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महात्मा गांधी, मोदी और योगी का डीपफेक वीडियो वायरल, यूपी पुलिस ने दर्ज किया केस

देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का डीपफेक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. इसमें तीनों हस्तियों को डांस करते हुए दिखाया गया है. इस मामले में यूपी के बलिया में पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.

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बलिया में पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.
बलिया में पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.

देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का डीपफेक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. इसमें तीनों हस्तियों को डांस करते हुए दिखाया गया है. इस मामले में यूपी के बलिया में पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. साइबर सेल की टीम इस मामले की जांच में लगी हुई है. 

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बलिया के अपर पुलिस अधीक्षक अनिल कुमार झा ने बताया कि साइबर थाने में मीडिया सेल के प्रभारी प्रवीण सिंह की शिकायत पर मंगलवार को अज्ञात लोगों के खिलाफ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है. उन्होंने कहा कि पुलिस इस मामले की जांच कर रही है. आरोपियों का पता लगाकर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

सोशल मीडिया पर प्लेटफॉर्म एक्स पर एक यूजर ने इस संबंध में एक पोस्ट किया है. उन्होंने लिखा है, "यूपी के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज ने अपने राज्य की महिलाओं के सम्मान, सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए कई प्रयास किए हैं. कैसे कुछ घटिया स्ट्रीट रीलर चंद व्यूज के लिए उनका इस्तेमाल कर रहे हैं. कैसे प्रधानमंत्री और महात्मा गांधी के वीडियो को एडिट करके सस्ती लोकप्रियता के लिए अपलोड किया जा रहा है.'' दरअसल, इस वीडियो में तीनों हस्तियों को भोजपुरी गाने पर डांस करते दिखाया गया है.

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क्या है डीपफेक, कब और कैसे हुई शुरूआत?

डीपफेक अंग्रेजी के दो शब्दों के संयोजन से बना है. पहला, डीप और दूसरा फेक. डीप लर्निंग में सबसे पहले नई तकनीकों, खास कर जनरेटिंग एडवर्सरियल नेटवर्क जिसे जीएएन भी कहते हैं, उसकी स्टडी जरूरी है. जीएएन में दो नेटवर्क होते हैं, जिसमें एक जेनरेट यानी नई चीजें प्रोड्यूस करता है, जबकि दूसरा दोनों के बीच के फर्क का पता करता है. इन दोनों की मदद से एक ऐसा सिंथेटिक डेटा जेनरेट किया जाता है, जो असल से काफी हद तक मिलता जुलता हो, तो वही डीप फेक है. 

साल 2014 में पहली बार इयन गुडफ्लो और उनकी टीम ने इस तकनीक को विकसित किया था. धीरे-धीरे इस तकनीक में नई-नई तब्दीलियां की जाती रहीं. साल 1997 में क्रिस्टोफ ब्रेगलर, मिशेल कोवेल और मैल्कम स्लेनी ने इस तकनीक की मदद से एक वीडियो में विजुअल से छेड़छाड़ की और एंकर द्वारा बोले जा रहे शब्दों को बदल दिया था. इस एक प्रयोग के तौर पर किया गया था. हॉलीवुड फिल्मों में इस तकनीक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता था. 

डीपफेक पर 3 साल जेल, 1 लाख तक जुर्माना 

आईटी एक्ट 2000 किसी भी इंसान को उसकी प्राइवेसी को लेकर सुरक्षा प्रदानकरता है. ऐसे में यदि कोई डीपफेक वीडियो या तस्वीर किसी की मर्जी के बगैर बना कर कोई कानून तोड़ता है, तो उसके खिलाफ शिकायत की जा सकती है. इस कानून की धारा 66 डी के तहत किसी को गुनहगार पाए जाने पर उसे 3 साल तक की सजा और 1 लाख तक का जुर्माना हो सकता है. आईटी एक्ट में सोशल मीडिया की भी जिम्मेदारी तय है. इसमें किसी की प्राइवेसी प्रोटेक्ट करना जरूरी है. 

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ऐसे में अगर किसी प्लेटफॉर्म को ऐसे किसी डीपफेक मेटेरियल के बारे में जानकारी मिलती है, तो शिकायत मिलने के 24 गंटे के अंदर उसे हटाना उस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जवाबदारी है. डीपफेक के जरिए किसी का अपमान करने पर उस पर आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का केस किया जा सकता है. डेटा चोरी कर या हैकिंग कर अगर कोई डीप फेक तैयार किया जाता है, तो पीड़ित आईटी एक्ट के तहत शिकायत कर सकता है. 

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