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उत्तर प्रदेश में शुरू हो गया है मीट 'विद्रोह'

स्लाटर हाउस, बूचड़खाना, कत्लखाना या फिर क़मेला कह लीजिए. यानी वो जगह जहां जानवरों को काटने का बाकायदा लाइसेंस दिया जाता है. मगर ये लाइसेंस सिर्फ बफैलो यानी भैंस के लिए है। और यही स्लाटर हाउस आजकल यूपी में सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है. इस मुद्दे से जुड़ा एक सवाल जिसका जवाब हर कोई जानना चहता है, वो ये कि क्या अब यूपी के सारे स्लाटर हाउस बंद कर दिए जाएंगे या फिर सर्फ उन बूचड़खानों पर ताले लगेंगे जो गैरकानूनी तरीके से चल रहे हैं? तो आइए आज आपको यूपी के बूचड़खानों को पूरा सच बताते हैं.

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मीट एक्सपोर्ट के कारोबार से हजारों लोगों की रोजी रोटी जुड़ी है
मीट एक्सपोर्ट के कारोबार से हजारों लोगों की रोजी रोटी जुड़ी है

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स्लाटर हाउस, बूचड़खाना, कत्लखाना या फिर क़मेला कह लीजिए. यानी वो जगह जहां जानवरों को काटने का बाकायदा लाइसेंस दिया जाता है. मगर ये लाइसेंस सिर्फ बफैलो यानी भैंस के लिए है। और यही स्लाटर हाउस आजकल यूपी में सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है. इस मुद्दे से जुड़ा एक सवाल जिसका जवाब हर कोई जानना चहता है, वो ये कि क्या अब यूपी के सारे स्लाटर हाउस बंद कर दिए जाएंगे या फिर सर्फ उन बूचड़खानों पर ताले लगेंगे जो गैरकानूनी तरीके से चल रहे हैं? तो आइए आज आपको यूपी के बूचड़खानों को पूरा सच बताते हैं.

बूचड़खानों को लेकर सियासत
बात सिर्फ मुसलमान नाम से पुकारे जाने वाली यूपी की लगभग चार करोड़ जनता की नहीं है. मुद्दा सिर्फ स्लॉटर हाउस या बूचड़खाने को बंद कराने का नहीं है, बल्कि सवाल कत्लखाने को लेकर सियासत का भी है. इसी सियासत से उठता सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या अब यूपी के सारे स्लाटर हाउस बंद हो जाएंगे? जानवरों के सारे कत्लखानों पर ताले लग जाएंगे? या फिर सिर्फ उन्हीं बूचड़खानों पर गाज़ गिरेगी जहां गैरकानूनी तरीके से धंधा हो रहा है, यानी जिनके पास जानवरों के कत्ल का लाइसेंस नहीं है?

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ना इस सवाल को छोटा समझिए और ना ही इसे सिर्फ और सिर्फ राजनीति समझने की भूल कीजिए। क्योंकि मामला 17 हजार करोड़ का है और करीब तीन लाख लोगों के रोजगार से जुड़ा है। लिहाजा सिय़ासत से परे सच सामने रखना जरूरी है। वो सच जिसे खुद बीजेपी के कुछ नेताओं ने अपने भाषण से उलझा दिया है। सच ये कि क्या यूपी के स्लाटर हाउस का असल सच है क्या और स्लाटर हाउस को लेकर दिए जा रहे बयानों की असलीयत क्या है?

केवल अवैध बूचड़खानों पर होनी थी कार्रवाई
मगर हां, इन सबसे पहले ये जान लीजिए कि स्लाटर हाउस में काटे जाने वाले जानवरों का सच क्या है? तो आपको बता दूं कि यूपी में कुल 285 स्लाटर हाउस हैं, जिनके पास बाकायदा जानवरों को काटने का लाइसेंस है और इन सभी स्लाटर हाउस में बुफैलो यानी भैंस काटे जाते हैं, जिसके मीट को बीफ कहा जाता है. चूंकि यूपी में गौ मांस पर प्रतिबंध है. लिहाजा किसी भी बूचड़खाने को गाय को मारने का लाइसेंस नहीं मिला है. यानी कायदे से गाज उन बूचड़खानों पर गिराई जानी है जो गैरकानूनी तरीके से चल रहे हैं. कानून की किताब में जिसकी मनाही है. वो पहले भी थी अब भी है. बस पहले नौकरशाह देख के अनदेखा कर देते थे. और अब फरमान मिलते ही एक्शन में आ गए. यानी खोट कानून में तो कभी था ही नहीं. खोट तो कायदे से उन लोगों में था जो ज़िला स्तर पर इसे लागू करवाते थे.

