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बदायूं रेप केस: बिना लाश क्या करेगी CBI?

सीबीआई ने तब ऐलान किया था. बातें हुई थीं. चिट्ठी भी लिखी गई और तो और गंगा की धार रोकने के लिए भी सारे जतन किए. लेकिन वहीं नहीं किया जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी. यानी जरूरत कब्र खोद कर लाशें निकालने की. फिर ख्याल आया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. लाशों के साथ-साथ पूरी जांच ही पानी में जा चुकी थी. जी हां, हम बात कर रहे हैं उस बदायूं केस की जिसमें दो बहनों को मार कर पेड़ पर टांग दिया गया था.

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अधर में बदायूं गैंगरेप मामले की सीबीआई जांच
अधर में बदायूं गैंगरेप मामले की सीबीआई जांच

सीबीआई ने तब ऐलान किया था. बातें हुई थीं. चिट्ठी भी लिखी गई और तो और गंगा की धार रोकने के लिए भी सारे जतन किए. लेकिन वहीं नहीं किया जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी. यानी जरूरत कब्र खोद कर लाशें निकालने की. फिर ख्याल आया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. लाशों के साथ-साथ पूरी जांच ही पानी में जा चुकी थी. जी हां, हम बात कर रहे हैं उस बदायूं केस की जिसमें दो बहनों को मार कर पेड़ पर टांग दिया गया था.

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कहां तो तय था कि गैंगरेप का शिकार हुई दोनों बहनों की लाशें निकाल कर सीबीआई उनका दोबारा पोस्टमार्टम करवाएगी और कहां इन लाशों को निकालना तो दूर, लाशों तक पहुंचना भी सीबीआई के लिए मुहाल हुआ जा रहा है. उस पर गरज ये कि जिस तेजी से गंगा ने इन कब्रों को अपनी आगोश में लिया है, उसके बाद सीबीआई तो क्या सूबे का फ्लड मैनेजमेंट डिपार्टमेंट यानी बाढ़ खंड विभाग भी कब्रों तक पहुंच पाने के मामले में अपने हाथ खड़े कर चुका है. अब हालत ये हैं कि आने वाले चंद दिनों में तो क्या अगले दो-तीन महीने तक दोनों बहनों की लाशों को खोद कर दोबारा बाहर निकलवाना तकरीबन नामुमकिन है.

दरअसल, बदायूं के इस चर्चित गैंगरेप मामले की जांच सीबीआई के हवाले किए जाने के साथ ही देश की इस प्रीमियर जांच एजेंसी ने लाशों को दोबारा कब्र से निकाल कर पोस्टमार्टम करवाने का ऐलान कर दिया था. यह बात 9 जुलाई की है और तब से अब तक सीबीआई कहती और सिर्फ कहती ही रह गई. पूरे दस दिनों के बाद यानी 19 जुलाई को जब सीबीआई गंगा नदी के किनारे बने इन कब्रों की खुदाई के लिए पहुंची तब तक सबकुछ बदल चुका था. कब्र गंगा की लहरों में सात-आठ फीट नीचे गहरे पानी में समा चुके थे और सीबीआई जैसे-जैसे इन लाशों की खुदाई के लिए यहां से पानी निकालने का इंतजाम करती, वैसे-वैसे और ज्यादा पानी इन कब्रों के आस-पास भर जाता.

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दस दिनों तक क्या करती रही सीबीआई?
सीबीआई के आगे की कवायद की पूरी राम कहानी आपको तफ्सील से बताएं, उससे पहले ये जान लेते हैं कि 9 जुलाई से लेकर 19 जुलाई तक यानी पूरे दस दिन तक देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी आखि‍र क्या करती रही? किस तरह एक अहम केस की जांच में देरी की गई. कब्र से लाश बाहर निकालने की जरूरत इसलिए आ पड़ी क्योंकि इस बात को लेकर सवाल खड़े हो गए थे कि दोनों बहनों के साथ रेप हुआ भी है या नहीं. लेकिन पोस्टमार्मटम के लिए मेडिकल बोर्ड बिठाने में ही आठ दिनों का वक्त जाया कर दिया गया और 17 जुलाई को जब मेडिकल बोर्ड तैयार हुआ, तब तक कुदरत अपना काम कर चकी थी.

