एक BSP का विधायक है, दूसरा BSP का सांसद. एक पंजाब की रोपड़ जेल में बंद, दूसरा यूपी की नैनी जेल में. विधायक पर कृष्णानंद राय की हत्या समेत, रंगदारी अपहरण जैसे कई मामले दर्ज हैं, दूसरी ओर सांसद पर रेप का आरोप. कभी दोनों साथ थे. लेकिन दूरियां बढ़ चुकी हैं, रिश्ते टूट चुके हैं. हालात यहां तक आ गए हैं कि सांसद को अपनी ही पार्टी के विधायक से जान का खतरा है. बात हो रही है मऊ सदर से विधायक और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की और उसी जिले की घोसी संसदीय सीट से सांसद अतुल राय की.
सांसद यूपी के सीएम को खत लिखकर गुहार लगा रहे हैं कि मुख्तार को नैनी जेल न शिफ्ट किया जाए क्योंकि उससे उनकी जान को खतरा है. उनकी गुहार सुन ली गई या संयोग हो सकता है कि मुख्तार को बांदा की जेल में लाने की बात हो रही है. लेकिन इस खत के दो मायने निकाले जा रहे हैं. पहला यह कि अतुल राय ने यह लेटर मुख्तार को बचाने के लिए लिखा है. क्योंकि वह उनके ही आदमी हैं. दूसरा यह कि अतुल राय को वास्तव में मुख्तार से खतरा है क्योंकि उन्होंने मुख्तार ही नहीं उनके परिवार का सपना तोड़ा है. परिस्थितियां ऐसी हो गईं कि अतुल राय पर मुख्तार का आदमी होने का ठप्पा लग गया. अब अतुल राय इस ठप्पे से आजादी चाहते हैं. राजनीति में उनकी हैसियत मुख्तार से बड़ी हो चुकी है. आगे की राजनीति करनी है तो मुख्तार की छत्रछाया से बाहर निकलना ही होगा. अगर दोनों के संबंधों की पड़ताल की जाए तो बात 2009 से शुरू होती है.
देश में लोकसभा के चुनाव हो रहे थे और मुख्तार जेल में बंद थे. इसके बावजूद वह BSP का टिकट पाने में सफल रहे. कहा जाता है कि जेल में रहते हुए भी मुख्तार ने मुरली मनोहर जोशी को पानी पिला दिया था. रोहनिया विधानसभा भी वाराणसी संसदीय क्षेत्र में आता है. अतुल राय वहां BSP प्रभारी थे. रोहनिया से मुख्तार को सबसे ज्यादा वोट मिले थे. शहरी क्षेत्रों में बढ़त की बदौलत मुरली मनोहर जोशी 17000 वोटों से जीतने में सफल रहे. जेल में रहते हुए भी मुख्तार को इतने वोट मिलना चमत्कार माना गया. कहा तो यहां तक जाता है कि अगर मुख्तार जेल से बाहर होते तो यह चुनाव उनका होता. इस सारे घटनाक्रम में अतुल राय का योगदान सबसे ज्यादा माना गया. दोनों का निकट आना स्वाभाविक था.
यहीं से अतुल राय पर मुख्तार का आदमी होने का ठप्पा लग गया. 2010 में मायावती ने मुख्तार को पार्टी से निकाल दिया. इसके बाद उन्होंने कौमी एकता दल बना लिया. दोनों के रास्ते अलग हो गए. लेकिन उस समय के हालात और सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों की वजह से किसी में मुख्तार का खुलकर विरोध करने की कूव्वत नहीं थी. मुख्तार को भी तब तक कोई दिक्कत नहीं थी जब तक कोई उनके रास्ते में न आए. अतुल राय बसपा में बने रहे. उन्हें लगता रहा कि अगर BSP का कैडर वोट और उनकी विरादरी भूमिहारों के वोट मिल जाएं तो वह गाजीपुर, बलिया, मऊ में कहीं से भी विधायक बन जाएंगे.
