आफत सिर्फ 2 मिनट के लिए आई. मगर कायनात को थर्रा गई. क्या कयामत इसी को कहते हैं? क्या कयामत ऐसे ही आएगी? क्या दुनिया के खात्मे की तस्वीर ऐसी ही होगी? एक साथ पूरी दुनिया ने अपनी आंखों से तबाही की दहला देने वाली ऐसी तस्वीरें कम ही देखीं होंगी. मगर नेपाल ने शनिवार वो भी दिखा दिया। आशियाने ताश के पत्तों की तरह ढह गए. शहर कब्रिस्तान बन गए. फिर 2 मिनट बाद जब धरती का गस्सा शांत हुआ तो पीछे बस मौत, मातम और मलबा ही बचा था.
जमीन अचानक जोर जोर से हिलना शुरु कर देती है. घरों और दफ्तरों में ऊंचाई पर रखा सामान अलमारियों और दराजों से निकल कर धड़ाधड़ गिरने लगता है. दरवाजे खुद-ब-खुद खुलने बंद होने लगते हैं. लोग बदहवासी में इमारतों के बाहर भाग पड़ते हैं. और सड़कों पर चल रहा ट्रैफिक ठिठक कर रुक जाता है. यकीनन ये किसी खुदाई कहर की शुरुआत थी. दरअसल ये तो आने वाली मुसीबत की ये बस बानगी भर थी क्योंकि असल आफत तो अभी आने वाली थी, जिसके डर से अनजान लोग सहमे हुए थे. वो आफत जिसके आने से पहले जमीन भी कांप उठती है. वो आफत जिसके असर से पूरी कायनात थर्रा उठती है. आफत जिसके आगे आसमान खामोश तमाशाई बन जाता है. घरौंदे जब ताश के पत्तों की तरह ढहने लगते हैं और जब शहर के शहर कब्रिस्तान में तब्दील हो जाते हैं.
जलजला, ये वो आफत है जिसने जब 25 अप्रैल की सुबह नेपाल के कई शहरों में दस्तक दी तो ऊंची-ऊंची इमारतें जमींदोज हो गईं...सड़कों में दरारें आ गईं...हज़ारों लोग मारे गए...और सैंकड़ों लोग अब भी लापता हैं. हर ओर मौत और मातम का मंजर नजर आ रहा था. रोते-बिलखते लोग अपने रिश्ते नातेदारों की तलाश कर रहे थे. लोग जलजले का रुकने के बाद भी इतने खौफजदा थे कि वो डर कर कांपते हुए इधर-ऊधर भाग रहे थे. किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे और ऊधर हर बीतते पल के साथ मरने वालों की गिनती बढ़ती जा रही थी. सुबह के 11 बजकर 41 मिनट हुए थे कि अचानक जमीन जोर-जोर के कांपने लगी. लोग अभी कुछ समझ पाते इससे पहले ही जलजले की शक्ल में आई आफत उन टूट पड़ी थी. शुरुआती झटकों के आने के बाद अभी चंद लम्हें ही बीते थे कि जमीन ने और जोर-जोर से हिलना शुरू कर दिया और भूकंप के झटके जैसे जैसे बढ़ते गये लोगों को इस बात का अहसास होता गया कि उन पर कहर टूटने वाला है.
इस जलजले की सबसे खतरनाक बात ये थी कि इसने लोगों को संभलने का जरा सा भी मौका नहीं दिया और अगले 35 मिनट तक नेपाल में रह-रह कर 9 बार भूकंप के झटके आए. जानकारों के मुताबिक नेपाल में आए इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.9 थी. नेपाल के घोराही, भरतपुर, भैरवा, लामजुम, पोखरा, बुटवल, लुंबनी और तिलोत्तमा में जबरदस्त तबाही का मंजर है. लाखों लोग जलजले का शिकार हुए हैं. भूकंप का केंद्र काठमांडू से 80 किलोमीटर दूर लामजुम था.
इतना ही नहीं भूकंप प्रभावित इलाकों में फोन लाइनें ठप्प हो गईं. बिजली के खंबे उखड़ गए और पानी की पाइपलाइनें फट गईं. और तो और सड़कों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गईं. भूकंप की वजह से जनकपुर के जानकी मंदिर को भी नुकसान पहुंचा है. इस जलजले में एवरेस्ट बेस कैंप में 18 लोगों भी मारे गए. वैसे आपको बता दें कि नेपाल में साल 1934 यानी 81 साल के बाद इतना भयानक भूकंप आया है.
नेपाल की जमीन के अंदर से हुई थी। ये भूकंप लोगों को एक ऐसी डरावनी यादें दे गया है जिन्हें वो चाह कर भी ताउम्र नहीं भूल पाएंगे.