महाराष्ट्र के पुणे में हुए पोर्श कार कांड में नाबालिग आरोपी को जमानत दिए जाने के संबंध में किशोर न्याय बोर्ड के दो सदस्यों की जांच कर रहे एक पैनल ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है. इन दोनों सदस्यों पर आरोपी को कम सजा देकर रिहा करने का आरोप है. इसमें से एक सदस्य एल एन दानवड़े ने आरोपी को सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने सहित बहुत ही नरम शर्तों पर जमानत दे दी थी.
इसके बाद पूरे देश में आरोपी को लेकर हंगाम हुआ था. इसे देखते हुए महाराष्ट्र सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने जेजेबी के दोनों सदस्यों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया था. इस समिति ने दोनों सदस्यों को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया था. उनसे जवाब मांगा गया था, लेकिन उनके जवाब संतोषजनक नहीं मिलने पर समिति ने राज्य सरकार से दोनों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव दिया है.
बताते चलें कि हिट एंड रन की ये घटना 19 मई की सुबह की है. पुणे के कल्याणी नगर में रियल एस्टेट डेवलपर विशाल अग्रवाल के 17 वर्षीय बेटे ने अपनी पोर्श कार से बाइक सवार दो इंजीनियरों को रौंद दिया था, जिससे उनकी मौत हो गई. इस घटना के 14 घंटे बाद आरोपी नाबालिग को कोर्ट से कुछ शर्तों के साथ जमानत मिल गई. उसे 15 दिनों तक ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करने और सड़क हादसे पर 300 शब्दों का निबंध लिखने का निर्देश दिया गया था.
इसके बाद लोगों के भारी दबाव के बीच नाबालिग आरोपी को दोबारा हिरासत में लेकर पुलिस ने रिमांड होम में भेज दिया था. इसी बीच आरोपी के पिता विशाल अग्रवाल और उसके दादा सुरेंद्र अग्रवाल ने उसे बचाने के लिए बहुत प्रयास किया था, जिसमें उन दोनों गैरकानूनी तरीके भी अपनाए थे. इनमें सबसे बड़ा आरोप आरोपी का ब्लड सैंपल बदलने और अपने ड्राइवर गंगाराम को किडनैप करने का है. दादा ने ड्राइवर पर हादसे की जिम्मेदारी लेने का दबाव बनाया था.
उस वक्त पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार ने बताया था कि दोनों आरोपियों ने ड्राइवर गंगाराम पर इस हादसे की जिम्मेदारी लेने का दबाव बनाया था. इसके बाद आरोपी के ड्राइवर ने बयान भी दिया था कि हादसे के वक्त कार वो चला रहा था. लेकिन सबूतों के आधार पुलिस ने खुलासा कर दिया कि ड्राइवर ने पैसे के लालच में जिम्मेदारी ली थी. बताया जा रहा है कि आरोपी के दादा सुरेंद्र अग्रवाल ने सबसे पहले अपने ड्राइवर गंगाराम को बंगले पर बुलाया.
बहुत सारे पैसे देने का लालच देकर उसे इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वो थाने में जाकर ये बयान देगा कि भयानक हादसे के वक्त पोर्श कार को वो ड्राइव कर रहा था. इसके बाद अपने साथ गाड़ी में बैठाकर थाने ले गए. बयान दर्ज करवाया. उसके बाद अपने साथ वापस भी लाए. लेकिन साजिश के तहत उसे घर जाने देने की बजाए बंगले में कैद कर लिया. इतना ही नहीं सुरेंद्र ने गंगाराम का मोबाइल भी छीन लिया. ताकि किसी से संपर्क न कर सके.
इधर पुलिस मुस्तैद थी. दबाव में भी. क्योंकि सूबे के मुखिया यानी सीएम एकनाथ शिंदे खुद इस मामले में नजर बनाए हुए थे. पुलिस ने ड्राइवर की पत्नी की शिकायत के आधार पर सुरेंद्र अग्रवाल के बंगले पर छापा मारा, तो पूरी साजिश का खुलासा हो गया. इसके बाद पुलिस ने आरोपी के दादा को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन उन्होंने कोर्ट में कहा था कि वो हादसे वाली रात किसी काम से दिल्ली गए हुए थे. उनका हादसे से कोई लेना-देना नहीं था.
बताया गया था कि हादसे के वक्त ड्राइवर उसी पोर्श कार में मौजूद था, जिसे नाबालिग आरोपी चला नहीं उड़ा रहा था. दरअसल, नशे की हालत आने के बाद आरोपी कार चलाने की जिद करते हुए ड्राइवर से चाभी मांगने लगा. इसके बाद गंगाराम ने आरोपी के पिता को फोन कर बताया कि नशे की हालत में उसका बेटा कार चलाना चाह रहा है. ये जानने के बाद भी विशाल ने उसे चाबी देने की बात कह दी. फिलहाल सभी आरोपियों को जमानत मिल चुकी है.