सुनंदा पुष्कर मामले में पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर लिया है. 302 यानी मर्डर का मामला. मंगलवार को जैसे ही दिल्ली पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी ने यह जानकारी दी कि सुनंदा पुष्कर की हत्या हुई थी, हर तरफ हड़कंप मच गया.
मर्डर, कत्ल, हत्या शब्द का इस्तेमाल नहीं
पुलिस कमिश्नर बस्सी मंगलवार को खुद ही ये भी बोल गए कि डॉक्टर या पुलिस फिलहाल यह नहीं बता पाएगी कि जहर सुनंदा पुष्कर ने खुद खाई या उसे जबरदस्ती खिलाया गया.
उन्होंने यह साफ नहीं किया है कि आखिर सुनंदा पुष्कर की मौत मामले को आईपीसी की धारा 302 के तहत क्यों दर्ज किया गया है.
कानूनी पेंच दूर करने के लिए धारा 302 का सहारा
जिस जहर से सुनंदा की मौत हुई उस जहर की मात्रा कितनी थी और कौन सा जहर था, उसकी जांच के लिए सैंपल विदेश भेजना है. पर अभी तक मामले की जांच 174
के तहत की जा रही थी. 174 के तहत सैंपल जांच के लिए विदेश नहीं भेज सकते. इसी कानूनी पेंच को दूर करने और सैंपल को जांच के लिए विदेश भेजने के वास्ते ही
302 का शगूफा छोड़ा गया है.
जहर के बारे में पता चल जाए तो केस सुलझ जाएगा?
अगर विसरा विदेश भेजने के बाद जहर की सही मात्रा भी पता चल जाए कि कितना जहर सुनंदा के पेट में या रगों में गया तो भी इससे केस की तफ्तीश में कितना
फायदा होगा? क्या महज जहर की मात्रा भर जान लेने से केस सुलझ जाएगा? अगर जहर के मात्रा के साथ कौन सा जहर सुनंदा को दिया गया ये भी पता चल जए तो
भी क्या इससे केस सुलझ जाएगा? अगर ऐसा होता तो डाक्टरों की टीम ने अपनी रिपोर्ट में छह जहर के बारे में बताया था. फिर क्या हुआ? कुछ पता चला?
CrPC की धारा 174 के बदले IPC की धारा 302 में क्यों बदला केस?
सीआरपीसी की धारा 174 के तहत आमतौर पर कोई कार्रवाई तभी की जाती है, जब मौत रहस्यमई हालत में हुई हो. यानी मौत की वजह या मकसद साफ ना हो.
सुनंदा के मामले में अब तक यही कार्रवाई चल रही थी. अब पुलिस ने इस मामले को कत्ल यानी 302 मानकर तफ्तीश करने का फैसला तो कर लिया, लेकिन ये कत्ल
किसने किया, इसका किसी को नहीं पता. इसीलिए एफआईआर अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज किया गया है.