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पुलिस का गुंडा अभियान या हीरो बनने की चाहत?

पीटने और पिटने की कहानी तो आपने कई बार सुनी और देखी होगी, लेकिन कई बार यह फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता है कि असल में गुंडा कौन है? वो जो पिट रहा है या फिर वो जो उसे पीट रहे हैं? इंदौर पुलिस की बहादुरी के किस्‍सों से इतर पुलिस की दबंगई की कुछ कहानियां ऐसी हैं जो इंसाफ को वारदात में बदल देते हैं.

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कैमरा के सामने इंदौर पुलिस चला रही गुंडा अभियान
कैमरा के सामने इंदौर पुलिस चला रही गुंडा अभियान

पीटने और पिटने की कहानी तो आपने कई बार सुनी और देखी होगी, लेकिन कई बार यह फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता है कि असल में गुंडा कौन है? वो जो पिट रहा है या फिर वो जो उसे पीट रहे हैं? इंदौर पुलिस की बहादुरी के किस्‍सों से इतर पुलिस की दबंगई की कुछ कहानियां ऐसी हैं जो इंसाफ को वारदात में बदल देते हैं. खास बात यह भी है कि यह सब कैमरे के सामने आने की चाहत में है.

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क्‍या थप्पड़, क्‍या डंडा, क्या लात-घूसा और क्‍या गाली-गलौच. बस यह समझ लीजिए कि इस कहानी में हर अंश थप्पड़, लात, लाठी, घूसा और गाली से सजा है और यह सीधे-सीधे कानून को ठेंगा दिखा रहा है. हर हरकत सीधे-सीधे चुनौती दे रही है हमारे इंसाफ की परंपरा को. पुलिसिया जुल्‍म की यह कहानी बार-बार यही सवाल दोहराती है कि हिंदुस्तान की कौन सी अदालत पुलिस को ये हक देती है कि वो यूं किसी को सरेआम सजा दे.

कैमरे के सामने आने की चाहत
दरअसल, हाल के वक्त में इंदौर पुलिस की ऐसी जितनी भी तस्वीरें सामने आई हैं उनमें से ज्यादातर तस्वीरें सिर्फ एक लोकल चैनल के कैमरामैन ने ही उतारी हैं. इंदौर पुलिस जब भी 'सिंघम' बनने के मूड में आती है उस लोकल चैनल के कैमरामैन और रिपोर्टर को बुला लेती है. फिर सारा तमाशा उनके कैमरे के हिसाब से ही अरेंज किया जाता है.

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अब उसी कैमरे से जो सबसे नई और ताजा तस्वीरें आई हैं उसे इंदौर में गुंडा अभियान के नाम से शुरू की गई इंदौर पुलिस की नई मुहिम कहा गया है. इस मुहिम को तहत सड़क पर और कैमरे पर छुठभैए और छोटे-मोटे गुंडों को पकड़ कर पुलिस खुद को हीरो समझती है. जबकि इसी इंदौर में साल भर में औसतन सौ से ज्यादा कत्ल, सवा सौ के करीब हत्या की कोशिश, 60 के करीब किडनैपिंग, सौ के आसपास रेप, दो सौ के करीब डकैती के मामले दर्ज होते हैं. इनमें से आधे से ज्यादा मामले इंदौर पुलिस से सुलझते भी नहीं, क्योंकि जिन्हें वो पकड़ती है वो सबूत न होने के कारण अदालत से बरी हो जाते हैं.

सड़क पर गुंडों का जुलूस और कैमरा
पिछली फरवरी में हमने आपको बताया था कि इंदौर पुलिस शहर में अपराधियों की जमात को कम करने के लिए और शहर में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए छुटभय्ये अपराधियों का जुलूस निकाल रही है. लेकिन इस खबर के बाद इंदौर पुलिस ने अपनी ये कवायद कुछ दिन के लिए रोक दी थी. लेकिन अब एक बार फिर सब पुराने ढर्रे पर लौट आया है. शहर की सड़कों और गलियों में एक बार फिर बदमाशों का जुलूस निकाला गया. लेकिन एक नए अंदाज़ में.

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इंदौर पुलिस जिसे गुंडा अभियान का नाम दे रही है, दरअसल वह सब कैमरे के सामने खुद को सूरमा बनाने की कवायद है. इसके तहत थाने के बीच दो शख्‍स को हथकड़ियों में जकड़ा जाता है और उन्‍हे पुलिसवाले घेर कर खड़े हो जाते हैं. अब 'सिंघम स्टाइल' में पुलिस अफसर थप्पड़ों की बारिश कर देते हैं.

