scorecardresearch
 

उतर रहा इंदौर पुलिस से 'सिंघम' का बुखार

इंदौर पुलिस को सड़क पर बदमाशों को पीटते देखना, गाली देते सुनना, कानून हाथ में लेते देखना आम बात है. लेकिन इस बार कुछ नया है, क्योंकि पुलिस संतो के बीच पहुंच गई है. दिलचस्प यह कि पुलिस वहां प्रवचन सुनने पहुंची है. यह अपने आप अनोखा मामला है, क्योंकि 'सिंघमगिरी' के बाद इंदौर पुलिस का यह अवतार चौंकाने वाला है.

Advertisement
X
symbolic image
symbolic image

इंदौर पुलिस को सड़क पर बदमाशों को पीटते देखना, गाली देते सुनना, कानून हाथ में लेते देखना आम बात है. लेकिन इस बार कुछ नया है, क्योंकि पुलिस संतो के बीच पहुंच गई है. दिलचस्प यह कि पुलिस वहां प्रवचन सुनने पहुंची है. यह अपने आप अनोखा मामला है, क्योंकि 'सिंघमगिरी' के बाद इंदौर पुलिस का यह अवतार चौंकाने वाला है.

Advertisement

कभी थाने के बाहर तो कभी अदालत से पहले बीच सड़क पर इंदौर पुलिस ने कानून और इंसाफ की खूब धज्जियां उड़ाईं. छुटभैए बदमाशों पर वर्दी के खूब रौब झाड़े. झाड़े तो झाड़े कबूल भी किया. लेकिन अब उसी इंदौर पुलिस की दूसरी तस्वीर सामने आ रही है, जिसमें एक छत के नीचे पूरे शहर की पुलिस जमा है और इनके मुंह से गाली नहीं, संतों की वाणी निकल रही है. यह जरूरी भी है, क्योंकि सभी प्रवचन की पाठशाला में आए हुए हैं.

दरअसल, इंदौर में पुलिस के आलाधिकारी इन दिनों अनूठे प्रयोग कर रहे हैं. कभी तमाम पुलिस वालों को सिनेमाघर में सिंघम दिखवाते हैं तो कभी सत्संग में ले जाते हैं और कभी संत और सिपाही का समागम कराते हैं.

भक्ति की पाठशाला
पिछले शनिवार को इंदौर में चार घंटे की ऐसी ही एक प्रवचन पाठशाला बुलाई गई. इसमें शहर के छोटे-बड़े सारे अधिकारियों के साथ करीब तीन हजार पुलिस वाले शामिल हुए. इस प्रवचन का मकसद था पुलिसवालों के व्यवहार में बदलाव लाना और तनाव दूर करना. डीआईजी राकेश गुप्ता कहते हैं, 'एक अनूठा अवसर है जब पुलिस परिवार को सीधे संत वाणी सुनने को मिलेगी. हमारे व्यहवार में परिवर्तन और तनाव से मुक्ति इसका उद्देश है.'

Advertisement

अब चूंकि माहौल थोड़ा हटकर था, लिहाजा डीआईजी साहब भी खुद को रोक नहीं पाए और सच्चे दिल से कबूल करते गए कि कैसे वर्दी आते ही पुलिसवाले बदल जाते हैं. राकेश गुप्ता कहते हैं, 'हमारे एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था की जब वे पढ़ते थे उस दौरान थाने के सामने से निकलने में उन्हें डर लगता था. उस बात से मुझे लगा कि कहीं न कहीं हमारे व्यहवार में परिवर्तन की जरूरत है.'

हालांकि, कुछ दिन पहले ही इंदौर, देवास सहित मध्यप्रदेश के कई शहरों के सिनेमाघरों में पुलिसवलों को 'सिंघम' फिल्म दिखाई गई थी और अब सत्संग का आयोजन किया गया है. राष्ट्रसंत श्री ललिरप्रभ जी कहते हैं, 'इंदौर में संत और सिपाही के बीचज अद्भुत संगम हो रहा है. ये गंगा और यमुना का मिलान है. हम सिपाहियों का मनोबल बढ़ाते हुए नैतिकता का पाठ देंगें, जिससे वे देश का गौरव बढ़ाते हुए सुरक्षा कवच का काम कर सकें.'

बदलाव अच्छा है. 'सिंघम' के खुमार से निकलकर संतों की वाणी से बहुत कुछ बदल सकता है. बस देखना ये है कि इंदौर पुलिस सचमुच बदलना चाहती है या नहीं? क्योंकि अतीत की तस्वीरें हमें शक करने पर मजबूर करती हैं.

एक तरफ मुजरिम हाथ नहीं आ रहे, दूसरी तरफ छोटे-मोटे अपराधियों का जुलूस और बारात निकाल कर इंदौर पुलिस के अफसर 'सिंघम' बन जाते थे. लेकिन अब इंदौर पुलिस का यही 'सिंघम सिंड्रोम' उन पर भारी पड़ने लगा है, क्योंकि मानवाधिकार आयोग की निगाहें उस पर टेढ़ी हो गई हैं. अब क्या पता शायद इसीलिए 'सिंघम' को प्रवचन सुनाना पड़ा रहा है.

Advertisement
Advertisement