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झारखंड के लोहरदगा में नक्सलियों की ओर से प्लांट किए गए बम की चपेट में आकर एक 50 वर्षीय ग्रामीण की मौत हो गई है. मृतक का नाम हीरालाल टाना भगत है. वह अपने परिवार के लोगों के साथ जंगल में मछली मारने गया था. नक्सलियों ने पुलिस को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रेशर बम प्लांट किया था, जिसकी चपेट में आकर ग्रामीण को जान गंवानी पड़ी.
हीरालाल के दोनों पांव बम की चपेट में आकर उड़ गए थे. ब्लास्ट के बाद हीरालाल धमाके की वजह से दूर जाकर गड्ढे में जा गिरे. उन्हें जख्मी हालत में परिजन घर लाए, जहां मौत हो गई. यह घटना नक्सल प्रभावित क्षेत्र केरार बुलबुल की है. यह एक जंगली इलाका है और पेशरार थाना क्षेत्र के अंतर्गत आता है. हादसे के बाद भी पुलिस मौके पर नहीं पहुंची. मृतक के परिवार को अब तक प्रशासन की ओर से कोई मदद भी नहीं मिली है.
मृतक के परिजनों को खुद किराए की गाड़ी का इंतजाम करके शव पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल लाना पड़ा. पूरे प्रकरण पर जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं. जब एएसपी अभियान से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि वे छुट्टी पर हैं. पुलिस कप्तान प्रियंका मीणा का फोन रिसीव नहीं हो रहा. एसडीपीओ बीएन सिंह, मृतक का शव सदर अस्पताल पहुंचने पर वहां पहुंचे. मगर वे भी सवालों से बच कर निकल गए.
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मृतक के बेटे ने रोते हुए कहा, 'गाड़ी में 1,500 रुपये का डीजल डाले, तब लाश लेकर अस्पताल आए. अब पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए लाश लेकर वापस गांव जाना है. 1,000 रुपये का डीजल फिर डालना होगा, जिसके लिए पैसे नहीं हैं. मगर इसकी कोई सुनने वाला नहीं था. केरार जंगल नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. यहां के लोगों का गुजारा वन उत्पादों के भरोसे ही होता है.
टाना भगतों को सरकारी प्रावधानों में मदद
आजादी की लड़ाई में टाना भगतों के योगदान को देखते हुए सरकार द्वारा इनके वंशजों को कई सुविधाएं और विशेषाधिकार दिए गए हैं. इन्हें जमीन का लगान नहीं देना पड़ता और सरकारी योजनाओं में इन्हें प्राथमिकता दी जाती है. फिर भी नक्सली घटना में जब इस समुदाय के व्यक्ति की मौत हुई, प्रशासन की ओर से मदद के लिए कोई आगे नहीं आया, यह व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है.
मृतक का शव अस्पताल पहुंचने के बाद यहां पहुंचे एसडीपीओ बीएन सिंह से जब घटना पर सवाल किया गया तो मिलते हैं कहकर वे मौके से हट गए.
साग-मछली लाने जंगल गया था भगत परिवार
मृतक की पत्नी सोनामति टाना भगत ने कहा कि गरीबी की वजह से परिवार का पेट पालने के लिए जंगल से मछली साग लाने गए थे, जहां पति विस्फोट की चपेट में आ गए. अब परिवार बेसहारा हो गया है. सरकारी स्तर से कोई मदद नहीं मिलने से इनकी उम्मीदें और टूट गई हैं.
उन्होंने कहा, 'सुबह घर से निकले थे और दिन भर के भूखे थे. शॉर्टकट रास्ते से लौट रहे थे, तभी प्रेशर बम धमाका हुआ. पहले लगा कि वज्रपात हुआ फिर मैंने अपनी बहू से कहा कि पीछे देखो धुआं उठ रहा है. दोनों सास-बहू ने मिलकर घायल हीरालाल टाना भगत को गड्ढे से निकाला. बेटे को बुला लाई फिर टांगकर उन्हें घर ले आए, जहां कोई इलाज नहीं हो सका. करीब 45 मिनट बाद उनकी मौत हो गई.'
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