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अंडरवर्ल्ड डॉन बबलू श्रीवास्तव की रिहाई पर SC का निर्देश- 6 हफ्ते में निर्णय ले UP सरकार

उम्रकैद की सजा काट रहे अंडरवर्ल्ड डॉन बबलू श्रीवास्तव की समय से पहले रिहाई के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश को छह हफ्ते में निर्णय लेने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही बबलू श्रीवास्तव को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के प्रावधानों के तहत रिहाई के लिए नए सिरे से अर्जी दाखिल करने को कहा है.

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माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव. (File)
माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव. (File)

उम्रकैद की सजा काट रहे अंडरवर्ल्ड डॉन बबलू श्रीवास्तव की समय से पहले रिहाई के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश को छह हफ्ते में निर्णय लेने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही बबलू श्रीवास्तव को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के प्रावधानों के तहत रिहाई के लिए नए सिरे से अर्जी दाखिल करने को कहा है. 

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सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया है कि वो बबलू श्रीवास्तव की इस नई अर्जी पर जल्द से जल्द भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रावधानों के तहत फैसला ले, क्योंकि वो पहले ही 28 साल की सजा काट चुका है. इसके साथ ही कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस निर्णय के लिए छह हफ्ते की मोहलत दी है.

इससे पहले यूपी सरकार ने कोर्ट को बताया था कि वो बबलू श्रीवास्तव की रिहाई की अर्जी खारिज कर चुकी है. हालांकि, कोर्ट ने सरकार के आदेश में कोई खामी नहीं मानी है. कोर्ट ने कहा कि बबलू श्रीवास्तव ने पहले प्रोबेशन एक्ट 1938 के तहत रिहाई की मांग की थी. इसके प्रावधान BNSS और CrPC के मुकाबले ज़्यादा सख्त हैं.

बताते चलें कि बबलू श्रीवास्तव का असली नाम ओम प्रकाश श्रीवास्तव है. वो यूपी के गाजीपुर का रहने वाला है. जिला मुख्यालय के आम घाट कॉलोनी में उसका परिवार रहता था. बेहद सामान्य परिवार में पैदा हुआ बबलू शुरू से ही पढ़ने में तेज था. वो पहले आईएएस अफसर बनना चाहता था, लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था.

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उसके बड़े भाई विकास श्रीवास्तव के भारतीय सेना में कर्नल बनने के बाद उसकी ख्वाहिश बदल गई. अब वो भी वर्दी पहनकर फौजी बनने का सपना देखने लगा. आगे की पढ़ाई और तैयारी के लिए लखनऊ चला आया. यहां लखनऊ के लॉ कॉलेज में दाखिले के बाद उसने अपनी तैयारी शुरू कर दी. साल 1982 की बात है. 

कॉलेज में चुनाव हो रहे थे. उसके एक दोस्त नीरज जैन ने महामंत्री पद के लिए पर्चा दाखिल कर दिया. बबलू भी उसके लिए प्रचार करने लगा. एक दिन विरोधी गुट के साथ झगड़ा हो गया. इसमें एक छात्र को चाकू मार दिया गया. नफरत और बदले की आग ने अपराधी बनाया 70-80 के दशक में लखनऊ में गैंगवार चरम पर था. 

उस वक्त अरुण शंकर शुक्ला 'अन्ना' का जरायम की दुनिया में जलवा था. लॉ कॉलेज में हुए झगड़े में घायल छात्र अन्ना का करीबी निकल गया. इस घटना से नाराज अन्ना ने झूठे केस में फंसाकर बबलू को जेल भिजवा दिया. कुछ दिनों बाद वो जमानत पर छूटकर बाहर आया तो अन्ना गैंग ने झूठे केस में फंसा दिया. 

बबलू को फिर जेल हो गई. इस घटना के बाद वो बेहद नाराज हो गया. उसके मन में अन्ना के लिए नफरत पैदा हो गई. अब वो किसी भी हाल में उससे बदला लेना चाहता था. जेल से बाहर आते ही उसने सबसे पहले अन्ना के विरोधी गैंग के मुखिया माफिया रामगोपाल मिश्र से मुलाकात की थी. उसके लिए काम करने लगा. 

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उन दिनों अन्ना और रामगोपाल के बीच खूनी रंजिश चरम पर थी. हालांकि, बाद के दिनों में अन्ना की मां की पहल पर ये रंजिश खत्म हो गई थी. अरुण शंकर शुक्ला 'अन्ना' और रामगोपाल मिश्र के बीच सुलह जैसी स्थिति देखकर बबलू श्रीवास्तव ने उनका गैंग छोड़ दिया. अब वो सारे गुर सीख चुका था.

उसने एक गैंग बनाकर किडनैपिंग का काम शुरू कर दिया. उसने उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार और महाराष्ट्र तक अपनी पकड़ बना ली. वो लोगों का अपहरण कराकर उनसे फिरौती वसूल करता था. कई लोगों को अपहरण की धमकी देकर पैसे मांगता था. उसने कई छोटे-छोटे गैंग सक्रिय कर रखे थे, जो अपहरण करके उसे सौंप देते थे. 

उसके बाद वो अपने हिसाब से उस 'पकड़' का सौदा करता था. इस तरह जरायम की दुनिया में वो किडनैपिंग किंग के नाम से कुख्यात हो गया. उसके काले कारनामों की लिस्ट बढ़ती जा रही थी. यूपी पुलिस ने भी उसके खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी थी. पकड़े जाने के डर से वो भारत से भागकर नेपाल चला गया था. 

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