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डॉटर्स डे के ठीक दो दिन बाद भारत में एक और बेटी की जिंदगी को बेरहमी से कुचल दिया गया. उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ कथित तौर पर सवर्ण समुदाय के चार लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था और उसे शारीरिक रूप से बुरी तरह प्रताड़ित किया था. इसके 15 दिन बाद पीड़िता ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया.
पिछले दो महीने में उत्तर प्रदेश में यह पांचवीं घटना है जिसमें किसी लड़की के साथ बलात्कार के बाद क्रूरतापूर्ण ढंग से हत्या की गई है. इनमें से तीन लड़कियां दलित समुदाय से हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ओर से जारी किए गए ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2019 में हर दिन बलात्कार के 88 मामले दर्ज किए गए. साल 2019 में देश में बलात्कार के कुल 32,033 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 11 फीसदी पीड़ित दलित समुदाय से हैं.
रेप सर्वाइवर्स की मदद करने वाली एक संस्था पीपुल अगेंस्ट रेप्स इन इंडिया (PARI) की योगिता भयाना ने इंडिया टुडे को बताया, “दलित समुदाय की महिलाएं ज्यादा असुरक्षित हैं. वे अपनी जाति की वजह से काफी सामाजिक दबाव झेलती हैं. बलात्कार के मामले में रिपोर्ट दर्ज कराने में वे झिझकती हैं. अगर वे एफआईआर दर्ज कराने की हिम्मत करें भी तो ज्यादातर पुलिस थाने में कोई उनकी बात नहीं सुनता. पुलिस की उनके प्रति ये उदासीनता ज्यादातर इसलिए होती है क्योंकि वे निचली जाति से हैं. अब वक्त आ गया है कि हर स्तर पर पुलिस के लिए जेंडर सेंसटाइजेशन (लैंगिक संवेदनशीलता) अभियान चलाया जाए.”
बलात्कार की महामारी
NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले राजस्थान और उत्तर प्रदेश से दर्ज हुए. 2019 में राजस्थान में करीब 6,000 और उत्तर प्रदेश में 3,065 बलात्कार के मामले सामने आए.
उत्तर प्रदेश और राजस्थान में दलित समुदायों के प्रति यौन हिंसा में वृद्धि देखी गई है, जहां इसे उत्पीड़न के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. उत्तर प्रदेश में बलात्कार के जितने केस दर्ज हुए, उनमें से 18 फीसदी पीड़ित दलित महिलाएं हैं. ये संख्या राजस्थान में दर्ज मामलों से करीब दोगुनी (9 फीसदी) है.
NCRB के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 10 वर्षों में महिलाओं के बलात्कार का खतरा 44 फीसदी तक बढ़ गया है. संस्था के आंकड़ों के मुताबिक, 2010 से 2019 के बीच पूरे भारत में कुल 3,13,289 बलात्कार के मामले दर्ज हुए हैं.
2012 का निर्भया कांड
दिल्ली में 2012 में निर्भया के साथ बेहद क्रूरतापूर्ण ढंग से सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना हुई थी जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. इस घटना के बाद क्रिमिनल लॉ में संशोधन करते हुए बलात्कार और यौन हिंसा के मामले में कड़ी सजा का प्रावधान किया गया.
इसी क्रम में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज (POCSO) अधिनियम में भी संशोधन करके 12 साल तक के छोटे बच्चों के बलात्कार के मामले में मौत की सजा का प्रावधान किया गया. हालांकि, हाथरस में एक लड़की पर हुए अत्याचार से ये स्पष्ट है कि दंड के कड़े प्रावधान भी अपराधियों को रोकने में सक्षम नहीं हैं.