रहस्य की चादर में लिपटे बदायूं गैंगरेप मामले की जांच जब सीबीआई से कराए जाने का ऐलान हुआ था, तो लगा था कि अब गुनहगारों के चेहरे से पर्दा हट जाएगा. लेकिन अब लाशों को बाहर निकालना तो दूर उन तक पहुंचना भी मुश्किल है. ऐसे में बगैर पुख्ता फॉरेंसिक सुबूत के सीबीआई गुनहगारों को सजा कैसे दिलाएगी, यही सबसे बड़ा सवाल है.

सीबीआई को थी हर बात की जानकारी
सीबीआई को ग्राउंड लेवल की हकीकत की पूरी जानकारी थी. यही नहीं, उसे ये भी अच्छी तरह पता था कि दोनों बहनों की लाशें गंगा नदी के किनारे एक ऐसी जगह पर दफ्न है, जो नदी के कैचमेंट एरिया में आता है और हर साल बरसात के दिनों में ये इलाके पूरी तरह डूब जाता है. लेकिन सीबीआई ने जल्दी से कब्रों की खुदाई कर लाशें निकालने की बजाय दूसरे सरकारी महकमों के साथ खतों-किताबों का खेल खेलना ही मुनासिब समझा.

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पहले डीएम को चिट्ठी लिख कर खुदाई के लिए सुरक्षा इंतजाम करने की बात कही और तब नरौरा डैम प्रबंधन से भी राब्ता कायम किया ताकि गंगा का पानी छोड़ने से रोका जा सके. लेकिन इतना होने के बावजूद वो मौके पर पहुंचने की जहमत नहीं उठा सकी. उधर, डीएम ने जहां जल्दी से खुदाई नहीं होने पर कब्रों के डूब जाने की बात कही, वहीं नरौरा डैम ने भी सीबीआई को 24 घंटे का वक्त देते हुए ये साफ कर दिया अगर उसने इतने वक्त में लाशें नहीं निकलवाई तो डैम प्रबंधन के लिए पानी रोकना मुश्किल हो जाएगा.

सीबीआई की काहिली का कमाल देखिए कि उसे मौके पर पहुंचकर लाशें निकलवा लेने का ख्याल नहीं आया. वो आराम-आराम से बदायूं पहुंचने का प्लान बनाती रही. 19 जुलाई को जब सीबीआई की टीम पहली बार पूरे लवाजमे के साथ यहां पहुंची, तब तक वक्त बदल चुका था. सूखी जमीन पर पानी भर चुका था. कब्र 9 फीट पानी के नीचे समा चुके थे.

पानी में बहाई मेहनत
जब सब खत्म हो गया तो सीबीआई ने बाढ़ खंड विभाग के साथ गंगा की धार में सैकड़ों रेत की बोरियां डालकर पानी की धार को रोकने की कोशिश की. दो-दो ट्यूबवेल लगा कर पानी निकाला जाता रहा. लेकिन हुआ वही जो होना था. इधर, एक तरफ से पानी निकला, दूसरी तरफ से दुगना पानी कब्रों में भर जाता. नतीजा, ये हुआ कि पहला दिन बिल्कुल बेकार चला गया. अफसर अपने-अपने होटलों और सरकारी गेस्ट हाउसों में वापस चले गए. दूसरे दिन जब दोबारा मौके पर पहुंचे तो रेत की बोरियां भी पानी में डूब चुकी थी. वो तो गनीमत थी कि सीबीआई ने कब्रों की निशानदेही के तौर पर एक झंडा सा गाड़ दिया था इसलिए कब्रों की पहचान हो सकी.

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अब सीबीआई ने झेंप मिटाने के लिए एक तरफ जहां उस पेड़ की डाल पर नाप-जोख करना शुरू कर दिया है जिस डाल पर लाशें टंगी थी, वहीं दूसरी तरफ घरवालों से घंटों लंबी पूछताछ की गई. लेकिन इन तमाम कवायद के बीच एक सवाल जो जस का तस रह गया वो ये कि अगर सीबीआई इस मामले का सच पता भी कर ले तो भी बगैर लाशों और बिना पुख्ता फॉरेंसिक एविडेंस के क्या वो गुनहगारों को सजा दिलवा पाएगी?

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