उत्तर प्रदेश में एक तरफ योगी सरकार दावा करती है कि महिलाओं और बच्चियों को इंसाफ दिलाने के लिए कठोर कदम उठाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ कानपुर में इस दावे की पोल खुल गई है. कानपुर में नाबालिग से रेप के आरोपी सिपाही को बचाने के लिए उसके केस में फाइनल रिपोर्ट तक लगा दी गई, जबकि पीड़िता को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
मामले खुलने के बाद ज्वॉइंट कमिश्नर ने फिर से विवेचना करने का आदेश दिया है. दरअसल, कानपुर के बाबूपुरवा थाने में एक साल पहले एक नाबालिग लड़की ने अपनी एक शिकायत दर्ज कराई थी. आरोप है कि इस केस की जांच के सिलसिले में एक सिपाही ने लड़की के साथ रेप की वारदात को अंजाम दे दिया. लड़की कई दिनों तक जिला अस्पताल में भर्ती रही.
पुलिस ने सिपाही अक्टूबर 2021 में रेप की एफआईआर दर्ज की थी. इस मामले में लड़की को नाबालिग मानकर पोस्को भी लगाया था. इसके बाद भी आरोपी सिपाही को गिरफ्तार नहीं किया गया. अब वारदात के 10 महीने बीते जाने के बाद पुलिस ने चुपके से आरोपी के खिलाफ फाइनल चार्जशीट लगा दी. जबकि एफआर लगाने पर पुलिस को पीड़िता को सूचना देनी होती है.
इस मामले में पीड़िता का कहना है कि मुझे एफआर के बारे में नहीं पता था, मैं थाने में सिपाही की गिरफ्तारी का पता करने गई थी तो थानेदार ने हड़काते हुए बताया जाओ, उसमे एफआर लगा दी है, यह सुनते ही मैं हैरान रह गई. पीड़िता ने इसकी शिकायत कई अधिकारियों से की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
इसके बाद मामला तूल पकड़ा और मीडिया की सुर्खियां बना तो कानपुर के ज्वॉइंट कमिश्नर आनंद प्रकाश तिवारी तुरंत सफाई देने सामने आ गए और बयान जारी करके कहा कि पीड़िता के केस में उसकी शिकायत के आधार पर दोबारा विवेचना करने का आदेश दिया गया है, इसकी विवेचना एक महिला दरोगा करेगी और इसके साथ-साथ इस मामले की पूरी निगरानी एडीसीपी अनिता सिंह को सौंपी गई है.