2017 के विधानसभा चुनाव आने वाले थे. मुख्तार कौमी एकता दल की राजनीति कर रहे थे. वह खुद तो विधायक बन गए लेकिन उन्हें इस बात का एहसास था कि बिना सपा-बसपा के साथ के उनके भाई सांसद नहीं बन पाएंगे. वह बीएसपी में आने की जुगत लगाते रहे. उधर, 2015 में ही अतुल राय को जमनिया का बीएसपी प्रभारी बना दिया गया था. उनकी मायावती तक सीधी पहुंच हो गई थी और इस संबंध को वह और मजबूत करते जा रहे थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में अतुल राय को जमनिया से BSP ने प्रत्याशी घोषित कर दिया. इधर, चुनाव के कुछ दिन पहले ही मुख्तार BSP में शामिल हो गए और उन्हें मऊ सदर से टिकट मिल गया.
मुख्तारः रॉबिनहुड की छवि
उस समय तक मुख्तार का कद बड़ा हो चुका था. सत्ता में उनकी हनक चलती थी. कोई अधिकारी उनसे पंगा नहीं लेना चाहता था. वह जेल में हैं या बाहर हैं इससे कोई खास अंतर नहीं पड़ता था. जेल में रहते हुए भी जलवा बरकरार रहता था. लोग उन दिनों को याद करते जब एक ही नंबर की कई सफारी गाड़ियों का काफिला धूल का गुबार उड़ाते हुए निकलता और बेरोजगार युवा उसे हसरत भरी निगाहों से देखते. मुख्तार ने रॉबिनहुड की छवि बना ली थी. कहा जाता है कि जो कोई भी उनके दरबार में पहुंचता निराश नहीं लौटता. क्योंकि उन्हें अपना कद इतना ऊंचा करना था ताकि उनके गुनाहों पर पर्दा पड़ जाए. कृष्णानंद राय की हत्या का आरोप उनपर था लेकिन कई भूमिहार उनके खास रहे. अंगद और गोरा राय को उनका खास शूटर माना जाता है.
2017 में BSP में शामिल होने के बाद मायावती ने अंसारी परिवार को आसपास की सीटें जिताने की जिम्मेदारी सौंपी. अतुल राय जमनिया से चुनाव मैदान में थे. ऐसे में मुख्तार के परिवार के साथ मंच साझा करना उनकी मजबूरी थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने मुख्तार के लिए जो किया था वह उसी तरह के योगदान की अपेक्षा रखते थे. उन्हें BSP कैडर के साथ सामाजिक समीकरणों का ख्याल रखना था. ऐसे में यह ठप्पा और मजबूत हो गया कि अतुल राय मुख्तार के आदमी हैं. हालांकि अतुल राय के सांसद प्रतिनिधि गोपाल राय कहते हैं कि अगर मुख्तार के लोगों ने उस चुनाव में मन से साथ दिया होता तो अतुल राय का विधायक बनना तय था. लेकिन मुख्तार खुद जमनिया से अपने परिवार को लड़ाना चाहते थे इसलिए उन्होंने अंदर-अंदर विरोध कर दिया और अतुल चुनाव हार गए.
मऊ से अब्बास अंसारी थे टिकट के दावेदार
जानकार बताते हैं कि पहले चढ़ाना, और फिर पर कतरना मुख्तार की फितरत है. मुन्ना बजरंगी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगते ही दोनों में ठन गई. ऐसे में अतुल राय का आगे बढ़ना मुख्तार को खटकने लगा. मुख्तार हसरत पाले बैठे थे कि उनके बेटे अब्बास अंसारी को घोसी लोकसभा से BSP का टिकट मिल जाएगा. परिवार मायावती को हर तरह से संतुष्ट करने में सक्षम था. अब्बास को घोषी का प्रभारी बना भी दिया गया लेकिन वहां से टिकट लेने में अतुल राय सफल रहे. यह बात मुख्तार को खटक गई. लेकिन मायावती की हनक ऐसी कि खुलकर कोई प्रत्याशी का विरोध नहीं कर सकता था. मुख्तार के लोगों ने कई जगह अतुल राय के पुतले जलाए. अतुल यह बात मायावती तक पहुंचाने में सफल रहे. मायावती ने मुख्तार के 7 लोगों को पार्टी से निकाल दिया.
2019 में चूक गए मौका
इंसान की जिंदगी में मौके आते हैं जब वो छत्रछाया से निकलकर अपना खुद का वजूद कायम कर लेता है. 2019 का लोकसभा चुनाव ऐसा ही था जिसमें अतुल मुख्तार की छत्रछाया से मुक्त हो सकते थे लेकिन जानकार बताते हैं कि वो रिस्क नहीं ले पाए. उन्हें डर था कि इससे मुसलमान नाराज हो जाएंगे और उन्हें हार का सामना करना पड़ेगा.
