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छत्रसाल स्टेडियम के टॉप टैलेंट थे...कामयाबी मिली तो जिंदगी में Foul खेलने लगे सुशील कुमार

सुशील कुमार की पूरी जिंदगी ही कुश्ती के एक खेल जैसी ही रही है. पहले राउंड में उन्होंने देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीते. खूब मेहनत की. छोटी उम्र से ही कोच सतपाल सिंह के साथ पसीना बहाया और पहली बार 15 की उम्र में वर्ल्ड कैडेट गेम्स में गोल्ड मेडल जीता. यानी पहले राउंड में वो कामयाब रहे.

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पहलवान सुशील कुमार (फाइल फोटो)
पहलवान सुशील कुमार (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • छत्रसाल स्टेडियम के दुलारे थे सुशील कुमार
  • गुरु और ससुर सतपाल सिंह ने साथ दिया
  • 2012 में सिल्वर जीत कर भारत में छाए

सागर हत्याकांड में गिरफ्तार पहलवान और ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार 14 साल की उम्र से दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ट्रेनिंग ले रहे हैं. साल 2012 में जब इस स्टेडियम के दो पहलवानों ने ओलंपिक खेलों में भारत के लिए पदक जीता तो ये छत्रसाल स्टेडियम कुश्ती में दांव आजमा रहे पहलवानों का ट्रेनिंग प्वाइंट बन गया. इतना ही नहीं इस साल टोक्यो ओलंपिक में भी छत्रसाल स्टेडियम के एक नहीं तीन-तीन पहलवान इसमें हिस्सा ले रहे हैं.

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इन तमाम बातों से आप समझ सकते हैं कि कैसे छत्रसाल स्टेडियम कुश्ती के अखाड़े में अपना दबदबा बनाए हुए हैं. जब जब ओलंपिक आता है तब तब सबकी नजरें इसी स्टेडियम पर टिक जाती हैं. हालांकि हकीकत ये है कि स्टेडियम में कुश्ती के दांवपेच पर राजनीति के दांवपेच हावी है.

छत्रसाल स्टेडियम से सीखे कुश्ती के दांवपेच

सुशील कुमार के कोच सतपाल सिंह काफी लंबे वक्त से छत्रसाल स्टेडियम में पहलवानों को कुश्ती के दांवपेच सिखाते आए हैं. माना जाता है कि एक वक्त में सतपाल सिंह का यहां काफी दबदबा था और सुशील कुमार उनके चहेते पहलवान थे. साल 2016 में जब सतपाल सिंह छत्रसाल स्टेडिम के एडिशनल डायरेक्टर के पद से रिटायर हुए तब उन्होंने अपने चहेते और अपनी बेटी के पति यानी दामाद सुशील कुमार की स्टेडियम के एक अहम पद पर नियुक्ति करा दी.

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सुशील कुमार की ये पोस्टिंग विवादों में आ गई क्योंकि वो प्रोफेशनल पहलवानी की अलग अलग प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा ले रहे थे.

गुरु और ससुर सतपाल सिंह का साथ मिला

सुशील कुमार की नियुक्ति के बाद उनके गुरु और ससुर होने के नाते सतपाल सिंह रिटायरमेंट के बाद भी स्टेडियम के अंदरूनी मामलों में दखल दे रहे थे. इस दौरान ऐसे आरोप लगे कि जो पहलवान सुशील कुमार के कैंप का समर्थन नहीं करता था उसे स्टेडियम छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया जाता था.

पहलवान योगेश्वर दत्त और पहलवान बजरंग पुनिया ने जब छत्रसाल स्टेडियम छोड़ा था, तब भी ऐसे ही आरोप लगे थे. इनमें पहलवान बजरंग पुनिया इस साल टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले हैं, और इन दोनों ने ही कुश्ती की ट्रेनिंग छत्रसाल स्टेडियम में ली थी. लेकिन वो अब इससे अलग हो चुके हैं.

दिल्ली पुलिस के शिकंजे में पहलवान सुशील कुमार (पीटीआई)

योगेश्वर दत्त इसलिए अलग हुए क्योंकि साल 2018 में उन्होंने एक मामले में सुशील कुमार के खिलाफ जाकर पहलवान नरसिंह यादव का साथ दिया था. जिसके बाद ऐसा कहा जाता है कि सुशील कुमार का साथ ना देने की सजा उन्हें स्टेडियम छोड़ने के लिए मजबूर होकर देनी पड़ी. 

