महीने भर पहले देश के दो बड़े पहलवानों के बीच इस बात को लेकर खींचातानी होती है कि रियो ओलंपिक में भारत की तरफ से 74 किलो भार वर्ग की कुश्ती के अखाड़े में कौन उतरेगा? बात अदालत तक जा पहुंचती है. आखिरकार अदालत को अखाड़े में उतरने वाले पहलवान का फैसला करना पड़ता है. फिर तभी कुछ ऐसा होता है, जिससे लगता है कि अचानक कुश्ती का अखाड़ा सजिश का अखाड़ा बन गया है. रियो ओलंपिक में जाने से ऐन पहले पहलवान नरसिंह यादव का डोप टेस्ट में फेल होने के बाद खाने में प्रतिबंधित दवाओं के मिलाने का इल्जाम लगाना क्या वाकई कोई साजिश है?
कोर्ट के फैसले के बाद भी खत्म नहीं हो सका विवाद
देश के दो नामचीन पहलवानों के बीच अखाड़े के बाहर अखाड़े में उतरने के लिए महीने भर पहले एक लड़ाई शुरू होती है. लड़ाई इस बात की कि रियो ओलंबिक में 74 किलो भार वर्ग में भारत की नुमाइंदगी इस बार कौन करेगा? दो बार के ओलंपिक मेडल विजेता सुशील कुमार या फिर नरसिंह यादव. लड़ाई कोर्ट तक पहुंचती है और फिर आखिर में फैसला होता है कि ओलंपिक के अखाड़े में इस बार सुशील कुमार नहीं बल्कि नरसिंह यादव ही उतरेंगे. इसके बाद लगा कि अब अखाड़े की लड़ाई खत्म, मगर ये गलतफहमी थी.
जब डोप टेस्ट में फेल हुए नरसिंह यादव
रियो ओलंपिक की उड़ान भरने से ऐन पहले अचानक एक खबर आती है कि जिस सुशील कुमार को पछाड़ कर नरसिंह यादव ओलंपिक में दांव आजमाने जा रहे थे, वो डोप टेस्ट में फेल हो गए हैं. यानी उन्होंने ऐसी दवाओं का सेवन किया है, जो प्रतिबंधित हैं. डोप टेस्ट में इससे पहले भी बहुत से खिलाड़ी पकड़े गए हैं. पकड़े जाने के बाद हर बार खिलाड़ियों ने खुद को बेकसूर बताया, मगर इस बार मामला इतना सीधा नहीं था. नरसिंह ने डोप टेस्ट में फेल होने की जो वजह बताई, उससे पूरे देश में खलबली मच गई. मामला अखाड़े में सजिश का था.
साजिश का शिकार या झूठ है बयान
इसी के साथ सवाल ये कि क्या सचमुच किसी ने जानबूझकर नरसिंह यादव के खाने या पीने के पानी में ऐसी दवाएं मिलाई थीं, जिनसे वो डोप टेस्ट में फेल हो जाएं और ओलंपिक में ना जा सकें? अगर हां, तो फिर ये साजिश किसकी हो सकती है? कौन है जो नहीं चाहता कि नरसिंह ओलंपिक में ना जाए? नरसिंह के ओलंपिक में ना जाने से किसको फायदा होगा? क्या दो लोगों की लड़ाई का कोई तीसरा फायदा उठा रहा है या फिर नरसिंह झूठ बोल रहे हैं? अगर नरसिंह सच्चे हैं, तो फिर साजिश गहरी है. अगर नरसिंह झूठे हैं तो ये खेल के साथ-साथ देश की बदनामी है.
कुश्ती का अखाड़ा बना सजिश का अखाड़ा?
डोप टेस्ट से साबित हो चुका है कि नरसिंह यादव ने प्रतिबंधित दवाएं ली थीं, पर अहम सवाल ये है कि क्या नरसिंह यादव ने प्रतिबंधित दवाएं जानबूझ कर ली थीं या फिर उन्हें धोखे से दवा खिलाई गई? अगर धोखे से खिलाई गई तो क्यों? इससे किसको और कैसा फायदा होगा और सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या सचमुच कुश्ती का अखाड़ा सजिश का इतना बड़ा अखाड़ा बन सकता है? पुलिस को दिए नरसिंह यादव की शिकायत के मुताबिक पांच जून की रात को उनके खाने में या फिर पीने के पानी में प्रतिबंधित दवा मिलाई गई थी. इत्तेफाक से जून में ही दो बार नरसिंह की डोपिंग की जांच के लिए नमूने लिए गए थे. ये नमूने भारत में खिलाड़ियों को डोपिंग से रोकने वाली संस्था नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी यानी NADA ने लिए थे.
