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पुलिस की टीम, मीडिया की भीड़... 9 दिन तक कोई नहीं खोज पाया कमरे में पड़ा शव, पढ़ें- एक अनसुलझे केस की कहानी

कहानी मेक्सिको में 4 साल की बच्ची की मौत की. जिसमें आज तक पता नहीं लग पाया है कि बच्ची की मौत आखिर हुई कैसे. इस मामले में पुलिस से लेकर डॉक्टर्स तक की कार्रवाई पर काफी सवाल उठे. माता-पिता पर भी बच्ची की मौत को लेकर शक हुआ. लेकिन आज तक कोई ये नहीं बता पाया कि बच्ची की मौत का कारण क्या था?

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पॉलेट फराह (फाइल फोटो)
पॉलेट फराह (फाइल फोटो)

20 जुलाई 2005 के दिन मेक्सिको सिटी में मॉरिशियो गेबारा और लिसेट फराह (Mauricio Gebara and Lisette Farah) नामक जोड़े को एक बच्ची पैदा हुई. नाम रखा गया पॉलेट फराह (Paulette Farah). बदकिस्मती से इस बच्ची को शारीरिक रूप से कुछ दिक्कत थी. से सही से बोल नहीं पाती थी. इसके एक बहन भी थी जो कि इसे तीन साल बड़ी थी. उसका नाम लिसेट जूनियर था. दिन बीत रहे थे. परिवार हंसी खुशी जिंदगी बिता रहा था.

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फिर दिन आया 21 मार्च 2010 का दिन. दोनों बच्चियां अपने पिता के साथ एक ट्रिप पर निकलीं. जबकि, उनकी मां अपनी एक दोस्त अमांडा के साथ किसी और ट्रिप पर गईं. रात के 9 बजे तक पूरा परिवार घर वापस आ गया. सभी ने मिलकर डिनर किया और अपने-अपने कमरे में सोने के लिए चले गए. बता दें, मॉरिशियो मेक्सिको के जाने माने बिजनेसमैन थे और लेसेट भी नौकरीपेशा महिला थीं. इसलिए दोनों ने बच्चियों की देखभाल के लिए दो काम वाली (नैनी) रखी हुईं थी. वे दिनभर बच्चों की देखभाल करतीं. फिर बाद में अपने घर लौट जातीं.

22 मार्च 2010 दोनों नैनी बच्चियों के देखभाल के लिए घर आईं. लेकिन जैसे ही एरिका नामक नैनी ने पॉलेट के कमरे का दरवाजा खोला तो देखा कि वह वहां नहीं थी. उसने घर में हर जगह पॉलेट को ढूंढा लेकिन वह कहीं नहीं मिली. एरिका ने फिर यह बाद दूसरी नैनी को बताई. दोनों ने फिर बाहर पॉलेट को ढूंढना शुरू किया. लेकिन पॉलेट उन्हें कहीं भी नहीं मिली. जिसके बाद उन्होंने मॉरिशयो और लेसेट को फोन करके पूरी बात बताई. माता-पिता तुरंत घर पहुंचे और पुलिस को फोन किया.

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सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची. उन्होंने पांच बार अपार्टमेंट की अच्छे से जांच की. लेकिन उन्हें भी पॉलेट कहीं नहीं मिली. दरअसल, यह जोड़ा जिस अपार्टमेंट में रहता था उसकी बिल्डिंग काफी ऊंची थी. और उनका अपार्टमेंट काफी ऊपर था. इसलिए एक बात तो साफ थी कि बच्ची खुद से कहीं और नहीं जा सकती थी. पुलिस ने बिल्डिंग के बाकी अपार्टमेंट्स को भी अच्छे से खंगाला. लेकिन फिर भी पॉलेट उन्हें कहीं नहीं मिली.

बच्ची की गुमशुदगी के पोस्टर छपवाए
उधर माता-पिता पॉलेट को लेकर इतने चिंतित हो गए थे कि उन्होंने जगह-जगह पॉलेट की गुमशुदगी के पोस्टर छपाकर चस्पा करवाए. Los Angeles Times के मुताबिक, दंपति ने फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से भी लोगों से अपील की कि अगर उन्हें पॉलेट के बारे में कोई भी जानकारी मिलती है तो कृपया करके उन्हें बताएं. उन्हें हर हाल में अपनी बेटी चाहिए थी. हैरानी की बात ये थी कि परिवार ने दो कुत्ते भी पाल रखे थे. अगर उस रात कोई अंजान शख्स उनके घर आया भी होता तो कुत्ते जरूर भौंकते. लेकिन किसी ने भी कुत्तों के भौंकने की आवाज नहीं सुनी थी.

