देश की राजधानी दिल्ली का एक रेस्तरां...उसमें बैठे लोग खा रहे थे कि अचानक ये रेस्तरां गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. जबतक इस गोलीबारी की आवाज थमती, तबतक खून से लथपथ एक शख्स जमीन पर गिरा पड़ा था. दिल्ली पुलिस की मानें, तो ये शख्स एक जालसाल था. लेकिन दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के अफसरों ने उस शख्स का एनकाउंटर कर दिया.
लेकिन जिस तरीके से इस एनकाउंटर को अंजाम दिया गया, उसे देख कर ये सवाल तो उठता है कि क्या ये एक एनकाउंटर था या फिर एक मर्डर? दिल्ली के पटेल नगर में रहने वाला एक शख्स मनोज वशिष्ठ 16 मई की शाम करीब 8 बजे अपने एक दोस्त अन्नू यादव के साथ एक बिजनेस मीटिंग के लिए दिल्ली के न्यू राजेंद्र नगर के सागर रत्ना रेस्तरां पहुंचता है. गाड़ी से उतरने के बाद वो रेस्तरां के अंदर जाता है और रेस्तरां के अंदर पहले से मौजूद एक टेबल पर बैठे अपने पांच कारोबारी दोस्तों के साथ मीटिंग करने लगता है.
उस वक्त मनोज को ये पता नहीं था कि जिस रेस्तरां के अंदर वो मीटिंग कर रहा था, उसी रेस्तरां के बाहर कुछ लोग उस पर नजर रखकर बैठे हुए थे. यानी मनोज का इंतज़ार कर रहे लोगों के पास यह खबर पहले से थी कि मनोज अपने किसी जानकार से मिलने के लिए सागर रत्ना रेस्टोरेंट में आने रात के करीब साढ़े 8 बजे आने वाला है.
मनोज के रेस्तरां के अंदर जाने के कुछ देर बाद उस पर नजर रख रहे सात लोगों में से एक शख्स रेस्टोरेंट के अंदर जाता है. दरअसल जो लोग मनोज पर नजर रखे हुए थे वो दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के अफसर थे. सभी सादी वर्दी में थे. जो शख्स रेस्तरां के अंदर जाकर मनोज की पहचान करता है, दरअसल वो स्पेशल का इंस्पेक्टर धर्मेंद्र था. मनोज की पहचान करने के बाद वो अपने साथियों को फोन कर अंदर आने के लिए कहता है.
रेस्टोरेंट के बाहर खड़ा उसका दोस्त अन्नू यादव तीन लोगों को अंदर जाते हुए देखता है. लेकिन तब भी उसे किसी अनहोनी का शक नहीं होता.
जैसे ही दिल्ली पुलिस के दो अफसर रेस्तरां के अंदर घुसते हैं तो रेस्तरां के अंदर मौजूद इंस्पेक्टर धर्मेंद्र मनोज की पीछे की तरफ से उसकी तरफ बढ़ता है और उसे पीछे से उसके नाम से पुकारता है और कहा कि मनोज मैं पुलिस से हूं, मेरे साथ चलो. मनोज पीछे मुड़कर देखता है और फिर बड़ी तेज़ी से अपनी पिस्टल निकालकर पुलिसवालों पर फायर कर देता है. इंस्पेक्टर धर्मेंद्र उसे पीछे से पकड़ने की कोशिश करता है, लेकिन वो उसकी गिरफ्त में नहीं आता. ये देखकर स्पेशल सेल का एक अफसर मनोज पर फायर कर देता है. गोली मनोज के सिर में लगती है और मनोज वहीं गिर पड़ता है.
अचानक हुई गोलीबारी से रेस्तरां के अंदर अफरा-तफरी मच जाती है, क्योंकि जिस वक्त मनोज का एनकाउंटर हुआ, उस वक्त रेस्तरां के अंदर करीब 20 स्टाफ और करीब 40 लोग खा रहे थे. एनकाउंटर के बाद पुलिसवाले लोगों को समझाते हैं कि वो दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के अफसर हैं और जिस शख्स को गोली लगी है, दरअसल वो एक शातिर ठग है. दिल्ली पुलिस उसे पिछले काफी वक्त से तलाश कर रही थी. इतना ही नहीं, दिल्ली पुलिस ने उस पर 50 हजार का इनाम भी घोषित कर रखा था. लेकिन इसके बावजूद मनोज उसकी गिरफ्त में नहीं आ रहा था और फरार चल रहा था.
