दिल्ली के विवेक विहार में बेबी केयर न्यू बोर्न हॉस्पिटल में हुए अग्निकांड ने हर किसी का दिल दहला दिया है. यहां सात मासूम बच्चों की आग से जलकर मौत हो गई है. इनमें से पांच बच्चों के शव पोस्टमार्टम के बाद उनके परिवारों को सौंप दिए गए हैं. दो नवजातों का शव पोस्टमार्टम के बाद उनके परिजनों को दिया जाएगा. इस अग्निकांड में पांच बच्चों की जान बचाई गई है. हॉस्पिटल में 12 बच्चों को इलाज के लिए भर्ती कराया गया था.
दिल्ली पुलिस ने बेबी केयर न्यू बोर्न हॉस्पिटल के मालिक डॉ. नवीन खिची और हादसे के वक्त अस्पताल में मौजूद डॉ. आकाश को गिरफ्तार कर लिया है. दोनों आरोपियों को सोमवार दोपहर में कोर्ट में पेश किया जाएगा. पुलिस आगे की पूछताछ के लिए उनकी हिरासत की मांग कर सकती है. पुलिस ने बताया कि आग लगने के सही कारण का पता लगाने के लिए फोरेंसिक टीमें और बिजली विभाग के एक निरीक्षक सोमवार को घटनास्थल का दौरा करेंगे.
इस अग्निकांड में जलकर मरी 17 दिन की रूही की मां ने बताया, "मैंने कल अपने बच्चे को देखा था. उसे बुखार था. दो दिन पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था. आज सुबह मुझे आग के बारे में बताया गया. मैंने अपनी बेटी को बुरी आत्माओं से बचाने के लिए नजर की माला पहना रखी थी. लेकिन अस्पताल के कर्मचारियों ने उसे निकाल दिया था.'' इसी तरह अंसार की बेटी का जन्म 15 मई को अस्पताल में हुआ था. उसकी तबियत अक्सर खराब रहती थी. 10 दिन पहले ही उन्होंने अपनी बेटी को बेबी केयर न्यू बोर्न हॉस्पिटल में भर्ती कराया था. उन्हें इस घटना के बारे में अपने दोस्तों से पता चला.
अंसार कहते हैं, ''अल्लाह को प्यारी हो गई मेरी बेटी. 'जब मैं अस्पताल पहुंचा तो मुझे पता चला कि मेरी बेटी की मौत हो गई है.'' एक मजदूर मसियालम के लिए पांच साल बाद फिर से त्रासदी हुई. वो कहते हैं, "मैंने पांच साल पहले अपने बेटे को खो दिया था. अब इस अग्निकांड में मेरे नवजात बेटे की मौत हो गई. मेरी तो जिंदगी खत्म हो गई.'' उन्होंने बताया कि यहां इलाज करा रहे कई माता-पिता ने अपने गहने बेच दिए या पैसे उधार लेकर दिए थे.
मसियालम बताते हैं कि उनके बेटे का जन्म दूसरे अस्पताल में हुआ था. संक्रमण होने के बाद उसे बेबी केयर न्यू बोर्न अस्पताल में भर्ती कराया गया था. एक अन्य पीड़िता के रिश्तेदार परविंदर कुमार ने कहा, "हमने अभी तक उसकी मां को सूचित नहीं किया है. वो सिर्फ छह दिन की थी. हमने उसे खो दिया. वो मेरे रिश्तेदार की पहली संतान थी. लड़की का जन्म लगभग छह दिन पहले गाजियाबाद के एक अस्पताल में हुआ था. उसे सांस लेने में तकलीफ थी.
दिल्ली पुलिस की जांच में खुलासा हुआ है कि यहां नर्सिंग होम की परमिशन 31 मार्च को खत्म हो गई थी. दिल्ली सरकार का हेल्थ डिपार्टमेंट इसकी परमिशन देता है, लेकिन डॉक्टर नवीन किची अवैध तरीके से नर्सिंग होम चलाया जा रहा था. पहले यहां पांच बेड की इजाजत मिली थी, लेकिन कई 25 से 30 बच्चे तक इलाज के लिए भर्ती किए जाते थे. यहां से 32 ऑक्सीजन सिलेंडर भी बरामद किए गए हैं, जबकि पांच बेड के हिसाब से सिलेंडर होने चाहिए थे.
