गांव के बीचों-बीच बैठ कर सारंगी की तान पर गीत सुनाता एक जोगी और फूट-फूट कर रोते लोग. 2 फरवरी दोपहर 3 बजे उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के खरौली गांव में इसी तरह खलबली मची हुई थी. कोई बीस साल पहले गायब हुआ एक लड़का जब जोगी बन कर अचानक गांव में लौट आया था. क्या मां, क्या बाप, क्या बुआ और क्या दादी, उसकी बात सुनकर हर किसी की आंखों से अपने बिछड़े लाडले का प्यार आंसुओं की शक्ल में झर-झर बह रहा था. ऊपर से सारंगी की तान पर जोगी ने राजा भतृहरि की वो दर्द भरी कहानी सुनाई, जिससे सुनने के बाद तो मानों मां का कलेजा मुंह को आया गया. कभी वो अपने बेटे को देखती, तो कभी उसकी बचपन की यादों में खो जाती.
देखते ही देखते ये खबर गांव खरौली से निकल कर आस-पास के इलाकों में फैल गई. लोग तकदीर के इस अदभुत खेल का गवाह बनने इस गांव की ओर दौड़े चले आए. जोगी के इर्द-गिर्द भावनाओं का समंदर उमड़ रहा था, कोई रोता था, कोई उसे जोग-सन्यास छोड़ कर घर गृहस्थी में वापस लौट आने की सलाह देता था, तो कोई उसे मां-बाप के ढलते उम्र का वास्ता, लेकिन दुनियादारी से दूर जोगी का मन जोग में कुछ ऐसा रमा कि उस पर किसी की बात का कोई भी असर नहीं था. असल में इसी गांव के रहनवाले रतिपाल सिंह का छोटा सा बेटा अरुण कुमार सिंह उर्फ पिंकू अब से कोई बीस साल पहले राजधानी दिल्ली में तब कहीं गुम हो गया था, जब वो किसी काम से दिल्ली गए थे.
रतिपाल सिंह और उनका पूरा परिवार अपने कलेजे के टुकड़े की याद में तिल-तिल कर मर रहा था. बेटे की गुमशुदगी के बाद उन्हें ना तो उसकी कोई खोज-खबर मिली और ना ही ये पता चला कि वो कहां और किस हाल में है. और तो और घरवालों को तो यहां तक पता नहीं था कि वो जिंदा भी है या नहीं? लेकिन 20 सालों से ज्यादा वक़्त से चलते इसी दिमाग़ी कश्मकश के बीच 2 फरवरी को अचानक एक जोगी ने खुद को रतिपाल सिंह का बिछड़ा हुआ बेटा बताते हुए जब उनके घर में दस्तक दी, तो सालों से कलेजे में दबी रही मां-बाप की सारी भावनाएं उफन पड़ीं. इन सालों में पिंकू इतना बदल चुका था कि यदि उसने खुद ही अपने मुंह से अपनी पहचान जाहिर ना की होती, तो शायद कोई पहचान पाता.
चूंकि अपनी मां से भिक्षा लिए बगैर उसका जोग सफल नहीं हो सकता था, इसलिए उसे ना सिर्फ अपने गांव बल्कि घरवालों के दरवाज़े पर लौटना पड़ा. लेकिन ये तो रही बेटे की कहानी. एक मां, उसका बुजुर्ग बाप और तमाम दूसरे नाते रिश्तेदार भला, बेटे के इस हठ को इतनी आसानी से कैसे मान लेते? तो उन्होंने बेटे को जोग यानी सन्यास जीवन छोड़ने के लिए मनाना शुरू कर दिया. लेकिन इसी मनाने-समझाने में घर लौटे बेटे ने एक ऐसी बात कह दी कि कुछ देर के लिए घरवाले भी सकते में आ गए. जोगी ने कहा ने कहा कि जिस मठ में उसे पाल-पोस कर बड़ा किया है और जिस गुरु से उसने दीक्षा ली है, जब तक वो उस गुरु का क़र्ज नहीं चुका देता, ना तो उसे मठ से आजा़दी मिलेगी और ना ही जोग से.
