निर्वाचन आयोग की वेबसाईट हैक मामले की जांच अब उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फ़ोर्स (UPSTF) करेगी. एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने बयान जारी करते हुए कहा है कि सहारनपुर का यह प्रकरण सहारनपुर पुलिस के संज्ञान में आया था. उस पर तत्काल वहीं पर अभियोग पंजीकृत किया गया था, जिसमें एक अभियुक्त की गिरफ्तारी भी की गई थी.
उन्होंने कहा कि वहां के स्थानीय पुलिस प्रशासन का यह मत है कि यह संवेदनशील मामला है और इसकी जांच किसी अन्य एजेंसी से करा ली जाए. ऐसे में शासन स्तर से निर्णय लिया गया है कि इस पूरे प्रकरण की विवेचना एसटीएफ के द्वारा कराई जाए ताकि इसके सभी पहलु उजागर हो सकें कि किन परिस्थितियों में और कैसे यह चीजें की गई. कैसे वेबसाइट हैक करके कुछ लोगों के वोटर कार्ड बनाए गए हैं? या उसमें संशोधन किए गए. इन सभी चीजों की गहराई से छानबीन की जा रही है.
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क्या है पूरा मामला-
निर्वाचन आयोग के सूत्रों के मुताबिक दो तीन हफ्ते पहले आयोग में मतदाता सूची अपडेट रखने वाले विभाग के आला अधिकारियों को अपने मेल अकांउट और वेबसाइट ऑपरेशन के दौरान कुछ गड़बड़ी होने की आशंका हुई. पहले तो उनको अपने ऊपर ही शक हुआ कि ये वाकई हो रहा है या कोई टेक्निकल ग्लिच यानी लोचा है. लेकिन अधिकारियों के बीच आपस में बातचीत से पता चला की कई अधिकारियों के साथ यही हो रहा है.
आनन फानन में ये बात आयोग की आईटी सेल के विशेषज्ञों को बताई गई. एक्सपर्ट की टीम सक्रिय हुई तो पता चला गड़बड़ी का केंद्र सहारनपुर जिले में है. गहराई से छानबीन हुई तो साजिश के तार सहारनपुर के नकुड़ इलाके तक पहुंचे. फिर एक कंप्यूटर तक. इसकी सूचना सहारनपुर जिला प्रशासन और पुलिस को दी गई. आयोग के आईटी सेल के अधिकारी और जिला पुलिस की अपराध शाखा की साझा टीम ने छापेमारी कर विपुल सैनी को धर दबोचा.
पूछताछ के दौरान उसने सारा गुनाह कबूल कर लिया. पुलिस अधिकारियों को पता चला कि आरोपी विपुल सैनी चुनाव आयोग की वेबसाइट में उसी पासवर्ड के जरिए लॉगइन करता था, जिसका इस्तेमाल आयोग के अधिकारी करते थे. उसने अधिकारियों के पासवर्ड तक हैक कर रखे थे. करीब तीन महीने से वो ये गोरखधंधा कर रहा था. इस दौरान उसने दस हजार से ज्यादा फर्जी मतदाता पहचान पत्र बनाए. प्रत्येक पहचान पत्र के लिए उसे अमूमन सौ से तीन सौ रुपए तक मिलते थे. पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद उसके बैंक खाते से 60 लाख रुपए जमा मिले.