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30 दिन, 5 कैदी और खतरनाक 'स्लीप एक्सपेरिमेंट', 69 साल बाद इस देश का सच आया सामने

साल 1940 में रूस ने सेना के साथ मिलकर पांच कैदियों पर 'रशियन स्लीप एक्सपेरिमेंट' किया गया. उन्हें 30 दिन बिना सोए एक कमरे में रहना था. इसके बदले उन्हें रिहाई दी जानी थी. लेकिन ये एक्सपेरिमेंट इतना खतरनाक साबित हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. चलिए जानते हैं रूस के इस स्लीप एक्सपेरिमेंट के बारे में विस्तार से.

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5 कैदियों ने भरी थी एक्सपेरिमेंट के लिए हामी (फोटो सौ- ट्विटर)
5 कैदियों ने भरी थी एक्सपेरिमेंट के लिए हामी (फोटो सौ- ट्विटर)

दुनिया में आए दिन नए आविष्कार किए जाते हैं. ये सभी आविष्कार इंसानों की सहूलियत के लिए ही किए जाते हैं. लेकिन इनके एक्सपेरिमेंट के लिए अक्सर पहले जानवरों को चुना जाता है. जैसे कोरोना वैक्सीन को जब बनाया गया था तो पहले उसका एक्सपेरिमेंट चूहों और बंदरों पर किया गया था. जब देखा गया कि ये एक्सपेरिमेंट सफल रहा तो उसे इंसानों के लिए इस्तेमाल में लाया गया. ऐसे और भी कई एक्सपेरिमेंट किए गए हैं, जैसे स्पेस में कुत्तों और बंदरों को भेजा जाना आदि. इन एक्सपेरिमेंट में हमेशा जान का खतरा भी बना रहता है. लेकिन जरा सोचिए तब क्या हो जब एक्सपेरिेमेंट के लिए इंसानों को ही चुना जाए. आज हम आपको ऐसे ही एक एक्सपेरिमेंट के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे करने के बाद एक ताकतवर देश खूब ट्रॉल हुआ था. चलिए जानते हैं इस एक्सपेरिमेंट के बारे में....

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बात है साल 1940 की, जिस समय दुनिया में दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था. दुनिया में इसे लेकर काफी टेंशन चल रही थी. कई देश अपने दुश्मनों से लड़ाई के लिए जंग के मैदान में उतरे हुए थे. ऐसा ही एक देश रूस भी था. उसने भी कई दुश्मन देशों के लोगों को लड़ाई में हराकर बंधक बनाकर रखा था. उसी दौरान सेना के साथ मिलकर रूस के कुछ साइंटिस्ट एक खास चीज पर रिसर्च कर रहे थे. वे जानना चाहते थे कि एक इंसान बिना सोए रह सकता है या नहीं? 

पांच कैदी एक्सपेरिमेंट के लिए हुए तैयार
उन्होंने इस एक्सपेरिमेंट के पीछे एक वजह भी दी थी कि विश्व युद्ध जारी है और हमारे सैनिक भी इसमें लड़ रहे हैं. लेकिन क्या वे बिना सोए जंग को लड़ सकते हैं? इसी को लेकर रूस के साइंटिस्ट्स ने रिसर्च शुरू की थी. अब समय आया एक्सपेरिमेंट करने का तो साइंटिस्ट्स ने सोचा कि क्यों ना कैदियों पर इसका एक्सपेरिमेंट किया जाए. उन्होंने कुछ कैदियों के सामने एक्सपेरिमेंट की बात रखी और कहा कि अगर वे लोग पूरे 30 दिन बिना सोए निकाल लेंगे तो उन्हें कैद से मुक्ति दे दी जाएगी. पांच कैदी इस शर्त के लिए तैयार भी हो गए.

