मूक और बधिर नाबालिग लड़की से रेप के आरोपी एक शख्स को डीएनए टेस्ट के बाद जमानत मिल गई है. रेस्टोरेंट में काम करने वाला ये शख्स 17 महीने से जेल में था. डीएनए टेस्ट रिपोर्ट से सामने आया कि आरोपी पड़ोस में रहने वाली नाबालिग लड़की के गर्भस्थ शिशु का पिता नहीं था.
कोर्ट ने डीएनए रिपोर्ट का संज्ञान लेने और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 25 साल के आरोपी को जमानत दे दी. कोर्ट ने कहा, ‘मेरिट्स के आधार पर मामले का फैसला करने में वक्त लगेगा. डीएनए रिपोर्ट देखने के बाद उसकी अर्जी (जमानत के लिए) को मंजूरी दी जाती है.’
स्पेशल चाइल्ड स्कूल में 7वीं कक्षा में पढ़ने वाली मूक और बधिर लड़की ने 23 जुलाई 2019 को पेट में दर्द की शिकायत की. उस वक्त वो स्कूल में ही थी. लड़की के घरवाले उसे अस्पताल ले गए. वहां पता चला कि वो प्रेग्नेंट है.
लड़की से घरवालों ने इस बारे में पूछा तो उसने साइन लैंग्वेज से बताया कि इसके लिए पड़ोसी जिम्मेदार है. लड़की के मुताबिक वो जब बॉथरूम से आ रही थी तो उसने उसकी न्यूड तस्वीरें ले ली थीं. लड़की ने ये भी कहा कि आरोपी ने दो बार उसका यौन शोषण किया.
इस केस में मुंबई पुलिस ने जांच करने के बाद चार्जशीट दाखिल की, जिसमें रेस्तरां वर्कर के तौर पर काम करने वाले लड़की के पड़ोसी के खिलाफ रेप के चार्ज लगाए गए.
इस बीच, आरोपी ने जमानत की याचिका दाखिल की जो नामंजूर हो गई क्योंकि उस वक्त तक जांच जारी थी. अब डीएनए रिपोर्ट आरोपी के पक्ष में आई तो उसने फिर जमानत के लिए याचिका दाखिल की. इस याचिका में आरोपी ने कहा कि उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया.
आरोपी की याचिका पर अभियोजन पक्ष ने सख्त आपत्ति जाहिर की. उसका कहना था कि अगर आरोपी को जमानत दी गई तो उसकी ओर से सबूतों से छेड़छाड़ की संभावना है. जमानत मिलने के बाद वो पीड़िता और गवाहों को धमका भी सकता है.
पीड़िता का बयान क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (सीपीसी) की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने भी रिकॉर्ड किया गया. कोर्ट ने यह कहने के बाद आरोपी को 30,000 रुपए के बॉन्ड पर जमानत देने का आदेश दिया- “अभियोजन की ओर से दर्ज कराया गया कि पीड़िता ने अपने हाथ से लिखे बयान में जमानत के लिए याचिका देने वाले (आरोपी) को नामजद किया. चार्जशीट को देखने से लगता है कि जांच के दौरान आरोपी को पीड़िता के सामने पहचान कराने के लिए पेश नहीं किया गया.”