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किसान आंदोलनः गणतंत्र दिवस पर लाल किले की घटना से टूटा विश्वास!

दिल्ली में लाल किले से लेकर आईटीओ तक, नांगलोई से गाज़ीपुर बॉर्डर तक और अक्षरधाम से नोएडा मोड़ तक किसानों का गुस्सा देखने को मिला. कहीं तोड़फोड़ की गई तो कहीं किसान पुलिसवालों से भिड़ गए. कहीं डीटीसी बसों को निशाना बनाया गया तो कहीं बैरिकेडिंग तोड़े गए.

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किसानों की ट्रैक्टर परेड कब हिंसा में बदल गई, पुलिस को इसका पता ही नहीं चला!
किसानों की ट्रैक्टर परेड कब हिंसा में बदल गई, पुलिस को इसका पता ही नहीं चला!
स्टोरी हाइलाइट्स
  • गणतंत्र दिवस पर सबसे बड़ा 'कोहराम'
  • क्यों आउट ऑफ कंट्रोल हुए किसान?
  • क्या पुलिस एक्शन का रिएक्शन थी हिंसा?

दिल्ली में शांति के वादे पर टिकी किसानों की ट्रैक्टर परेड की डोर टूट गई. वादा टूटा. विश्वास टूटा और 72वें गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर परेड हिंसा और अराजकता में बदल गई. इसके बाद दिल्ली के बॉर्डर से लाल किले तक जो हुआ, उसने सभी को हैरान कर दिया. अब सवाल उठता है कि ये सब आखिर क्यों हुआ और किसके इशारे पर हुआ. इन सभी सवालों के जवाब मिलना ज़रूरी है. 

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दिल्ली में लाल किले से लेकर आईटीओ तक, नांगलोई से गाज़ीपुर बॉर्डर तक और अक्षरधाम से नोएडा मोड़ तक किसानों का गुस्सा देखने को मिला. कहीं तोड़फोड़ की गई तो कहीं किसान पुलिसवालों से भिड़ गए. कहीं डीटीसी बसों को निशाना बनाया गया तो कहीं बैरिकेडिंग तोड़े गए. 

आज सुबह जब देश 72वें गणतंत्र का उत्सव मना रहा था, उसी वक्त दिल्ली में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की शोभा को ठेस पहुंचाने की पटकथा लिखी जा रही थी. गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के लाल किले पर जो हुआ, दुनियाभर ने उसकी तस्वीरें देखी. 26 जनवरी के दिन दिल्ली के लाल किले से शर्मनाक दृश्य देखने को मिलेंगे, किसी ने कल्पना नहीं की थी. 

मगर ऐसा हुआ. दिल्ली का लाल किला करीब एक घंटे तक अराजक सोच की चोट से कराहता रहा.  जो तस्वीरें देश और दुनिया देखी, उन्होंने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया. जो तस्वीरें सामने आईं. उनमें लाल किले पर टैक्टर वाले किसान थे. झंडा फहराने वाले लोग थे. लाल किले पर 'तलवार' वाला प्रदर्शन करने वाले भी थे. लाल किले पर पुलिस कमजोर नजर आई तो किसानों का जोर भी देखने को मिला. 

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आंदोलनकारी किसान ट्रैक्टर से लाल किले पर पहुंचे, उसके बाद जो हुआ उससे गणतंत्र और लोकतंत्र को गहरा धक्का पहुंचा. लाल किले का नाम जब आप सुनते हैं तो 15 अगस्त की तारीख जहन में याद आती है लेकिन 26 जनवरी को जिस सुबह देश गणतंत्र का जश्न मनाने में जुटा था, जिस वक्त दुनिया राजपथ पर नए भारत की शक्ति प्रदर्शन की तस्वीरों का विश्लेषण कर रही थी, ठीक उसी वक्त लाल किले से अकल्पनीय और अविश्वसनीय तस्वीरें सामने आईं.

गणतंत्र दिवस पर टैक्ट्रर मार्च निकाल रहे किसानों ने तंत्र को सीधे चुनौती दे डाली. राष्ट्र की गौरवगाथा के अध्याय में आंदोलन के नाम पर लाल किले पर अराजकता का नया चैप्टर जोड़ दिया गया. उन दृश्यों से किसान कैसे जीत सकता है. क्या देश के संस्कार अब इतने कमजोर हो गए कि हार और जीत के चश्मे से गणतंत्र के जश्न में खलल डालकर भी कोई खुश हो सकता है.

आज का दिन कैसा रहा, इतिहास में दर्ज वो तस्वीरें भविष्य में तय करेंगी. लेकिन तस्वीरें का यही सारांश हैं कि आज निजी स्वार्थ के आगे सिद्धांतों की हार हुई है. आज गांधी के देश में जमीर की हार हुई हैं, क्योंकि विरोध की एक लक्ष्मण रेखा और एक मर्यादा होती है और उन दृश्यों में वो सारी टूटती हुई नजर आईं.

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किसानों ने शांतिपूर्ण ट्रैक्टर मार्च का वादा किया था, लेकिन अब लाल किले से आई उन तस्वीरों पर किसान संगठनों का दावा है कि हंगामा और हुड़दंग करने वाले आंदोलनकारियों से उनका कुछ लेना देना नहीं है. ट्रैक्टर मार्च से किसानों के शक्ति प्रदर्शन का अंत अशांत कर देने वाली तस्वीरों से होगा, 72 साल के गणतंत्र ने कभी सोचा नहीं था.
 

 

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