पर कीड़े रेंग रहे थे. पता नहीं 19 अगस्त को भी ये दोनों बहनें कैद से छूट पाती भी नहीं. मगर जैसा कि अब अकसर होता है
कि जब तक पड़ोसी को पड़ोस के घर से बदबू ना आए वो दूसरो के घरों में झांकते तक नहीं. वही हुआ. जब पड़ोसी के घर से आने वाली बदबू पड़ोसियों को पेरशान करने लगी तब वो जागे और खिड़की से घर में
झांका.
पड़ोसियों को नहीं थी सुध
पड़ोसी अब कह रहे हैं कि उन्होंने ही पुलिस को बुलाया. उन्होंने ही बच्ची को अस्पताल तक पहुंचवया. उन्होंने ही एक तरह से बच्ची की जान बचाई. वाह री इंसानियत. दरवाजे की कुंडी बस बाहर से लगी थी. उसपर
ताला तक नहीं पड़ा था. कोई भी किंडी खोल कर अंदर आसानी से जा सकता था और दोनों बच्चियों को बाहर ला सकता था. मगर पड़ोसियों को इन्हें बाहर लाने में भी दो दिन, तीन दिन या सात दिन लग गए.
मां ने बेटियों को बेसहारा छोड़ा
यह वारदात बाहरी दिल्ली के समयपुर बादली इलाके की है. इसी इलाके के राधा विहार मोहल्ले के नेपाली कालोनी में मकान नंबर 304 में एक परिवार दो साल से किराए पर रह रहा था. परिवार में बंटी, उसकी पत्नी
रजनी, एक बेटा और दो बेटियां. पति-पत्नी में अकसर झगड़ा हुआ करता था. और उस झगड़े की जड़ में कहीं न कहीं दोनों बेटियां भी थीं. इसी झगड़े के चलते करीब दो महीने पहले रजनी अपने बेटे के लोकर घर से
चली गई. दोनों बेटियों को छोड़ कर. मां के जाने के बाद अब हिमांशी और दीपाली बाप के हवाले थी. यानी आसरा और आशियाना अभ भी था. मगर फिर 12 से 15 अगस्त के बीच एक रोज बाप भी घर से चला गया.
दोनों बेटियों को कमरे में बंद कर. पर उसने बाहर से ताला नहीं लगाया था. बस कुंडी लगाई थी. ये ताला तो अब पुलिस ने लगाया है.
बीमार बेटी को छोड़ कर भागा बाप!
दरअसल हिमांशी बीमार थी. उसे बुखार था और सिर पर दाने निकल आए थे. उसे इलाज की जरूरत थी. पर बाप इलाज कराने की बजाए दोनों को मरने के लिए घर में बंद कर चला गया. अब दोनों बेटियां बंद कमरे में
थीं. शुरू में उन्होंने काफी आवाज दी. चीखी-चिल्लाई भी. खिड़की से शायद आवाज बाहर भी गई होगी. मगर तब किसी पड़ोसी ने उनकी चीखें नहीं सुनीं. फिर धीरे-धीरे भूख, प्यास और बीमारी ने उनकी चीखों को
सिसकियों में तब्दील कर दिया. जो चीख पड़ोसियों के कानों तक नहीं पहुंची वो कान सिसकियां कहां सुनते. लिहाजा हालत बिगड़ती चली गई.
अब ऐसे खुलती हैं खिड़कियां
अब जिम्मेदारी और इंसानियत कान को बहरा और इंसान को बेशर्म तो कर सकती हैं. पर पड़ोसी के घर की बदबू इतान तो बेचैन कर ही देती हैं कि मदद के लिए भले खिड़की ना खोंले. बदबू से निजात पाने के लिए
पुलिस को बुला लेंगे. लिहाजा वही हुआ. 19 अगस्त को पुलिस को पड़ोसी ने फोन किया और इन दो मासूम बहनों और उनके जख्मों से निकलने वाली बदबू से किसी तरह छुटकारा पा लिया. कैद से निकाल कर पुलिस
फौरन हिमांशी और दीपाली को सरकारी अस्पताल लाई, जहां खुद डॉक्टर भी इन मासूम की हालत देख कर दहलत उठे.
मां-बाप की कमी पूरी कर रही है दिल्ली पुलिस
दोनों बच्चियां अब अस्पताल में हैं. और इसी अस्पताल से सामने आता है दिल्ली पुलिस का एक बिल्कुल ही अलग, नया और दिल को सुकून देने वाला चेहरा. किस तरह अस्पताल में हिमांशी और दीपाली का मां-बाप की
तरह ख्याल रख रही है दिल्ली पुलिस. मां-बाप तो उन दोनों को मरने के लिए छोड़ गए थे. पड़ोसी भी वक्त पर काम नहीं आए. लिहाजा अब दिल्ली पुलिस ने समाज को आईना दिखाने का बीड़ा उठाया है. हिमांशी और
दीपाली की अस्पताल में देखभाल के लिए बाकायदा 24 घंटे दो पुलिस वाले अंकल तैनात हैं. पूरा थाना खुद अपनी जेब से पैसे इकट्ठे कर दोनों बहनों के लिए कपड़े और दूसरी जरूरत की चीजें खरीद रहा है.
बच्चियों की सेहत में हो रहा है सुधार
19 अगस्त से हिमांशी और दीपाली दिल्ली के अंबेडकर अस्पताल में हैं. यहीं दोनों का इलाज चल रहा है. इलाज का असर भी दिख रहा है. दोनों अब अच्छी और खुश नजर आ रही हैं. हालांकि जब वो यहां आई थीं तो
सिर का जख्म सड़ जाने की वजह से इंफेक्शन का दिमाग तक पहुंच जाने का खतरा था. मगर अब खतरा टल गया है. अब चूंकि मां-बाप दोनों ही हिमांशी और दीपाली को छोड़ कर भाग चुके हैं लिहाजा अस्पताल में
इनके देखभाल की जिम्मेदारी खुद दिल्ली पुलिस ने उठा ली. समयपुर बादली थाने के एसएचओ ने दो पुलिसवालों को 24 घंटे हिमांशी और दीपाली की देखभाल के लिए ड्यूटी पर लगा दिया. इनमें से कांस्टेबल अशोक ही
फिलहाल दोनों बच्चियों का केयरटेकर है.