क्या अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव का बग़दादी के खात्मे से कोई रिश्ता है? क्या आठ नवंबर को होने वाले चुनाव से ठीक पहले बगदादी और उसके आईएसआईएस का खात्मा हो जाएगा? जानकारों की मानें तो मोसूल में बगदादी के खिलाफ आखिरी जंग के लिए जो वक्त चुना गया उसका मकसद ही अमेरिकी चुनाव है. बराक ओबामा ने बगदादी के खात्मे के लिए ये वक्त इसलिए चुना है ताकि इससे उनकी पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन का चुनाव जीतना पक्का हो जाए. यानी इस हिसाब से आईएस की कहानी अब बस चार दिन की और है.
इराक़ के शहर मोसुल में इन दिनों जो कुछ हो रहा है वो इस लड़ाई के बिल्कुल आख़िरी दौर में होने की निशानी है. दहशत की दुनिया का सबसे बड़ा नाम और आईएसआईएस का सरगना अबु बकर अल बग़दादी अब चारों तरफ़ से घिर चुका है. दुनिया जानती है कि इस जंग का सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही हासिल है और वो है बग़दादी की लाश पर आईएसआईएस का सफ़ाया. लेकिन फिर खुद को भुलावे में रखने के लिए ही सही, ये जल्लाद बस एक आख़िरी कोशिश कर रहा है.
पिछले दो सालों से दुनिया भर की फ़ौज और खुफ़िया एजेंसियों के लिए जो बग़दादी जीते जी एक छलावा बन गया था. अब आठ महीनों में वो पहली बार बोला है. और बोला भी क्या है, बुरी तरह घिर चुके अपने आतंकवादियों को वो एक बार फिर से लड़ने के लिए उकसा रहा है. कभी वो कहता है कि इराक़ की नदियों का पानी काफ़िरों के ख़ून से लाल कर दो, तो कभी कहता है कि मैदान ए जंग में पीठ दिखा कर भागने से आसान है लड़ते हुए मारा जाना. बग़दादी की इन बातों से ही उसकी ज़ेहनी हालत और नाउम्मीदी की झलक मिल जाती है.
अब मोसुल में बग़दादी के कब्ज़ेवाली जगहों पर भी इराक़ी फ़ौज दाखिल हो चुकी है. पिछले दो सालों में ऐसा पहली मर्तबा हुआ है, जब मोसुल में आईएसआईएस पीछे हटा है. इस वक्त इस शहर में बग़दादी के करीब 5 हज़ार आतंकवादियों की फौज मौजूद है. जबकि इराक़ी सेना, कुर्दिश लड़ाके और मित्र देशों के एक लाख फ़ौजियों ने उन्हें घेर लिया है. लेकिन इसी शहर में अब 10 लाख शहरी यानी बेगुनाह लोग भी फंसे हैं. यही आईएसआईएस के साथ चलते इस जंग का सबसे ख़तरनाक पहलू है. दरअसल, आईएसआईएस इराक़ के इन लोगों को ना सिर्फ़ इराक़ी फ़ौज के खिलाफ भड़का रहा है, बल्कि उन्हें हर क़ीमत पर अपना साथ देने के लिए भी कह रहा है. और सच्चाई तो ये है कि मोसुल में रहनेवाले इन लोगों की हालत इधर कुआं उधर खाई वाली है. वो बग़दादी का साथ दें, तो भी उनकी मुसीबत तय है और ना दें, तो भी मुश्किल है. बग़दादी का साथ देते हैं तो शहर में घुस आई इराक़ी और मित्र देशों की फ़ौज का निशाना बनते हैं और साथ ना दें, तो आईएसआईएस के आतंकवादी कहर ढा सकते हैं.
कैलेंडर के पन्ने जैसे-जैसे पलट रहे हैं. बग़दादी की बर्बादी वैसे-वैसे क़रीब आती जा रही है. लेकिन अब उसकी हालत वाकई ख़राब है. मोसुल को छोड़ कर पूरे इराक़ से उसका सफ़ाया हो चुका है, उसके हज़ारों आतंकवादी भी मारे जा चुके हैं. साथ ही उसकी कमाई का सबसे बड़ा ज़रिया रहे तेल के कुएं भी उसके हाथ से निकल गए हैं.
दरअसल बगदादी ने खाड़ी देशों की अराजकता का लाभ उठाते हुए तेल के कुओं पर अपना कब्जा कर लिया था. लेकिन अब हालत इतनी खराब हो गई है कि वो अपने आतंकियों को तनख्वाह तक नहीं दे पा रहा है. इससे आतंकी तो भाग ही रहे थे. इस पर इराकी सेना का हमला इतना तेज हुआ कि बगदादी के आतंकी तो बुर्के में भी भागने लगे. ये दूसरी बात है कि उन्हें कामयाबी नहीं मिली. बगदादी कई बार घिरा लेकिन चकमा देकर भाग निकलता था. इस बार इसकी उम्मीद नहीं दिखती. इसलिए बगदादी को एक और डर सता रहा है. ये बात तो बगदादी भी जानता है कि जैसे ही उसके हलक से जान निकलेगी, आईएसआईएस का आतंक भी बेमौत मारा जाएगा. खुद को इस्लामिक स्टेट का खलीफा बनाने का सपना देखने वाला बगदादी ये भी नहीं सोच पा रहा कि उसके बाद आतंक का खलीफा कौन बनेगा. जानकारों का मानना है कि अगर कोई खलीफा बन भी गया तो भी वो आईएस को बर्बाद होने से बचा नहीं सकता.