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अब बीजेपी ने चुनाव में बूचड़खानों को बंद करने का वादा तो कर दिया है. मगर अवैध बूचड़खानों को छोड़कर उन बूचड़खानों का क्या जो केंद्र सरकार से लाइसेंस लिए बैठे हैं और उनका क्या जो यांत्रिक फैक्ट्रियों में मीट का कारोबार करके देश की कुल आमदनी को 26 हज़ार करोड़ से भी ज़्यादा कर चुके हैं. और आने वाले वक़्त में 40 हज़ार करोड़ रुपये करने जा रहे हैं.

दुनिया का नंबर 1 बीफ एक्सपोर्टर है भारत
बड़ी कशमकश है.. जिस वैधानिक प्रक्रिया की बात यूपी के उप मुख्यमंत्री कैशव प्रसाद मौर्य कर रहे हैं, न तो उसका और न ही उस पिंक रेवेल्यूशन की बात बीजेपी के संकल्प पत्र में है, जिसका ज़िक्र पीएम मोदी किया करते थे. आइये एक नज़र उन आंकड़ों पर भी डाल लें जो ये बता रहे हैं कि इस कारोबार से आखिर देश को कितनी आमदनी होती है. भारत दुनिया का नंबर 1 बीफ एक्सपोर्टर देश है. देश में सबसे ज़्यादा बीफ एक्सपोर्ट यूपी से होता है. 2015 में 7,515 लाख किलो मीट का उत्पादन यूपी से हुआ. 2015 में बीफ़ एक्सपोर्ट से देश की कुल कमाई करीब 27 हज़ार करोड़ थी. जिसमें अकेले यूपी ने कुल 17 हज़ार करोड़ की कमाई की.

तीन जिलों में सबसे ज्यादा अवैध स्लॉटर हाऊस
बफैलो यानी भैंस के मीट की मांग दुनिया भर में सबसे ज्यादा है और भारत इसका सबसे बड़ा निर्यातक देश है. आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में भैंस के मीट का 20 प्रतिशत सिर्फ भारत से एक्सपोर्ट होता है. उत्तर प्रदेश में भारत की 28 फीसदी भैंसे हैं. यानी भारत में सबसे ज्यादा भैंसे उत्तर प्रदेश में है. भारत के 60 फीसदी बूचड़खाने और मीट प्रोसेसिंग यूनिट्स अकेले उत्तर प्रदेश में हैं. लाइसेंसी स्लॉटर हाऊस की वजह से प्रदेश के करीब 3 लाख लोगों को रोज़गार मिला हुआ है. पश्चिमी यूपी के बिजनौर, अमरोहा और चांदपुर में सबसे ज़्यादा अवैध स्लॉटर हाऊस हैं.

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लाइसेंसी की आड़ में अवैध बूचड़खाने
हिंदुस्तान दुनिया में बफैलो मीट का सबसे बड़ा निर्यातक देश कोई आज से नहीं बल्कि बरसों से है. यहां तक कि इससे जुड़े बाकी प्रोडक्ट से भी देश के खजाने में हर साल करोड़ों रुपए जमा होते हैं. और तो और देश की कई बड़ी दवा कंपनिय़ां भी दवा बनाने में इनके अलग-अलग प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती हैं. मगर एक दूसरा सच य़े भी है कि लाइसेंसी बूचड़खाने की आड़ में बहुत से गैर लाइसेंसी बूचड़खाने भी चल रहे हैं. जो सचमुच हर तरह से नुकसानदेह हैं और जिनपर लगाम लगाना जरूरी है.

यूपी में भैंसों की संख्या में हुआ इजाफा
बस यूं समझिए कि पशु उत्पाद यानी एनिमल प्रॉडक्ट्स का इंडियन इकॉनमी से ये जुड़ाव तो सिर्फ एक झलक भर है.. पर सवाल ये है कि योगी के मुख्यमंत्री बनते ही यूपी में बूचड़खानों की जो तस्वीर पेश की जा रही है उसमें हकीकत कितनी है. Livestock Census 2012 की रिपोर्ट ये बताती है कि साल 2007 के मुकाबले 2012 में उत्तर प्रदेश में भैंसों की संख्या में 28 फीसदी का इज़ाफा हुआ है, जबकि इसी दौरान उत्तर प्रदेश में गायों की संख्या भी 10 फीसदी बढ़ गई है.

महाराष्ट्र में हैं सबसे ज्यादा बूचड़खाने
एनिमल हस्बेंड्री डिपार्टमेंट ने आरटीआई के ज़रिए पूछे गए एक सवाल के जवाब में ये भी कहा है कि देश में बूचड़खानों के लिए सबसे ज़्यादा बदनाम यूपी असल में सबसे ज़्यादा स्लॉटर हाउस के मामले में पहले नहीं दूसरे नंबर पर है. जहां सिर्फ 285 बूचड़खाने हैं. जबकि इस फेहरिस्त में पहला नंबर महाराष्ट्र का है, जहां 316 बूचड़खाने हैं.