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चैंबर में रखा गया कैदियों को
अब शुरू हुआ रशियन स्लीप एक्सपेरिमेंट. इस एक्सपेरिमेंट के लिए एक चैंबर तैयार किया गया था, जिसमें इन कैदियों को रखा जाना था. चैंबर में जरूरत की हर चीज थी. और हर तरफ उनकी एक्टिविटी पर नजर रखने के लिए कैमरे लगाए गए थे. वो चैंबर कांच का था. उस कांच से बाहर से अंदर की तरफ तो देखा जा सकता था, लेकिन अंदर से बाहर का मंजर नहीं देख सकते थे. फिर कैदियों को कमरे में भेजकर उसे लॉक कर दिया गया. कैदी इस दौरान सोएं नहीं, इसके लिए एक खास तरह की गैस ऑक्सीजन के साथ छोड़ी जाने लगी, जिससे वे चाहकर भी ना सो पाएं. कमरे के अंदर माइक्रोफोन भी लगे थे जिससे कि साइंटिस्ट उनकी हर बात भी सुन सकते थे.

ऐसे बीते पहले पांच दिन
पहला दिन नॉर्मल बीता. सबने खाना पीना करके और एक दूसरे से बात करके समय बिताया. दूसरा दिन भी ठीक रहा. तीसरे दिन कैदी थोड़े थके-थके से लगे. लेकिन फिर भी दिन जैसे-तैसे बीत गया. चौथा दिन उनकी आंखों में नींद तो दिख रही थी लेकिन वे गैस के कारण सो नहीं पा रहे थे. लेकिन पांचवे दिन साइंटिस्ट्स ने नोट किया कि कैदी आपस में बात तो कर रहे हैं लेकिन वे सभी एक साथ ही बोले जा रहे हैं. सभी बस अपनी बात सुना रहे थे और दूसरे की नहीं सुन रहे थे.

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कैदियों की हालत होने लगी खराब
छठवें, सातवें और आठवें दिन उनकी हालत और ज्यादा खराब होने लगी. वे लोग सोने की कोशिश भी कर रहे थे लेकिन गैस के कारण उन्हें नींद नहीं आ रही थी. लेकिन 9वें दिन एक खतरनाक चीज होती है. पांच में से एक कैदी अचानक जोर जोर से चीखने लगता है. बाहर बैठे साइंटिस्ट ये सब देखते तो हैं लेकिन कुछ करते नहीं. हालांकि, उसकी चीख से उन्हें ये अहसास होता है कि वो इतना तेज चीख रहा है, जिसे सुनकर किसी के भी कान के पर्दे फट जाएं. लेकिन हैरानी की बात ये थी कि उसकी इस चीख का दूसरे कैदियों पर जरा भी फर्क नहीं पड़ रहा था. वे खामोश बैठे थे.

कमांडर ने किया एक्सपेरिमेंट रोकने से इनकार
तीन घंटे के बाद उस कैदी की आवाज आनी बंद हो गई. वह चीखने की कोशिश तो कर रहा था लेकिन उसकी आवाज नहीं निकल रही थी. फिर 10वें दिन के बाद से चीजें बदलनी शुरू हो गईं. फिर भी दिन बीते और 13वें दिन साइंटिस्ट्स को लगने लगा कि जैसे कैदी मर गए हों. क्योंकि वे कुछ हलचल नहीं कर रहे थे. ऑक्सीजन लेवल चेक किया गया तो वह ठीक था और सभी की सांसें चल रही थीं. फिर भी साइंटिस्ट्स को शक हुआ और उन्होंने सोचा कि इस एक्सपेरिमेंट को यहीं रोक देना चाहिए. लेकिन जिस कमांडर की निगरानी में ये एक्सपेरिमेंट चल रहा था वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ. उसके एक्सपेरिमेंट चालू रखने को कहा.