दरअसल सुशील कुमार की पूरी जिंदगी ही कुश्ती के एक खेल जैसी ही रही है. पहले राउंड में उन्होंने देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीते. खूब मेहनत की. छोटी उम्र से ही कोच सतपाल सिंह के साथ पसीना बहाया और पहली बार 15 की उम्र में वर्ल्ड कैडेट गेम्स में गोल्ड मेडल जीता. यानी पहले राउंड में वो कामयाब रहे.

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2008 के ओलंपिक में कांस्य पदक

फिर आता है दूसरा राउंड. इसमें उन्होंने एक के बाद एक कई मेडल देश के लिए जीते और वो ना सिर्फ देश के सबसे सफल पहलवान बने बल्कि देश के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में भी अपने लिए जगह बनाई. साल 2008 के ओलंपिक खेलों में सुशील कुमार ने भारत के लिए कुश्ती में 56 सालों के बाद कांस्य पदक जीता था.

इससे पहले ओलंपिक खेलों में मशहूर पहलवान केटी जाधव ने भारत को साल 1952 में पदक दिलाया था. खैर इस राउंड में भी सुशील कुमार ने कोई फाउल नहीं किया और वो अपनी कामयाबी की वजह से सागर धनकड़ जैसे देश के सैकड़ों पहलवानों के लिए रोल मॉडल बन गए.

लंदन ओलंपिक में जीते सिल्वर

साल 2012 में जब लंदन में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ तो उसमें भी सुशील कुमार ने फ्रीस्टाइल कुश्ती में सिल्वर मेडल जीता. जिसके साथ ही सुशील कुमार भारत के पहले ऐसे पहलवान बन गए जिन्होंने व्यक्तिगत कैटेगरी में लगातार दो बार देश के लिए पदक अपने नाम किया. 

ऐसा भी कहा जाता है कि सुशील कुमार की इस उपलब्धि ने कई लोगों को प्रेरित किया जिसकी वजह से भारत को कई पहलवान मिले. इसके बाद से ही भारत में कुश्ती की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि इस पर कई फिल्में तक बन गईं.  

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इसे ऐसे समझा जा सकता है कि इस साल पहली बार किसी ओलंपिक में भारत से सबसे ज़्यादा पहलवान हिस्सा लेने टोक्यो जा रहे हैं और इसके पीछे कहीं ना कहीं सुशील कुमार फैक्टर भी है. इसके लिए उन्हें देश के कई अवॉर्ड भी मिले हैं. साल 2005 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड, 2009 में राजीव गांधी खेल रत्न और 2011 में पद्मश्री भी मिला.

कामयाबी के बाद लाइफ में फाउल खेलने लगे सुशील

अब आते हैं सुशील कुमार के तीसरे राउंड में. अबतक सुशील कुमार रोल मॉडल बन चुके थे. कामयाबी और उससे पैदा हुआ गुरूर उनके सिर पर चढ़कर बोलने लगा और साल 2015 से सुशील कुमार ने फाउल करने शुरू कर दिए. कोर्ट का सहारा लेने के बावजूद सुशील कुमार 2016 के ओलंपिक खेलों में जगह नहीं बना पाए. इसके बाद 2018 के कॉमनवेल्थ खेलों के ट्रायल्स के दौरान जब सुशील कुमार ने पहलवान प्रवीण राणा को हरा दिया तो दोनों पहलवानों के समर्थक आपस में भिड़ गए और इस घटना से पहलवानों के बीच पनपती गुटबाज़ी का इशारा मिला.

 लेकिन तब रेसलिंग फेडरेशन ने इसपर कोई बड़ा कदम नहीं उठाया था. उस वक्त पहलवान प्रवीण राणा ने यहां तक आरोप लगाया था कि मैच के दौरान सुशील कुमार के समर्थक रेफरी को धमकी दे रहे थे जिसकी वजह से जीत सुशील को मिली. इसके अलावा साल 2020 के भी ओलंपिक खेलों में सुशील कुमार ने जगह बनानी चाही लेकिन वो ट्रायल मैच में ही हार गए. और इसी तरह वो ज़िंदगी के तीसरे राउंड में फाउल पर फाउल करते चले गए. आज की तारीख में सुशील कुमार एक खून के आरोपी हैं. 

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