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Exclusive: ऑनलाइन लुटेरों का गोरखधंधा बेनकाब

क्या आपको ऐसी कॉल मिलती हैं जिनमें आपके बैंक खाते, बीमा, क्रे़डिट कार्ड आदि के पासवर्ड के बारे में पूछा जाता हो. अगर ऐसा है तो बहुत संभावना है कि ये कॉल जामताड़ा के जंगलों से आ रही है. झारखंड के शांत माने जाने वाले जिले जामताड़ा में देश के बड़े हैकिंग घोटालेबाजों ने बेस बना रखा है. इस गोरखधंधे को अंजाम देने वाले शाही जिंदगी बिता रहे हैं.

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साइबर क्राइम में जामताड़ा के शातिरों को महारत हासिल है
साइबर क्राइम में जामताड़ा के शातिरों को महारत हासिल है

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क्या आपको ऐसी कॉल मिलती हैं जिनमें आपके बैंक खाते, बीमा, क्रे़डिट कार्ड आदि के पासवर्ड के बारे में पूछा जाता हो. अगर ऐसा है तो बहुत संभावना है कि ये कॉल जामताड़ा के जंगलों से आ रही है. झारखंड के शांत माने जाने वाले जिले जामताड़ा में देश के बड़े हैकिंग घोटालेबाजों ने बेस बना रखा है. इस गोरखधंधे को अंजाम देने वाले शाही जिंदगी बिता रहे हैं.

आजतक/इंडिया टुडे की विशेष जांच टीम ने देश के ऑनलाइन लुटेरों के भूमिगत अड्डों को बेनकाब किया है. झारखंड की राजधानी रांची से 225 किलोमीटर दूर जामताड़ा में ये जालसाज जिन लोगों को शिकार बनाना होता है, उनके यूजर नेम, पासवर्ड, ओटीपी हासिल करने के लिए तरह तरह के जाल बिछाते हैं. एक बार 'शिकार' अपना सीक्रेट कोड पूरी तरह अनजान इन लोगों के साथ कर लेता है तो इन ऑनलाइन लुटेरों का काम पूरा हो जाता है. पलक झपकते ही 'शिकार' के बैंक खाते से सारी रकम साफ हो जाती है.

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1800 किलोमीटर वर्ग क्षेत्र में फैले जामताड़ा की आबादी 8 लाख है, जो अधिकतर ग्रामीण है. लेकिन सेलफोन टॉवर्स पर ट्रैफिक और जिले में कई लोगों का लाइफस्टाइल कुछ और ही कहानी कहता है. ये जिले के गरीबी के आंकड़ों से कहीं मेल नहीं खाता. जामताड़ा के नारायणपुर पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर सुरेंद्र प्रसाद के मुताबिक अगर इनके घरों को देखों तो आपको एलईडी टीवी, सोफा, बेड से लेकर सभी आधुनिक तामझाम मिल जाएंगे.

आजतक/इंडिया टुडे टीम की जांच से खुलासा हुआ कि किस तरह जामताड़ा के अनेक युवक डिजिटल डकैती में संलिप्त हैं. जांच से सामने आया कि जामताड़ा किस तरह देश की फिशिंग कॉल्स का केंद्र बना हुआ है. ये किसी की निजी और वित्तीय जानकारी चुराकर डिजिटल तरीके से उसके धन को लूट लेने की व्यापक आपराधिक प्रक्रिया है.

इंटेलीजेंस ब्यूरो और एनआईए के उच्च पदस्थ सूत्रों का भी कहना है कि अधिकतर साइबर अपराधों के तार जामताड़ा से जुड़ रहे हैं. आजतक/इंडिया टुडे ग्रुप के अंडर कवर रिपोर्टर्स ने इस जिले के जंगलों से ऑपरेट कर रहे कॉल घोटालेबाजों के पूरे रैकेट को ढूंढ निकाला. ये युवा जालसाज देशभर में कॉल्स के जरिए पहले शिकार तलाशते हैं और फिर कई तरह के तरीकों से धोखाधड़ी करते हैं.

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ऐसे ही एक शख्स असगर ने बताया कि किस तरह उसके साथ इस धंधे में लगे सहयोगी संभावित 'शिकार' से बातचीत शुरू करते हैं. ये बात इस तरह शुरू होती है- 'आपने एटीएम कार्ड इस्तेमाल किया है. क्या आपको दो दिन पहले ऐसा संदेश मिला है कि आपका कार्ड ब्लॉक हो गया है?'

बांस के पेड़ों के नीचे मोटरसाइकिल पर बैठे असगर ने आगे इस बातचीत के बारे में बताया- 'आपने कार्ड का नवीनीकरण मोदी सरकार के नए आदेशों के मुताबिक नहीं कराया है.'

दरअसल, इस सारी बातचीत का मकसद जिस शख्स को कॉल किया गया है उसमें डर पैदा करना होता है. इसमें बताया जाता है कि किस तरह भारी नुकसान हो सकता है और गिरफ्तारी भी हो सकती है. ऐसे में पूरी संभावना रहती है कि कई लोग अपनी सीक्रेट रखे जाने वाले वित्तीय और कंप्यूटर कोड इन जालसाजों को बता देते हैं.