क्यों लिखा है सीएम योगी को खत?
चुनाव के दौरान ही एक लड़की ने आरोप लगाया है कि अतुल राय ने उसके साथ रेप किया है और जान से मारने की धमकी दी है. पुलिस ने केस दर्ज कर लिया और इसी मामले में घोसी से BSP सांसद अतुल राय नैनी जेल में बंद हैं. यहीं पर सपा विधायक जवाहर यादव पंडित की हत्या में दोषी करार दिए गए कपिल मुनि करवरिया अपने दो भाइयों के साथ आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. बताया जाता है कि करवरिया के पिता भुक्खल महाराज से मुख्तार से खास रिश्ते थे. वह गाजीपुर जेल में उनसे मिलने जाया करते थे. कहा जा रहा है कि अतुल राय को ये बातें पता हैं. अगर मुख्तार को नैनी जेल में रखा जाता है तो उनके लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. इसलिए उन्होंने सीएम योगी को खत लिखा है कि मुख्तार को नैनी जेल में न रखा जाए.
दावाः अतुल राय को मुख्तार ने फंसाया
इस सारे वाकये पर अतुल राय के प्रतिनिधि गोपाल राय से aajtak.in ने बात की. गोपाल राय का दावा है कि अतुल राय को फंसाने के लिए मुख्तार ने सोनभद्र जेल में बंद अंगद राय और सत्यम के साथ मिलकर साजिश रची और फर्जी केस दर्ज कराया. उन्होंने वह ऑडियो क्लिप भी उपलब्ध कराई जिसमें कथित रूप से अंगद राय और सत्यम अतुल राय को फंसाने की बात कर रहे हैं. एक क्लिप में अंगद राय को पीड़िता और उसकी मां से भी बात करते सुना जा सकता है. प्रतिनिधि ने यह दावा किया कि जांच अधिकारी ने इस मामले को फर्जी पाया है और रिपोर्ट शासन को भेज दी है लेकिन आगे की कार्रवाई नहीं हो रही है. इसके लिए मुख्य सचिव को पत्र भी भेजा गया है.
अब मुख्तार परिवार के रास्ते का कांटा हैं बन चुके हैं अतुल
क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि अतुल राय और मुख्तार का साथ भले ही बहुत दूर तक न चला हो लेकिन अतुल राय को पता है कि मुख्तार के इशारे पर काम करने वाले लोग आज भी हैं. अब अतुल राय ही मुख्तार के लिए सबसे बड़ी मुसीबत हैं. वह राजनैतिक रूप से बेहद मजबूत हो चुके हैं. मायावती का उन्हें स्नेह प्राप्त है. अगर मायावती को लगता कि उन पर लगे आरोप सही हैं तो वह कबका उन्हें बाहर का रास्ता दिखा चुकी होतीं. पूर्वांचल में पार्टी का कोई कार्यक्रम हो वह अतुल के जिम्मे रहता है.
दूसरा अब अतुल राय के लोग हर स्तर पर मुख्तार का विरोध कर रहे हैं. पंचायत चुनावों में उनके आदमियों के खिलाफ चुन-चुनकर उम्मीदवार उतारे जा रहे हैं. मुख्तार के परिवार का यह डर स्वाभाविक है कि अब सांसद के चुनाव में भी उन्हें अतुल राय के विरोध का सामना करना पड़ेगा क्योंकि दोनों एक ही जिले के निवासी हैं. ऐसे में उस इलाके की जो राजनीति और अपराध का कॉकटेल रहा है उसमें कुछ नहीं कहा जा सकता. अतुल राय की चिंता स्वाभाविक भी हो सकती है.
सांसद प्रतिनिधि गोपाल राय कहते हैं हम न कभी मुख्तार के साथ थे न हैं. परिस्थितियां ऐसी थीं जिसमें लगा कि हम उनके या वो हमारे साथ हैं. लेकिन आज हम खुलकर मुख्तार और उनके परिवार के विरोध में हैं. हमें राजनीति में खुद अपना रास्ता तय करना है और हमारा सांसद इसमें सक्षम हैं.