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क्या तिहाड़ के गैंगवार और कत्ल की वारदात टाली जा सकती थी?

देश की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल को लेकर एक मशहूर कहावत है. कहावत यह कि यहां बगैर इजाजत के कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता. लेकिन अब हकीकत यह है कि इस जेल में हर वो गुनाह मुमकिन है, जिसके बारे में आप सोच सकते हैं.

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देश की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल को लेकर एक मशहूर कहावत है. कहावत यह कि यहां बगैर इजाजत के कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता. लेकिन अब हकीकत यह है कि इस जेल में हर वो गुनाह मुमकिन है, जिसके बारे में आप सोच सकते हैं.

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इन्हीं गुनाहों के बीच अब इस जेल से गैंगवार और कत्ल की खबर आई है. यह कत्ल एक हाई सिक्योरिटी जेल के हाई रिस्क वार्ड में हुआ है. जेल नंबर आठ के वार्ड नंबर 5 में मंगलवार की रात वार्ड से अचानक निकली चीखों ने हर किसी का ध्यान इस तरफ खींच लिया. लेकिन जब तक अनहोनी से घबराए संतरी वार्ड के करीब पहुंचे, तब तक मामला हाथ से बाहर निकल चुका था. वार्ड के अंदर बंद एक कैदी दीपक सिंह फर्श पर लहूलुहान पड़ा हुआ था. उसके जिस्म में हरकत तकरीबन बंद हो चुकी थी. जबकि उसी वार्ड में उसके साथ बंद चार और कैदी मौके पर ही रंगे हाथ खड़े थे.

वार्ड में अकेले पड़ गए दीपक पर जानलेवा हमला हुआ था0 और यह हमला कितना खौफनाक था, इसका अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके चार साथी कैदियों ने मिल कर ना सिर्फ उसकी आंखें फोड़ दी थीं, बल्कि कुछ नुकीली चीजों से उसके चेहरे से लेकर तकरीबन पूरा जिस्म ही छलनी कर दिया था. अब जेल प्रशासन ने आनन-फानन में दीपक को उठा कर दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल भिजवाया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. डॉक्टरों ने दीपक को मृत घोषित कर दिया.

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दीपक लूट, डकैती और अपहरण जैसे गुनाहों के 14 मामलों में पिछले सात सालों से इसी जेल में बंद था. उसकी गितनी जेल के खूंखार कैदियों में होती थी, उसे वार्ड नंबर 5 में रखा गया था.

दीपक के कत्ल के इल्जाम में जिन कैदियों के हाथ खून से रंगे हैं, उनका बैकग्राउंड भी कोई कम खतरनाक नहीं है. ये कैदी सतपाल बेदी, मनप्रीत, सूरज और रियाज हैं. सूत्रों की मानें तो एक डबल मर्डर समेत ऐसे ही संगीन गुनाहों के इल्जाम में जेल में बंद सतपाल ना सिर्फ इस वार्ड में बंद बाकी के गैंगस्टरों का सरगना है, बल्कि वह जेल से वसूली का धंधा भी चलाता है. अपनी दबंग शख्सियत की वजह से ही सतपाल जेल में बाकी कैदियों के काम की जवाबदेही भी तय करता है. यानी कौन सा कैदी क्या काम करेगा और कौन आराम करेगा, अपने वार्ड में यह सब सतपाल ही तय किया करता था. अब दीपक ने सतपाल और उसके गैंग के साथ रहते हुए भी उसकी शख्सियत को चुनौती देने की शुरुआत कर दी थी. सूत्रों की मानें तो मोटे तौर पर दीपक के कत्ल के पीछे भी यही वजह रही.

अगर तिहाड़ प्रशासन चौकस होता और कैदियों पर निगाह रखी जाती तो यह वारदात नहीं होती. यहां तो जो कैदी एक-दूसरे के दुश्मन थे उन्हें ना सिर्फ साथ रखा गया बल्कि वही कैदी महीनों से प्लेट, चम्मच और पाइप जैसी चीज़ों को घिस-घिस कर अस्लहा बनाते रहे और संतरी कान में तेल डाल कर सोते रहे. ऐसे में सवाल है कि आखिर जेल प्रशासन अब तक इन तमाम बातों की अनदेखी क्यों करता रहा?

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