साल 2003 में हुए मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के मामले में एक दोषी की समयपूर्व रिहाई की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा है. जस्टिस अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने रोहित चतुर्वेदी की याचिका पर उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया, जिसमें उसकी समयपूर्व रिहाई के लिए सक्षम प्राधिकारी को निर्देश देने की मांग की गई है. रोहित यूपी के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी का भतीजा है, जिन्होंने इस केस में उम्रकैद काटी है.
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने बिलकिस बानो मामले में 8 जनवरी और 13 मई, 2022 को पारित शीर्ष अदालत के पहले के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में सक्षम प्राधिकारी उत्तराखंड सरकार होगी. उन्होंने कहा कि इस अदालत ने 8 जनवरी को माना है कि जिस राज्य में आपराधिक मामले की सुनवाई हुई है, वो राज्य की नीति के अनुसार दोषियों की समयपूर्व रिहाई से निपटने के लिए सक्षम प्राधिकारी होगा.
अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा, "चूंकि इस मामले को अदालत के आदेश पर उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड स्थानांतरित किया गया था, इसलिए इस मामले में सक्षम प्राधिकारी उत्तराखंड सरकार होगी." पीठ ने उत्तराखंड सरकार को नया नोटिस जारी करने पर सहमति जताई और इस मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को तय की है. इससे पहले यूपी सरकार ने याचिका दायर कर उस आदेश को वापस लेने की मांग की थी, जिसमें रोहित की समयपूर्व रिहाई पर विचार को कहा गया था.
बताते चलें कि कवियत्री मधुमिता शुक्ला की 9 मई, 2003 को लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उस वक्त वो गर्भवती थीं. यूपी के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी को उनकी हत्या के सिलसिले में सितंबर 2003 में गिरफ्तार किया गया था, जिनके साथ मधुमिता कथित तौर पर रिलेशन में थीं. इसके बाद शुक्ला की हत्या की साजिश के सिलसिले में उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, भतीजे रोहित चतुर्वेदी और शूटर संतोष कुमार राय को गिरफ्तार किया गया था.
24 अक्टूबर 2007 को उत्तराखंड की एक ट्रायल कोर्ट ने चारों आरोपियों को मधुमिता शुक्ला की हत्या के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. नौतनवा निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित अमरमणि त्रिपाठी साल 2001 में उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार और साल 2002 में बसपा सरकार में मंत्री रहे हैं. वे समाजवादी पार्टी से भी जुड़े रहे हैं. 17 जून 2003 को इस केस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई. 8 फरवरी 2007 को सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को उत्तराखंड स्थानांतरित कर दिया.
16 जुलाई 2012 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उनकी दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा. सर्वोच्च न्यायालय ने 19 नवंबर, 2013 को इस आदेश को बरकरार रखा. 24 अगस्त, 2023 को उत्तर प्रदेश कारागार विभाग ने अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी की समयपूर्व रिहाई का आदेश जारी किया, जिसमें राज्य की 2018 की छूट नीति और इस तथ्य का हवाला दिया गया कि उन्होंने अपनी सजा के 16 साल पूरे कर लिए हैं.