उसने खुद को झारखंड के पारसनाथ मठ का अनुयायी बताया और गुरु का कर्ज़ उतारने के लिए 11 लाख रुपये की भारी-भरकम रकम मांग ली. मरता क्या ना करता? घरवाले अब जोगी के आगे गिड़गिड़ाने लगे. बुजुर्ग बाप अपनी हैसियत का वास्ता देने लगा और मां अपने दूध का क़र्ज़ वापस मांगने लगी. अब बात मोल-भाव पर आ गई और आखिरकार 3 लाख 60 हज़ार रुपये पर पिंकू की घरवापसी का सौदा तय हुआ. बेटे के प्यार में पागल पिता ने ना सिर्फ उसका जोग खत्म करवाने के लिए अपनी पुश्तैनी जमीन के एक हिस्से का सौदा तय कर लिया, बल्कि उसकी घर वापसी होने तक उसके संपर्क में रहने के लिए उसे आनन-फानन में एक मोबाइल फोन भी खरीद कर दिया. बेटा वहां से चला गया.
इसी बीच 11 लाख रुपये से शुरू हुई सौदेबाज़ी, करीब साढ़े तीन लाख रुपये पर उसका रुकना, फिर फोन लेकर अचानक उसका आनन-फानन में फिर से घर छोड़ देना, ये सारी बातें अब पिंकू के घरवालों के साथ-साथ गांव के लोगों के मन में भी शंका पैदा कर रही थी. ऐसे में गांव के ही कुछ लड़कों ने जब झारखंड के पारसनाथ मठ के बारे में जानकारी जुटाने की कोशिश की, तो पता चला कि ऐसा तो कोई मठ है ही नहीं. हालांकि झारखंड के पारसनाथ में जैन संप्रदाय का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल जरूर है. ऐसे में लोगों का शक अब जोगी बन कर गांव आए पिंकू और उसके साथी पर गहराने लगा. इसके बाद रतिपाल सिंह ने उसे पैसे देने के लिए एकाउंट नंबर मांगा, तो उसने झारखंड के किसी आदमी का नंबर दे दिया.
एक ऐसा आदमी, जिस पर घरवालों का यकीन करना मुश्किल था. शक के चलते ही जब घरवालों ने पिंकू को फोन कर उसकी लोकेशन पूछी, तो उसने बताया कि वो झारखंड में है और अपने मठ की तरफ जा रहा है. लेकिन जब घरवालों ने उसे दिए गए अपने नए मोबाइल फोन की लोकेशन चेक की, तो पता चला कि वो झारखंड में नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के गोंडा में है. अब घरवालों का शक यकीन में बदल चुका था कि जोगी बन कर गांव आए लोग असल में उनके गुमशुदा बेटे की झूठी पहचान ले कर उनकी भावनाओं का सौदा कर रहे थे. उन्हें ठगने की कोशिश में थे. अब घरवालों को ये भी यकीन हो चुका था कि असल में वो लड़का 20 साल पहले गायब हुआ उनका बेटा पिंकू तो बिल्कुल नहीं है.
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लिहाजा गांव वालों ने पुलिस को फोन कर दिया. पूरी कहानी बता दी. ये भी बता दिया कि वो किस तरह उन्हें धोखा देकर उनसे कुछ रुपए मोबाइल फोन वगैरह लेकर चला गया है. असल में गुमशुदा पिंकू के कई रिश्तेदारों ने भावनाओं में आकर उसे हजारों रुपए भी यूं ही दे दिए थे. अमेठी पुलिस अब जोगी के मोबाइल फोन की लोकेशन ट्रेस करती हुई यूपी के ही गोंडा जिले के टिकारिया गांव में पहुंची, जहां जाकर पता चला कि वो लड़का कोई और नहीं बल्कि एक आले दर्जे का ठग नफीस है, जिसका पूरा परिवार ही इस तरह घूम-घूम कर लोगों से ठगी किया करता है. बदकिस्मती से यहां नफीस तो पुलिस को नहीं मिला, लेकिन उसकी सच्चाई जरूर पुलिस के सामने आ गई. पुलिस उसकी तलाश कर रही है.
