आज से तकरीबन 22 साल पहले 12 मार्च 1993 को सिर्फ दो घंटे और 12 मिनट में मुंबई के सीने पर 12 धमाके हुए. इन सिलसिलेवार धमाकों के बाद जब धुएं का गुबार छंटा तो पूरे शहर में 257 लाशों के बीच करीब 700 लोग बुरी तरह कराह रहे थे. आतंकी हमले के गुनहगारों का चेहरा अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और उसके गुर्गों की सूरत में बेनकाब हुआ, वहीं अब बारी मुंबई धमाकों के सबसे बड़े प्लांटर याकूब मेमन के आखिरी अंजाम की है.
बेगुनाहों को मौत बांटने वाले याकूब को फांसी पर लटकाए जाने का दिन मुकर्रर हो चुका है. इसी के साथ शुरू हो चुका है उसके मौत का काउंट डाउन.
30 जुलाई 2015 को मुंबई सीरियल ब्लास्ट के गुनहगारों में से एक याकूब मेमन का वो अंजाम होने जा रहा है, जिसका इंतजार हिंदुस्तान को पूरे 22 वर्षों से है. हिंदुस्तान की सबसे बड़ी अदालत की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे शख्स के हुक्म के बाद इसी रोज नागपुर जेल में सुबह 7 बजे याकूब अब्दुल रज्जाक सेमेमियू उर्फ याकूब मेमन को फांसी के फंदे पर लटकाने का दिन मुकर्रर हुआ है.
पुलिस की जांच, सुराग और सच्चाई
मुंबई को 12 जगहों से लहूलुहान करने वाले इन धमाकों के बाद मौका-ए-वारदात से सुराग इकट्ठा करने से लेकर इसके गुनहगारों को अंजाम तक पहुंचाने का ये काम पुलिस और अदालत के लिए कोई आसान नहीं था. बहरहाल, सुराग मिले और तफ्तीश आगे बढ़ी तो जल्द ही सच्चाई की रोशनी में वो दो चेहरे भी बेनकाब हो गए, जिनके दिमाग से ये खौफनाक साजिश बाहर निकली थी. इनमें एक था, अंडरवर्ल्ड डॉन और डी कंपनी का मुखिया दाऊद इब्राहिम तो दूसरा था उसका करीबी और डी कंपनी का लेफ्टिनेंट टाइगर मेमन. ये और बात है कि जब तक पुलिस को टाइगर मेमन और दाऊद इब्राहिम का पता चला, दोनों हिंदुस्तान की सरहद से दूर जा चुके थे.
मुंबई पुलिस ने इस सिलसिले में कुल 129 लोगों के खिलाफ मुकदमे की शुरुआत की, जिनमें से आखिरकार सौ लोगों को गुनहगार करार दिया गया. इन्हीं सौ लोगों में एक नाम था टाइगर मेमन के भाई और मेमन परिवार के सबसे पढ़े लिखे शख्स याकूब मेमन का. हालांकि, मुंबई धमाकों के बाद याकूब भी हिंदुस्तान से निकल भागने वालों में शामिल था, लेकिन आगे चलकर नेपाली पुलिस ने उसे काठमांडू एयरपोर्ट से धर दबोचा.
इसके बाद मेमन परिवार के कई दूसरे लोगों के साथ याकूब मेमन पर भी मुकदमा चला, लेकिन तफ्तीश की रोशनी में याकूब के दामन पर बेगुनाहों के खून के कुछ इतने छींटे नजर आए कि आखिरकार मुंबई की खास टाडा कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुना दी और इसी सजा पर 21 मार्च 2013 को जहां सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी, वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद मेमन की ओर से दी गई रहम की अर्जी को भी राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया.
ट्रेनिंग के लिए भेजा पाकिस्तान
ये याकूब मेमन ही था जिसने धमाकों की ट्रेनिंग के लिए डी कंपनी के गुर्गों को पाकिस्तान भेजा. ये याकूब मेमन ही था, जिसने धमाकों के लिए बारूद का इंतजाम किया और ये याकूब मेमन ही था, जिसने मुंबई की सड़कों को बेगुनाहों के खन से लाल कर दिया. मुंबई धमाके को 22 लंबे साल गुजरने के बावजूद इनमें दो तो अब भी हिंदुस्तानी सरहद और हिंदुस्तान के कानून से मीलों दूर हैं, लेकिन तीसरा और इस हमले का सबसे बड़ा प्लांटर अब अपने अंजाम तक पहुंचनेवाला है.
धमाकों में मेमन परिवार के शामिल होने की बात सामने आने के साथ ही पुलिस ने इस परिवार के दूसरे लोगों के साथ-साथ याकूब की भी तलाश शुरू कर दी थी. लेकिन उन दिनों वो पाकिस्तान में था, मगर बाद में उसे नेपाल से गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद याकूब के खिलाफ जिन धाराओं में मुकदमा चला और उसके खिलाफ जैसे-जैसे सुबूत पुलिस के हाथ लगे, वो उसके ताबूत में लगने वाला एक-एक कील साबित हुआ.
