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सागर हत्याकांड: सुशील कुमार के बारे में क्या कहते हैं उनके कोच रह चुके वीरेंद्र

वीरेंद्र के मुताबिक वह साल 1988 में छत्रसाल स्टेडियम में बतौर छात्र भर्ती हुए थे और 5 साल बाद 1993 में 11 साल का सुशील उनके सामने ही छत्रसाल स्टेडियम में आया था.

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सुशील कुमार. (फाइल फोटो)
सुशील कुमार. (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सुशील को ट्रेनिंग दे चुके हैं वीरेंद्र
  • साल 2000 के बाद कोच बन गए वीरेंद्र
  • सागर हत्याकांड से जूनियर खिलाड़ी आहत

कभी सुशील कुमार के साथ पहलवानी कर चुके और बाद में उन्हीं को कुश्ती के गुर सिखाने वाले कोच वीरेन्द्र का कहना है कि छत्रसाल स्टेडियम में क्या माहौल बना ये तो वो नहीं जानते हैं लेकिन इससे खेल और देश की गरिमा को ठेस लगी है.

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करीब 20 साल छत्रसाल स्टेडियम में बिताने वाले वीरेंद्र अब बाहरी दिल्ली के नरेला इलाके में एक अखाड़ा चलाते है और करीब 200 छात्रों को कुश्ती के दांव पेंच सिखाते हैं. वीरेंद्र के मुताबिक वह साल 1988 में छत्रसाल स्टेडियम में बतौर छात्र भर्ती हुए थे और 5 साल बाद 1993 में 11 साल का सुशील उनके सामने ही छत्रसाल स्टेडियम में आया था.

साल  2000 तक वीरेन्द्र ने छत्रसाल स्टेडियम में पहलवानी की. साल 2000 के बाद जब वह कोच बन गए तो उन्होंने सुशील को  कुश्ती के दांव पेंच भी सिखाये. वीरेंद्र को करीब डेढ़ हफ्ते पहले पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया था. दरअसल पुलिस ये जानना चाहती थी कि बाद में सुशील पहलवान के पास कौन लोग आते थे. इसके बारे में इनका कहना है कि ये पहलवानों के अलावा किसी को नहीं पहचानते. 

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वीरेंद्र के इस अखाड़े में आमतौर पर 200 छात्र होते हैं लेकिन कोरोना की वजह से सभी को घर भेज दिया गया है और बेहद कम संख्या में सिर्फ वही पहलवान मौजूद है जिनकी कोई प्रतियोगिता सामने है. 

वीरेंद्र का कहना है प्रतियोगिता जीतने के बाद सुशील अधिकारी बन गया फिर उससे इनकी मुलाकात कम हो गई. वो कभी रेसलिंग में दखल नहीं देता था. पुलिस के सामने वीरेंद्र ने ये भी कहा कि 2 साल पहले उनका ट्रांसफर हो गया और फिर सुशील से संपर्क नहीं रहा. चार और पांच मई की रात हुई घटना और उसके वायरल वीडियो को लेकर वीरेंद्र की राय अलग है.

उनका कहना है कि उसके हाथ मे डंडा है लेकिन वो बीच बचाव कर रहा है या क्या कर रहा है, उन्हें नहीं पता. हालांकि सुशील ने का कहना है कि वह बीच बचाव कर रहा था. वीरेंद्र का कहना है कि इस घटना से खेल और देश की गरिमा दोनों को ठेस पहुंची है. लोग अपने बच्चे अखाड़ों में इसलिए भेजते है ताकि उनके बच्चे मेडल जीत सकें, नौकरी पा सकें, इसलिए नहीं कि वो बदमाश बनें.

अखाड़े में मौजूद रेसलर आतिश का कहना है कि इस घटना से उन्हें बहुत बुरा लगा. राष्ट्रीय स्कूल प्रतियोगिता में गोल्ड हासिल कर चुके प्रतीक और जूनियर में सिल्वर मेडल जीत चुके मनु यादव का भी  कुछ ऐसा ही कहना है. प्रतीक का कहना है कि वो छत्रसाल स्टेडियम में थे और सुशील और सागर दोनों को जानते थे. वह सुशील के साथ मे प्रैक्टिस भी कर चुके है और उन्हें बहुत अच्छा मानते हैं. इस घटना से उन्हें बहुत बुरा लगा है.

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