अब कैमरा दूसरी तरफ घूमता है. इस तरफ भी दो और शख्स हथकड़ियों में बंधे खड़े हैं. लेकिन पुलिस अफसर वही हैं. एक हाथ में वॉकी-टॉकी और दूसरे हाथ से दे दनादन. लेकिन यह कहानी यही सवाल उठाती है कि इंदौर पुलिस के इस गंडा अभियान का असली गुंडा कौन है? वो जो पिट रहा है या वे लोग जो पीट रहे हैं?

पहले से तय होता है सबकुछ
पुलिस के इस गुंडा अभियान की सच्‍चाई यह है कि इस अभियान में सबकुछ पहले से तय होता है. थाना इंचार्ज अपने चहेते कैमरामेन और फोटोग्राफर की टीम के साथ निकल पड़ते हैं. कहां जाना है और क्या करना है यह सब पहले से तय होता है.

फिल्‍मी अंदाज में पुलिसगिरी
पुलिस के 'सिंघम' बनने की कहानी कुछ ऐसे शुरू होती है. जीप शहर के एक चौराहे पर रुकती है और साहब का इशारा मिलते ही चार लोग कान पकड़ कर उठक बैठक करना शुरू कर देते हैं. लेकिन साहब को मजा नहीं आ रहा है, इसलिए वो अपने मातहत से लाठी लेते हैं और फिर दे दनादन चारों आरोपियों पर लाठी बरसाना शुरू कर देते हैं.

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असल में यह इस जुलूस की शुरुआतभर है. इसके बाद जुलूस धीरे-धीरे आगे बढ़ता है और इस बार पुलिस पार्टी इलाके की हर दुकान के सामने चारों आरोपियों की उठक-बैठक लगवाती है. लेकिन जब एक दुकानदार से चारों आरोपियों की हकीकत जानने की गई तो दुकानदार ने बताया, 'ये इधर तो गुंडा वसूली नहीं करते और कहीं करते हो तो नहीं मालूम कि कहां करते हैं.'

मारधाड़ से पैर छूने तक
अब पुलिस की गाड़ी एक घर के सामने रुकती है और इस बार पुलिस चारों आरोपियों को पहले एक शख्स और फिर एक महिला के पांव छूने के लिए कहती है. कुछ देर बाद आरोपियों को इलाके में घुमाते हुए पुलिसवाले एक बार फिर एक घर के सामने रुकते हैं. तमाशबीनों के बीच से एक महिला को आगे आने के लिए कहा जाता है और पुलिसवालों के इशारे पर चारों लड़के महिला के पांव छू कर उससे माफी मांगते हैं.

पुलिस की सफाई
पूछने पर चंदन नगर के प्रभारी विनोद दीक्षित कहते हैं, 'रेखा चौधरी मैडम ने शिकायत की थी कि हमारे क्षेत्र में गुंडे टोनी और रोहित ने पत्थर फेंककर उनके घर पर हमला किया था. दुकानदारों का आवेदन प्राप्त हुआ था कि टोनी, रोहित और उसका भाई सागर अवैध वसूली कर रहे हैं और दूसरा प्रकरण है चापा जो चंदन नगर में रहता है. 8 नवम्बर 2012 को पुलिस पार्टी पर हमला हुआ था. एएसआई राठौर घायल हुए थे. उस समय से उस केस में फरार चल रहा था.

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पुलिस टीम प्रदीप नाम के एक बदमाश को भी इसी तरह मल्हारगंज इलाके में काफी देर तक घुमाती है. इलाके की हर सड़क, गली, नुक्कड़ और चौराहे पर वही मंजर नजर आता है. वो रास्तेभर चप्पल और थप्पड़ों की मार खाता रहा और जब पुलिसवालों का दिल भर गया तो पुलिस टीम उसे वापिस ले कर चली गई.

बकौल पुलिस प्रदीप पर शराब के नशे में एक शख्स के साथ मारपीट करने और अवैध हथियार रखने का आरोप था और बस इसी आरोप में पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया और न्यायालय में पेश करने से पहले उसका जुलूस निकालने का फ़ैसला किया.

मध्‍य प्रदेश के डीजीपी नंदन दूबे कहते हैं, 'गुंडा विरोधी अभियान चल रहा है पूरे प्रदेश में, लेकिन जो अभद्र व्यवहार या जो व्यवहार कानून से नहीं उस पर रिपोर्ट मंगवाई जा रही है.

बहरहाल, डीजीपी साहब ने तो कह दिया लेकिन आई जी साहब ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा ये अभी तक पता नहीं चल पाया है और सरेआम कानून के मुहाफिजों के इस तरह से कानून तोड़ने पर कब कार्रवाई होगी इसका भी पता नहीं है.

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