इसके साथ इन लुटेरों के बारे में अब पुलिस को ऐसी-ऐसी कहानी पता चल रही है कि खुद पुलिस भी हैरान है कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? नफीस और उसके गैंग के लोगों ने ये कोई पहली बार ना तो किसी को ठगा है और ना ही घात किया है, बल्कि इससे पहले पूरे देश में बेशुमार जगहों पर जोगी बन कर वो लोगों को चूना लगा चुका है. अमेठी की तरह ही झारखंड के पलामू, बिहार के दरभंगा और यूपी के मिर्ज़ापुर में भी ठगी की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. दिलचस्प बात ये है कि इन सभी जगहों पर लोगों को धोखे देने की कोशिश करने वाला शख्स एक ही है. वो हर जगह अलग-अलग नाम और पहचान से पहुंचता है. लोगों से उनके घर का बिछड़ा हुआ बेटा बता कर रुपए ठगने की कोशिश करता है.
अमेठी में पिंकू बन कर आए गोंडा के रहनवाले नफीस की पोल खुलने के बाद जब पुलिस ने मामले की जांच शुरू की, तो ये पता चला कि वो पहले भी अलग-अलग जगहों में घूम-घूम कर ऐसी ही ठगी कर चुका है. साल 2021 में यही नफीस एक बार पलामू गया जहां खुद को सालों पहले घर से गायब अभिमन्यु कुमार बता कर उन्हें अपनी बातों में फांस लिया और उनसे ढाई लाख रुपये नकद, कई तोला सोनू और दूसरी महंगी चीज़ें ठग कर फरार हो गया. दरंभगा के खिरमा गांव में तो नफीस एक मुस्लिम परिवार के घर ही जा पहुंचा, जिनका बेटा इफ्तेखार साल 2001 में दिल्ली के लिए निकला था. उसके बाद गायब हो गया था. यहां भी नफीस ने खुद को उनका लापता बेटा इफ्तेखार बताया था.
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इसके बाद खुद के जोगी बन जाने की कहानी सुनाई थी. नफीस को इफ्तेखार समझ कर घरवाले जज्बाती हो गए और इसके बाद नफीस ने उनसे भी घर वापसी के लिए अपने गुरु को दक्षिणा चुकाने के नाम पर लाखों रुपये ठगने की कोशिश की थी, लेकिन फिर पोल खुलने के डर से फरार हो गया. दरभंगा की तरह ही इस नफीस का एक भाई राशिद 2021 में मिर्जापुर के सहसपुर गांव में पहुंचा था, जहां उसने खुद को बुद्धिराम विश्वकर्मा का फरार बेटा अन्नू बताया और करीब डेढ़ लाख रुपये ठग लिए थे. तब राशिद और उसके भाई नफीस के खिलाफ केस भी दर्ज हुआ था. असल में गोंडा के टिकारिया गांव के रहने वाले नफीस के परिवार और गांव के लोग ऐसे ही ठगी के काम में सालों से लगे हुए हैं.
ये लोग पहले गुमशुदा लोगों की जानकारी जुटाते हैं और फिर उनके घर की रेकी करते हैं. इसके बाद झूठी पहचान के साथ उनके घर जा पहुंचते हैं. इसके बाद सारंगी की तान पर भावुक गाने गाकर लोगों को इमोशनल करते हैं. उनके गाने और झूठी कहानी को सुनकर अक्सर मां-बाप और रिश्तेदार धोखा खा जाते हैं. अपने जिगर के टुकड़े को पाने के चक्कर में घर-बार बेंचकर कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हो जाते हैं. लेकिन अब अमेठी वाले केस के बाद उनकी पोल खुल गई है. पुलिस उनके पीछे पड़ी है. यूपी पुलिस का दावा है कि उन्हें बहुत जल्द गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे कर दिया जाएगा. लेकिन ठगी के इस नेटवर्क में कितने लोग शामिल हैं, इसका पता लगना भी बहुत जरूरी है.