उधर जब तक मनोज को अस्पताल ले जाया गया, तब तक उसकी मौत हो चुकी थी. एनकाउंट की खबर मिलते ही पूरे इलाके में अफरातफरी मच गई. दिल्ली पुलिस के तमाम आला अधिकारी मौके पर पहुंच गए और साथ ही मनोज का परिवार जिसने पूरे एनकाउंटर को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया.
स्पेशल सेल के अफसरों ने जिस तरह से मनोज वशिष्ठ का एनकाउंटर किया, उसको देखकर तो लगता है कि सेल के अधिकारियों को इस बात का गुमान तक नहीं था कि मनोज के पास हथियार भी हो सकता है. लेकिन इससे भी बड़ा सवाल ये कि आखिर क्यों धोखाधड़ी और चीटिंग के आरोपी को स्पेशल सेल गिरफ्तार करना चाहता था.
दिल्ली के भीड़भाड़ वाले इलाके राजेन्द्र नगर के एक रेस्टोरेंट में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की टीम पहुंची और फिर पूरा रेस्टोरेंट गोलियों की आवाज से गूंज उठा. कुल मिलाकर दो राउंड फायिरंग हुई और पुलिस के मुताबिक जिसमें से एक गोली पुलिस ने चलाई, जबकि दूसरी गोली मनोज ने चलाई थी. हालांकि ये अभी तक साफ नहीं है कि पहली गोली किसने चलाई थी.
लेकिन भीड़भाड़ वाले इलाके में हुए एनकाउंटर ने तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं. पुलिस की मानें, तो वो एनकाउंटर में मारे गए मनोज को पकड़ने गए थे, लेकिन मनोज ने देखते ही उस पर गोली चला दी जवाबी फायरिंग में चली गोली मनोज के सिर में जाकर लगी और अस्पताल पहुंचते-पहुंचते मनोज की मौत हो गई. एनकाउंटर की खबर मिलते ही सेल समेत दिल्ली पुलिस के तमाम अधिकारी मौके पर पहुंच गए. मनोज की मौत का पता चलते ही मनोज का परिवार भी मौके पर पहुंच गए और उन्होंने पूरे एनकाउंटर को ही सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया...
सवाल नंबर एक:
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल जो खासतौर पर आतंकियों और खूंखार अपराधियों को पकड़ने के लिए बनाई गई है, वो एक जालसाज को पकड़ने में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रही थी?
सवाल नंबर दो:
स्पेशल सेल में मनोज के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं था, तो सेल के पुलिसवाले मनोज की गिरफ्तारी के लिए क्यों गए थे?
सवाल नंबर तीन:
मनोज सेंट्रल दिल्ली के पटेल नगर में ही रहता है और उसके खिलाफ एक मामला पटेल नगर थाने में ही दर्ज था, तो पटेल नगर थाना पुलिस ने उसे पकड़ने की जहमत क्यों नहीं उठाई?
सवाल नंबर चार:
मनोज के खिलाफ दो मामले बाराखंबा रोड में दर्ज थे, तो फिर बाराखंबा रोड पुलिस ने मनोज को गिरफ्तार क्यों नहीं किया?
सवाल नंबर पांच:
जब पुलिस मनोज के मूवमेंट को ट्रेक कर रही थी, तो उसने मनोज को उसके घर से ही गिरफ्तार क्यों नहीं किया?
सवाल नंबर छह:
आतंकियों को पकड़ने के लिए बनाई गई स्पेशल सेल के जवान एनकाउंटर में इतने नौसिखिए हैं कि उन्होने मनोज के हाथ या पैर में गोली मारने के बजाय सीधा मनोज के सिर में गोली मार दी.
सवाल नंबर 7:
आखिरकार पुलिस टीम ने मनोज के रेस्तरां के बाहर आने का इंतज़ार क्यों नहीं किया? क्यों उन्होंने मनोज को गिरफ्तार करने की इतनी जल्दबाज़ी दिखाई? क्या उन्होंने ये बात नहीं सोची कि फायरिंग के दौरान रेस्तरां में मौजूद लोगों की जान को भी खतरा हो सकता है?
हालांकि इस पूरे एनकाउंटर की तस्वीर तब ही साफ हो पाएगी जब रेस्टोरेंट में लगे सीसीटीवी की फुटैज सामने आएगी. लेकिन ये पहली बार नहीं है, जब किसी एनकाउंटर के बाद दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल विवादों में फंसी हो.