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कैदियों ने किया बाहर आने से इनकार
दो दिन और गुजर गए. फिर 15वें दिन साइंटिस्ट्स ने डिसाइड कि वे अंदर जाकर एक बार चेक करेंगे. उन्होंने कैदियों को निर्देश दिया कि जब हम अंदर आएंगे तो आप सभी दरवाजे से दूर रहेंगे. अगर ऐसा नहीं किया तो आपको गोली मार दी जाएगी. अगर आप दूर रहे तो हम आपको आजाद कर देंगे. फिर जैसे ही दरवाजा खुलता है और उन्हें कहा जाता है कि अब उन्हें आजाद किया जाता है. तो पांचों का जवाब सुनकर साइंटिस्ट्स हैरान रह गए. क्योंकि कैदियों ने बाहर आने से साफ इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा कि हम यहीं रहना चाहते हैं.

गैस बंद करते ही एक कैदी की मौत
तभी साइंटिस्ट्स ने देखा कि फर्श पर खून पड़ा है और दीवार पर भी खून के छींटे हैं. उनमें से कुछ कैदियों के जिस्म का मांस गायब है और हड्डियां भी बाहर आ गई हैं. साइंटिस्ट्स को लगा जैसे कैदियों ने अपना ही मांस खा लिया है. ये देखते ही साइंटिस्ट बाहर आ गए. उन्होंने उस गैस को बंद कर दिया, जिससे कैदियों को नींद नहीं आती थी. लेकिन जैसे ही उन्होंने गैस बंद की, एक कैदी की मौत हो गई. उसकी लाश को बाहर निकाला गया. साइंटिस्ट तय किया कि इस एक्सपेरिंट को अब फाइनली रोक देंगे. ताकि बाकी चारों के साथ कुछ गलत ना हो जाए.

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ऐसे बंद हुआ एक्सपेरिमेंट
लेकिन कमांडर ने एक बार फिर एक्सपेरिमेंट रोकने से इनकार कर दिया. उसने तो ये तक कह डाला कि एक साइंटिस्ट को भी उन कैदियों के साथ जाकर रहना चाहिए ताकि एक्सपेरिमेंट और बेहतर हो सके. लेकिन साइंटिस्ट नहीं माने और उन्हीं में से एक साइंटिस्ट ने कमांडर को ही गोली मार दी. फिर साइंटिस्ट दोबारा कमरे के अंदर गए. वहां का मंजर देखकर वे लोग काफी डर गए. क्योंकि कैदी बहुत ही अजीबोगरीब हरकतें कर रहे थे. चारों को चैंबर से बाहर निकालकर इलाज के लिए ले जाया गया. इलाज के दौरान तीन कैदियों की भी मौत हो गई. अब सिर्फ एक कैदी बचा था. उसका इलाज करवाकर 16वें दिन वापस उसे चैंबर में डाल दिया गया क्योंकि वह वहां जाने की जिद कर रहा था. एक साइंटिस्ट दोबारा चैंबर में जाता है और कैदी से पूछता है कि तुम्हें कैसा लग रहा है? तो वो अजीबोगरीब बातें करने लगा. ऐसा लग रहा था जैसे वह इंसान ही नहीं है. साइंटिस्ट उसकी बातें सुनकर घबरा गया. उसे लगा कि इसे मार डालना ही बेहतर है. फिर साइंटिस्ट ने उसे वहीं गोली मार दी. इस तरह यह एक्सपेरिमेंट बंद हुआ.

69 साल बाद दुनिया को पता चला एक्सपेरिमेंट के बारे में
एक्सपेरिमेंट के 69 साल तक इस एक्सपेरिमेंट के बारे में किसी को भनक तक नहीं लगी. फिर 2009 में Creepypasta नामक बेवसाइट ने पहली बार एक आर्टिकल लिखा और इस एक्सपेरिमेंट का जिक्र किया. जब ये कहानी सामने आई तो रूस ने साफ-साफ इनकार किया कि इस तरह का कोई एक्सपेरिमेंट देश में नहीं किया गया. लेकिन इस एक्सपेरिंट को लेकर काफी तथ्य भी सामने आई. कुछ लोगों का मानना था कि ये सच है वहीं कुछ लोगों का कहना था कि ये एक काल्पनिक कहानी है. लेकिन आज तक इस पर बहस जारी है.

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