देश भर में नागरिकता कानून और NRC को लेकर हिंसक विरोध-प्रदर्शन चल रहे हैं. साल 2009 से लेकर 2018 तक लगातार हर साल कहीं न कहीं हिंसक प्रदर्शन हुए. हिंसा पर उतरी भीड़ को रोकने और उसे निष्क्रिय करने के लिए उस राज्य की पुलिस 'रॉयट कंट्रोल' शब्द का उपयोग करती है. ऐसे हिंसक प्रदर्शनों में पुलिस की गोलियों और लाठी चार्ज से पिछले 10 सालों में कुल 720 लोगों की मौत हुई है. हजारों की संख्या में लोग घायल हुए हैं.
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10 साल की बड़ी घटनाएं हैं, जब पुलिस को गोलियों और लाठियों से मरे लोग
2010: महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में जैतापुर परमाणु संयंत्र को लेकर ग्रामीणों ने हिंसक विरोध-प्रदर्शन किया. पुलिस की गोलीबारी में आधिकारिक तौर पर एक प्रदर्शनकारी की मौत.
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2011: बिहार के फारबिसगंज में एक फैक्ट्री को जमीन देने के विरोध में ग्रामीण विरोध कर रहे थे. हिंसक होने पर की गई पुलिसिया कार्रवाई में चार ग्रामीणों की मौत हुई. पिंपरी-चिंचवाड के ग्रामीण बांध के पीने वाले पानी को एक फैक्ट्री में देने का विरोध कर रहे थे. तब की गई पुलिसिया कार्रवाई में चार लोगों की मौत हुई थी.
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2012: पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में लोग स्पेशल इकोनॉमिक जोन का विरोध कर रहे थे. जब प्रदर्शनकारी हिंसक हुए तो पुलिस ने एक्शन लिया. इसमें 14 लोग मारे गए.
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2013: महाराष्ट्र के धुले में पुलिस ने समुदाय विशेष के कुछ लड़कों पर गोलियां चलाईं. 6 युवक मारे गए. कहा जाता रहा कि पुलिस इस दौरान दुकानों में लूटपाट कर रही थी.
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2015: आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के शेषाचलम जंगल में पुलिस ने अवैध तौर पर पेड़ काटने वालों पर गोलियां बरसाईं. इसमें 20 संदिग्ध लोग मारे गए.
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2017: मध्यप्रदेश के मंदसौर में किसानों बेहतर कीमतों की मांग कर रहे थे. लोन हटाने की मांग कर रहे थे. प्रदर्शन हिंसक हुए तो पुलिस एक्शन में 5 लोगों की मौत हुई.
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2018: तमिलनाडु के थूत्थुकुड़ी में स्टरलाइट कॉपर फैक्ट्री द्वार फैलाए जा रहे प्रदूषण के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन के दौरान पुलिसिया कार्रवाई के दौरान 13 लोगों की मौत हुई.
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कांग्रेस सरकार में 533 लोगों की मौत पुलिस की गोली से साल मृतक 2009 4 2010 239 2011 109 2012 78 2013 103 कुल 533
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भाजपा सरकार में 187 लोगों मारे गए पुलिस की गोली से साल मृतक 2014 41 2015 42 2016 57 2017 34 2018 13 कुल 187