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यूपी में तीन दर्जन बूचड़खानों के पास है लाइसेंस
इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में करीब तीन दर्जन बूचड़खाने ऐसे हैं, जो केंद्र सरकार से लाइसेंस प्राप्त और रजिस्टर्ड हैं. जिनमें सबसे ज्यादा 7 अलीगढ़ में हैं. 5 गाजियाबाद जिले में. चार उन्नाव में. तीन मेरठ और दो सहारनपुर में हैं. इसके अलावा बाराबंकी, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, गौतमबुद्ध नगर, हापुड़, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, झांसी, और लखनऊ में भी एक-एक बूचड़खाना रजिस्टर्ड है.

एनजीटी ने अवैध स्लॉटर हाउस पर मांगा जवाब
पिछले साल सेंट्रल पॉलूशन कंट्रोल बोर्ड ने एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को ये जानकारी दी थी कि यूपी के 126 बूचड़खानों की जांच के बाद पता चला कि उनमें से सिर्फ एक के पास ही बूचड़खाने का लाइसेंस था. जबकि तमाम लाइसेंसी बूचड़खानों की जांच के बाद ये बात भी सामने आई कि उनमें से सिर्फ 21 के पास ही सही ट्रीटमेंट प्लांट है. एनजीटी ने इसी के बाद केंद्र और यूपी सरकार को नोटिस भेज कर अलीगढ़, गाजियाबाद, संभल और बुलंदशहर में चल रहे गैर-कानूनी स्लॉटर हाउस पर जवाब मांगा था.

यूपी है सबसे बड़ा बीफ निर्यातक राज्य
भारत में यूपी सबसे बड़ा बीफ़ निर्यातक राज्य है. यहां बीफ़ का मतलब भैंस के मीट से है. बीफ लफ्ज़ पर ज़ोर इसलिए है क्योंकि इसे लेकर देश में बहस किसी भी मुद्दे से हमेशा कहीं ज़्यादा रही. जबकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हक़ीक़त ये है कि देश से एक्सपोर्ट होने वाले एनीमल प्रॉडेक्ट का 95% फीसदी हिस्सा भैंस का रहा है. ऐसे में अब ये चर्चा एक बार फिर पुरज़ोर तरीके से हो रही है क्योंकि बीजेपी ने अवैध और यांत्रिक बूचड़खानों को बंद करने का संकल्प लेकर इस पेशे से जुड़े लाखों लोगों में खलबली मचा दी है.

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24 घंटे में शुरू हो गई कार्रवाई
यूपी में योगी आदित्यनाथ के सीएम पद की शपथ लेने के 24 घंटे के अन्दर ही योगी सरकार ने बीजेपी संकल्प पत्र के वादों को पूरा करना शुरू करा दिया है. सूबे के कई इलाकों में अवैध बूचड़खानों की सीलिंग शुरू हो चुकी है. जिनमें वाराणसी, लखीमपुर खीरी, उन्नाव, ग़ाज़ीपुर, इलाहाबाद, डासना, सहारनपुर, मथुरा, शामली, अलीगढ़, बुलंदशहर, मेरठ, कानपुर, गाज़ियाबाद, बाराबंकी, और संभल के बूचड़खाने प्रमुख हैं.

कई लोगों के लिए जिंदगी और मौत का सवाल
अवैध और वैध की बहस से अलग जिनकी और जिनके खानदान की ज़िंदगी के गुज़र बसर के लिए बूचड़खाना ज़रूरी है. उनमें बहुत बेचैनी है. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि रातो-रात अगर ये होने लगा तो खाएंगें क्या और जाएंगे कहां. योगी सरकार के एक्शन से डर का आलम ये है कि अमरोहा के गजरौला में मीट की अवैध दुकान बंद करने पहुंची पुलिस को देखकर एक दुकानदार ने खुद पर मिट्टी का तेल डाल लिया.

वादे से मुकर नहीं सकती सरकार
चुनाव प्रचार के दौरान बूचड़खाने बंद करने का वादा बीजेपी की पहली फेहरिस्त में शामिल था. मगर हकीकत तो ये है कि सरकार से लेकर आम जनता तक बूचड़खानों को बंद करने ना करने पर कंफ्यूज़ है. बड़े बड़े जानकार भी सिर खुजा रहे हैं. सरकार के लिए भी मुश्किल ये है कि जो वादा किया उससे मुकर नहीं सकती. और छोटे स्तर के व्यापारियों को छोड़कर बड़े व्यापारियों की गर्दन पर हाथ रख नहीं सकती क्योंकि हज़ारों करोड़ का धंधा इसी से जुड़ा है और यूपी के लाखों लोगों का रोज़गार भी. इसलिए रातोंरात कोई नई क्रांति आ जाएगी. ऐसी उम्मीद भी बेमानी है.

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