नरसिंह यादव के शरीर से पाया गया मेथेडाइन
नाडा की जांच में नरसिंह यादव के शरीर से लिए गए दोनों सैंपल बाद में पॉजिटिव पाए गए. सैंपल पॉजिटिव पाए जाने का मतलब है कि खिलाड़ी ने प्रतिबंधित दवाओं का इस्तेमाल किया था. नाडा की जांच में नरसिंह यादव के शरीर से मेथेडाइन नाम का स्टेरॉयड पाया गया. इस दवा का इस्तेमाल मांसपेशियों का भार और ताकत बढ़ाने के लिए किया जाता है. खास बात ये है कि इस प्रतिबंधित दवा का इस्तेमाल सबसे ज्यादा एथलेटिक्स, पहलवान और बॉक्सर करते हैं. मेथेडाइन नाम की इस दवा को वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी यानी WADA ने भी प्रतिबंधित सूची में डाल रखा है.
नरसिंह के खाने में किसने की मिलावट?
नरसिंह की शिकायत के मुताबिक 5 जून की रात सोनीपत में मौजूद स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी साइ के सेंटर में मौजूद रसोइए ने उन्हें सबसे पहले उनके खाने में मिलावट की बात बताई थी. दरअसल नरसिंह बाकी पहलवानों के साथ ओलंपिक की तैयारी साई सेंटर में रह रहे थे और वो खाना भी इसी सेंटर का खाते थे. हालांकि आम तौर पर बड़े पहलवान ऐसे बड़े अंतरराष्ट्रीय़ टूर्नामेंट में हिस्सा लेने से पहले सेंटर का खाना नहीं खाते हैं. अब सवाल ये है कि अगर वाकई नरसिंह के खाने में मिलावट की गई थी, तो मिलावट करने वाल कौन था?
एक पहलवान के भाई पर मिलावट का आरोप
नरसिंह यादव की मानें तो रसोइए ने पांच जून की रात, जिसे मिलावट करते देखा था उसका नाम जितेश पहलवान है. जितेश का बड़ा भाई भी अंतरराष्ट्रीय पहलवान है और वो इसी साइ सेंटर में कुछ दिन पहले तक नरसिंह यादव के साथ ट्रेनिंग ले रहा था, हालांकि वो 120 किलो भार वर्ग का पहलवान है, जबकि नरसिंह 74 किलो भार वर्ग के हैं यानी ओलंपिक में नरसिंह और उस पहलवान के बीच कोई मुकाबला नहीं था. नरसिंह यादव का कहना है कि जितेश ने उसके खाने में प्रतिबंधित दवाएं सजिश के तहत कुछ बड़े पहलवानों के कहने पर मिलाई हैं, हालांकि नरसिंह ने उन कुछ बड़े पहलवानों के नाम नहीं लिए.
इसके साथ ही नरसिंह यादव के मिलावटी खाने के दावे पर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं. जैसे-
1. पांच जून को ही जब नरसिंह को पता चल गया था, तब उसी वक्त शिकायत क्यों नहीं की?
2. पांच जून के बाद भी नरसिंह सेंटर का खाना क्यों खाते रहे?
3. साजिश का शक होते हुए भी पहले से वो अलर्ट क्यों नहीं थे?
4. क्या डोप टेस्ट की जानकारी नरसिंह को नहीं थी?
5. क्या प्रतिबंधित दवाओं के बारे में संघ ने उन्हें नहीं बताया था?