खुद को प्रतिष्ठित कंपनियों का प्रतिनिधि बताकर ये जालसाज जामताड़ा के जंगलों से हर दिन बड़ी संख्या में कॉल करते हैं. असगर ने इंडिया टुडे की विशेष जांच टीम को बताया कि वो कुछ ही घंटों में एक लाख रुपये तक बना लते हैं. जांच से सामने आया कि इन सभी फिशिंग कॉलर्स ने विशेष प्रशिक्षण ले रखा है. ये अपने शिकार को डर दिखाकर उसका सुरक्षित 3D-PIN नंबर तक जान लेते हैं.

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बता दें कि साइबर अपराध देश में तेजी से बढ़ रहे हैं. एक ही साल में इनमें 20 फीसदी का इजाफा हुआ है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में 11,592 साइबर अपराध दर्ज हुए. जबकि इससे पिछले साल (2014) में 9,622 साइबर अपराध ही रिकॉर्ड हुए थे. 2015 में जो साइबर अपराध हुए उनमें से अधिकतर यानि 66 फीसदी ऑनलाइन धोखाधड़ी से जुड़े हैं.

जामताड़ा से अधिकतर ऑनलाइन अपराधों के तार जुड़े होने की वजह से पूरे देश की साइबर पुलिस का रुख इस जिले की ओर रहता है.

असगर ने आजतक/इंडिया टुडे की अंडर कवर टीम को डिमॉन्स्ट्रेशन देकर बताया कि किस तरह सीक्रेट कोड हासिल किए जाते हैं. असगर ने कहा, 'आपको नया पासवर्ड जेनेरेट करना होगा. आपको इसके लिए सीक्रेट नंबर 1025 दिया जा रहा है, इसे आपको अपने पुराने पासवर्ड के पीछे लगाना होगा. '

अब जैसे ही कोई इनसे अपना पासवर्ड साझा करता है, असगर और इसकी टीम 1025 हटाकर असली पासवर्ड जान लेती है. बस शिकार के खाते से रकम साफ करने के लिए उन्हें यही पासवर्ड चाहिए होता है.

शिकार लोगों का डेटाबेस कैसे मेंटेन किया जाता है, इस पर असगर ने बताया कि उसका गैंग अलग अलग राज्यों में अधिक से अधिक संभव लोगों को कॉल करता है.

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असगर ने बताया- हर राज्य का अलग फोन कोड और सीरीज रखी जाती है. फिर इन्हीं कोड और सीरीज में में जितनी कॉल की जाती हैं उनका नंबर जोड़ दिया जाता है.

जब देश भर में लोग नोटबंदी के चलते बैंकों और एटीएम के बाहर कतार लगाकर खड़े थे ये फिशिंग घोटालेबाज ऑनलाइन लूट तब भी जारी रखे हुए थे. सरकार के नियमों की अनदेखी के डर की वजह से पहले से कहीं ज्यादा लोग उनकी कॉल्स के जाल में फंस रहे हैं.

असगर ने कबूल किया- 'हमें इन दिनों खूब पैसा मिल रहा है. सिर्फ दो कार्ड से ही हमने एक लाख से दो लाख रुपए मिले. हमने दो कार्ड स्वाइप कर (होंडा) CR-V खरीदी.

असगर के मुताबिक कार्ड्स को दूसरों को इस्तेमाल के लिए मोटी कमीशन पर भी दिया जाता है. असगर ने एक कार्ड आजतक/इंडिया टुडे के अंडर कवर रिपोर्टर को पेश भी किया. असगर ने बताया, 'कमीशन 70 से 75 फीसदी के बीच रहती है. इस कार्ड को उस स्टोर पर इस्तेमाल किया जा सकता है जिसे आप जानते हों, और जहां आधार कार्ड की मांग ना की जाए.वहां आप जितनी चाहें खरीदारी कर सकते हैं.'

स्थानीय पुलिस के मुताबिक देश में होने वाले 80 फीसदी साइबर अपराधों के तार जामताड़ा से जुड़े हैं. इंडिया टुडे टीम ने जांच में पाया कि टैक्सदाताओं की बैंक बचत की लूट से आने वाले पैसे से जामताड़ा में पूरी समानांतर अर्थव्यवस्था खड़ी हो गई है. हैरानी की बात है कि स्थानीय पुलिस को जालसाजों के तौर-तरीकों का पूरा पता होने के बाद भी ये गोरखधंधा पनप रहा है.

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नारायणपुर पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर प्रसाद ने कहा, 'वो जो करते हैं वो ये है कि खुद को बैक मैनेजर बताकर आपको सूचना देते हैं कि आपका एटीएम कार्ड लॉक किया जा रहा है. अगर आप अपना कार्ड लॉक नहीं होने देना चाहते तो अपना 16-डिजिट वाला नंबर और CVV नंबर बताएं और वो इसे ई-वॉलेट के लिए ऑनलाइनल ट्रांसफर कर देंगे. '

प्रसाद ने बताया कि उनके पुलिस स्टेशन के तहत आने वाले क्षेत्र में ही 100 संदिग्ध डिजिटल जालसाजों को गिरफ्तार किया गया है. प्रसाद ने ये भी बताया कि इन जालसाजों ने महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे अलग अलग राज्यों में जाकर कई भाषाएं सीख रखी हैं. ऐसे में ये अपने शिकार को जाल में फंसाने के लिए उसी की भाषा में कॉल करते हैं.

 

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