बेबी केयर न्यू बोर्न हॉस्पिटल को दिल्ली अग्निशमन सेवा की तरफ से एनओसी भी नहीं दी गई थी. यहां तक कि आग बुझाने तक के कोई इंतजाम नहीं थे. हॉस्पिटल में अंदर आने और बाहर जाने का सही इंतजाम नहीं था. कोई इमरजेंसी एग्जिट भी नहीं था. सबसे चौंकाने वाली बात तो ये है कि बीएएमएस डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई जाती थी, जो कि बच्चों के इलाज के लिए क्वालिफाइड नहीं थे. इस तरह से सारे नियम को ताक पर रखकर ये सेंटर चल रहा था.
बताया जा रहा है कि इस बेबी केयर न्यू बोर्न हॉस्पिटल के चार ब्रांच हैं, जो कि दिल्ली के विवेक विहार, पंजाबी बाग, हरियाणा के फरीदाबाद और गुरुग्राम में चल रहे हैं. डॉक्टर नवीन किची ने एमडी किया है. वो दिल्ली के पश्चिम विहार में रहता है. उसकी पत्नी जागृति एक डेंटिस्ट है. वो भी उसके साथ अस्पताल चलाने में मदद करती है. हदासे वक्त मौजूद डॉक्टर आकाश भी बीएएमएस है, जो कि आग लगने के बाद बच्चों को बचाने की बजाए भाग गया था.
इस अग्निकांड में बच्चों को बचाने में सबसे बड़ी भूमिका स्थानीय लोगों ने निभाई है. लोग दमकलकर्मियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर डटे रहे. हालांकि, कुछ लोग इस घटना का वीडियो बनाने में भी व्यस्त दिखे. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि स्थानीय लोगों की मदद से अस्पताल के पीछे की खिड़की से बच्चों को इमारत से बाहर निकाला गया. अस्पताल की इमारत का अगला हिस्सा तेजी से जल रहा था. इसलिए लोगों ने पीछे की खिड़कियां तोड़ दी थी.
एक स्थानीय निवासी जीतेंद्र सिंह ने बताया, "मुझे रात 11:25 बजे के आसपास आग लगने की सूचना मिली. मैं 11:30 बजे तक घटनास्थल पर पहुंच गया. मेरे पहुंचने के बाद तीन विस्फोट हुए. पहले विस्फोट ने पूरी इमारत में आग लगा दी. दूसरे विस्फोट हुआ तो ऑक्सीजन सिलेंडर फट गया. इमारत की पीछे की खिड़कियां तोड़कर हम लोगों ने बच्चों को बाहर निकाला. धुएं और थकावट के कारण मैं बेहोश हो गया था. मुझे भी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ गया.''
आबिद ने बताया, "मैं अपने परिवार के साथ पैदल जा रहा था. हम शालीमार बाग में रहते हैं. जब हमने आग देखी तो हमने अस्पताल के कर्मचारियों को सूचित किया. उस समय आग गंभीर नहीं थी. लेकिन कर्मचारी बाहर आए और किसी को फोन किया. फिर मौके से गायब हो गए.''
दिल्ली अग्निशमन सेवा (डीएफएस) ने तीन इमारतों में लगी आग पर काबू पाने के लिए 16 दमकल तैनात किए थे. मौके पर खुद डिविजनल फायर ऑफिसर राजेंद्र अटवाल भी मौजूद थे.
डीएफएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "घटनास्थल पर कई लोग जमा हो गए थे और आग का वीडियो रिकॉर्ड कर रहे थे. उनमें से कई लोग आग बुझाने की कोशिश कर रहे लोगों के करीब भी आ गए. लोगों को ऐसी जगहों के करीब आने से बचना चाहिए, खासकर जहां आग बुझाने का अभियान चल रहा हो, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आग बुझाने वाले लोग टीक से से अपना काम कर सकें. ऐसे सबसे बड़ी चुनौती भीड़ बन जाती है.''