अटॉर्नी जनरल ने केस में दिखाई रूचि
मामला मीडिया तक पहुंच गया था. इसे एक हाईप्रोफाइल केस माना जा रहा था. मीडिया जब भी आस-पास के लोगों से इसे लेकर सवाल करती तो सभी लोग अलग-अलग बात बताते. धीरे-धीरे मामला अटॉर्नी जनरल तक भी पहुंच गया. उन्होंने इस केस में काफी रूचि दिखाई. उन्होंने पुलिस को ऑर्डर दिया कि इस केस की अच्छी से जांच की जाए. फिर इसी बीच 31 मार्च 2010 के दिन अल सुबह 2 बजे फॉरेंसिक टीम के तीन लोग क्राइम सीन को रिक्रिएट करने के लिए इस घर में पहुंचे. उन्होंने इस सीन को कैमरे में भी कैद करने का सोचा. इसलिए वे इसका वीडियो भी बनाने लगे.

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कमरे में 9 दिन बाद मिली लाश
लेकिन उनके होश तब उड़ गए जब उन्होंने पाया कि जिस कमरे से बच्ची लापता हुई थी, उसी कमरे के बेड और गद्दे के बीच में बच्ची का शव पड़ा हुआ है. ये इसलिए हैरानी भरी बात थी कि यहां 9 दिन तक पुलिस के कर्मचारी, मीडिया वाले और परिवार के लोग न जाने कितनी बार कमरे में आए. फिर भी उनकी नजर इस लाश पर नहीं पड़ी. आखिर क्यों? क्या इस शव की बदबू भी लोगों को नहीं आई? ऐसे कई सवाल इस मामले को लेकर अब खड़े होने लगे.

डॉक्टर्स की लापरवाही
परिवार वालों और दोनों नैनी से भी पूछताछ की गई कि क्या आपने यहां लाश नहीं देखी? तो उन्होंने उल्टा पुलिस से ही पूछना शुरू कर दिया कि यहां तो पुलिस भी कई बार आई थी. क्या उन्हें भी बच्ची की लाश नहीं दिखी? सभी लोग इस बात से बिल्कुल हैरान थे कि बच्ची का शव यहां पिछले 9 दिनों से पड़ा हुआ है और किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी. मामला मीडिया में भी काफी उछला. यहां बच्ची का पोस्टमार्टम करवाया गया तो वहां भी डॉक्टरों की लापरवाही देखने को मिली. पहले डॉक्टर्स ने बताया कि बच्ची की मौत 28 मार्च 2010 को हुई है. फिर अचानक से उन्होंने रिपोर्ट बदली और कहा कि बच्ची की मौत 21 से लेकर 26 मार्च 2010 के बीच हुई है. रिपोर्ट के बाद यह मामला काफी पेचीदा और कन्फ्यूजन भरा लगने लगा था. जिसके बाद अटॉर्नी जनरल ने खुद यह मामला बंद करना चाहा.

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फॉरेंसिक टीम के मेंबर ने किया खुलासा
उन्होंने यह बोलकर मामला बंद करना चाहा कि हो सकता है बच्ची नींद में करवट लेने के बाद गद्दे और बेड के बीच में फंसी और दम घुटने से मर गई. लेकिन तभी फॉरेंसिक टीम के एक मेंबर ने मीडिया में आकर यह बयान दे दिया कि बच्ची की मौत खुद से नहीं हुई है. बल्कि उसका मर्डर हुआ है. अब मामले ने फिर से तूल पकड़ना शुरू कर दिया.

माता-पिता पर शक
इस बीच उसके माता पिता पर भी पुलिस को शक हुआ. क्योंकि वे लोग हर बार अलग-अलग बयान दे रहे थे. खासकर मीडिया के सामने. यहां ऐसा लग रहा था जैसे वे सिर्फ मीडिया का अटेंशन पाना चाह रहे हों. उन्हें बच्ची की मौत से कोई लेना देना नहीं है. बच्ची की मां ने तो ये तक कह दिया था कि कोई बात नहीं अगर उनकी छोटी बेटी इस दुनिया में नहीं रही. उनके पास बड़ी बेटी तो है ही. वे उसका अच्छी तरह ख्याल रखेंगे. पुलिस को माता-पिता के बयान से भले ही उन पर शक हुआ हो. लेकिन उनके खिलाफ ऐसा कोई भी सबूत पुलिस को नहीं मिला जिससे कि वे उन पर कोई एक्शन ले पाते.

इस मामले को अब लगभग 13 साल बीत चुके हैं. लेकिन आज भी यह केस अनसुलझा है. क्योंकि अंत तक पता ही नहीं लग पाया कि बच्ची की मौत की असली वजह क्या थी?

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