रसोई में भी लगे हैं सीसीटीवी कैमरे, पर फुटेज नहीं
कुश्ती संघ और भारतीय ओलंपिक संघ को भी पता है कि ओलंपिक से पहले खिलाड़ियों के डोप टेस्ट होते हैं. बाकायदा खिलाड़ियों के लिए खाने-पीने पर कड़ी नजर रखी जाती है. साइ सेंटर में सब कुछ मॉनिटर भी किया जाता है. यहां तक कि रसोई में भी सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, तो कायदे से सीसीटीवी कैमरे से ये सच पता चल सकता है कि सचमुच पांच जून की रात को किसी ने नरसिंह के खाने में कुछ मिलाया था या नहीं? मगर नरसिंह की मानें तो सेंटर का कहना है कि पांच जून का कोई फुटेज है ही नहीं क्योंकि सेंटर में सिर्फ दस दिन तक की ही रिकार्डिंग रहती है.
तीन तरीके से होगा सच और झूठ का फैसला
जाहिर है अब सच और झूठ का फैसला तीन तरह से होगा. पहला, जितेश से पूछताछ, दूसरा अगर सीसीटवी फुटेज है तो उससे और तीसरा पुलिस की तफ्तीश से. इसी के बाद ये पता चलेगा कि नरसिंह को साजिश के तहत प्रतिबंधित दवा खिलाई गई या फिर डोप टेस्ट में फेल होने पर जैसा हर खिलाड़ी कहते हैं कि वो बेकसूर हैं, नरसिंह भी वही कह रहे हैं.
साइ के किचन में पांच जून को मौजूद चश्मदीदों की मानें, तो उस रात उन्होंने नरसिंह की सब्जी में कोई प्रतिबंधित चीज मिलाए जाने के शक में सब्जी तो फेंक दी थी, लेकिन इससे इतना तो साफ होता है कि कोई ऐसा जरूर है, जो नरसिंह यादव और उनके रूम मेट के खिलाफ साजिश कर रहा था, जिससे उसके ओलिंपिक में जाने का टिकट कैंसिल हो जाए.
ताकत बढ़ाने के लिए खिलाड़ी लेते हैं ऐसी दवाएं
खेल की दुनिया में ताकत बढ़ाने के लिए बहुत पहले से खिलाड़ी प्रतिबंधित दवाएं लेते रहे हैं. खिलाड़ी ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करने के लिए अक्सर ताकत और एनर्जी बढ़ाने की दवाएं लेते रहे हैं. इसी को देखते हुए बाद में डोपिंग पर नजर रखने वाली एजेंसी बनी. दुनिया में पहली बार डोपिंग को लेकर तब हड़कंप मचा था, जब अमेरिका के स्टार धावक बेन जॉनसन ओलंपिक में डोप टेस्ट में पकड़े गए थे. 1990 से पहले डोपिंग टेस्ट के लिए कोई पुख्ता इंतजाम या एजेंसी नहीं थी. 1990 के दौर में पहली बार खिलाड़ियों की जांच शुरू हुई.
1999 में वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी का हुआ गठन
दौर बदला तो ड्रग्स का चलन भी बदला. इसी के बाद 1999 में वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी यानी WADA का गठन हुआ. वाडा के पास ये अधिकार है कि वो किसी भी टूर्नामेंट से पहले दुनिया से किसी भी खिलाड़ी का नमूना लेकर उसका डोप टेस्ट कर सकती है. वाडा की ही भारतीय एजेंसी नाडा है. नाडा ने ही नरसिंह यादव के नमूने लिए थे, जिसमें वो प्रतिबंधित दवा लेने के दोषी पाए गए. 2010 में कॉमनवेल्थ खेल से ठीक पहले भारत के चार पहलवान डोप टेस्ट में फेल हुए थे. 2010 में ही भारत की एक और महिला वेट लिफ्टर सानामाचा चानू भी डोप टेस्ट में फेल हो गई थीं. 2004 में भारत की वेटलिफ्टर कुंजारानी देवी डोप टेस्ट में फेल हो गई थीं.
डोपिंग मामले में पहले नंबर पर है रूस
2013 में WADA की तरफ से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि डोपिंग करने के मामले में पहले नंबर पर रूस है, जबकि दूसरे नंबर पर टर्की और तीसरे नंबर पर भारत है. 1988 के सियोल ओलंपिक में कनाडा के मशहूर एथलीट बेन जॉनसन डोप टेस्ट में फेल हो गए थे. खेल की दुनिया का ये पहला सबसे बड़ा और सनसनीखेज मामला था. इसी साल रूस की मशहूर टेनिस खिलाड़ी मारिया शारापोवा भी डोप टेस्ट में फेल हो चुकी हैं.