गुनाहों की फेहरिस्त और सजा
मुंबई बम धमाकों में याकूब मेमन को आपराधिक साजिश रचने का गुनहगार पाया गया. यही वो धारा थी, जिसकी बदौलत उसे अदालत ने सजा-ए-मौत यानी फांसी की सजा सुनाई.
मेमन ने ही ईस्ट-वेस्ट ट्रैवल्स के जरिए उन मुजरिमों के लिए अस्लहे खरीदे और हवाई टिकट बुक करवाए, जिन्हें धमाकों की ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजा गया. इतना ही नहीं उसी ने इन गुनहगारों के पाकिस्तान में रहने और ठहरने का इतंजाम भी किया और वो गाड़ियां भी खरीदीं, जिनमें मुंबई में अलग-अलग जगहों पर बम प्लांट किया गया. इस गुनाह में उसे उम्र कैद की सजा मिली. याकूब को अस्लहे और बारूद का इंतजाम करने और उन्हें दूसरे गुनहगारों तक पहुंचाने के मामले में भी गुनहगार पाया गया और इस गुनाह में उसे 14 साल कैद बामशक्कत की सजा सुनाई गई.
आगे पढ़ें, कैसे एक स्कूटर ने खोले सारे राज{mospagebreak}डिप्रेशन का मरीज है याकूब
धमाकों के लिए गोला-बारूद जमा करने के जुर्म में याकूब पर एक्सप्लोसिव एक्ट की धाराओं के तहत भी मुकदमा चला और इसमें उसे 10 साल के कैद की सजा हुई. हालांकि इतने गुनाहों में मुजरिम करार दिए जाने के साथ ही याकूब डिप्रेशन का मरीज भी हो गया. जिसकी बिनाह पर उसके वकीलों ने उसके लिए रहम की भीख भी मांगी, लेकिन कानून ने उसकी ऐसी हर फरियाद अनसुनी कर दी.
लावारिस स्कूटर बना अहम सुराग
ये देश में अपनी तरह का वह पहला आतंकी हमला था. एक ऐसा हमला जिसने ना सिर्फ सैकड़ों बेगुनाहों की जान ले ली, बल्कि पूरे हिंदुस्तान को हिला दिया. जाहिर है ऐसे किसी मामले की तफ्तीश करने का मुंबई पुलिस के लिए भी पहला तर्जुबा था. लेकिन एक स्कूटर की सूरत में मिले सुराग ने एक ही झटके में सारा केस खोल दिया.
मुंबई को लहूलुहान करनेवाले ऐसे भयानक हमले से देश पहली बार दो-चार हुआ था. यहां तक दिल्ली तक को भी इस वारदात के बाद हरकत में आना पड़ा. तफ्तीश के लिए तीन टीमें बनाई गईं. एक टीम तब के डीसीपी राकेश मारिया की, दूसरी टीम दूसरे तत्कालीन डीसीपी अरुप पटनायक की और तीसरी खुद तत्कालीन पुलिस कमिश्नर एएस सामरा की.
इस सीरियल धमाके के 48 घंटे बीत चुके थे कि तभी दोपहर डेढ़ बजे मुंबई पुलिस कंट्रोल रूम को दादर इलाके में एक लावारिस स्कूटर की खबर मिलती है. पुलिस फौरन मौके पर पहुंचती है और उसे पता चलता है कि स्कूटर के अंदर करीब 15 किलो आरडीएक्स छुपा है जो इत्तेफाक से फट नहीं सका. पुलिस स्कूटर की पड़ताल कर ही रही होती है कि पुलिस को वर्ली इलाके में एक लावारिस मारुति वैन मिलने की खबर आती है और इस वैन में भारी तादाद में हैंड ग्रेनेड, बारूद और एके-47 राइफलें मिलती हैं.
मारुति वैन ने पहुंचाया मेमन के घर
रजिस्ट्रेशन नंबर से पता चलता है कि मारुति वैन मुंबई के माहिम इलाके के दरगाह रोड़ पर अल-हुसैनी बिल्डिंग में रहने वाली किसी रुबीना सुलेमान मेमन के नाम पर रजिस्टर्ड है. असल में यही मेमन परिवार के खिलाफ पुलिस को मिला पहला सुराग था. रुबीना मुंबई अंडरवर्ल्ड के डॉन टाइगर मेमन के बड़े भाई सुलेमान की पत्नी थी. सुराग की तलाश में पुलिस की टीम फौरन रुबीना के घर पहुंचती है, लेकिन घर पर ताला पड़ा था.
पूछताछ करने पर पता चला कि पूरा मेमन परिवार 12 मार्च यानी धमाके के रोज ही सुबह की फ्लाइट से दुबई चला गया. ठीक धमाके वाले दिन पूरे परिवार का एक साथ देश छोड़ना शक पैदा कर रहा था. लेकिन धीरे-धीरे तफ्तीश यहीं से आगे बढ़ी और धीरे-धीरे सारे चेहरे बेनकाब हो गए.